हरित क्रांति के बाद से देश में जिस तरह अंधाधुन रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का इस्तेमाल हो रहा है, उससे मिट्टी और मानव शरीर के स्वास्थ्य पर बूरा असर पड़ रहा है। मिट्टी की सेहत को लेकर अब सवाल खड़े होने लगे हैं, चिंताएं जताई जाने लगी हैं। खेत की मिट्टी में कार्बन तत्वों की मात्रा कम हो गई है और पीएच का स्तर बिगड़ गया है। ऐसे में किसानों के लिए यह ज़रूरी है कि वो इसमें सुधार के लिए हर संभव प्रयास करें। रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न कर जैव उर्वरक यानी बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल करने से एक साथ कई मुश्किलें हल होंगी। इस विषय पर किसान ऑफ़ इंडिया ने मध्य प्रदेश के सागर स्थित कृषि विज्ञान केन्द्र की कृषि वैज्ञानिक डॉ. ममता सिंह से ख़ास बातचीत की।
डॉ. ममता सिंह बताती हैं कि खतरनाक रसायनों का खेती में कम इस्तेमाल हो, इसके लिए इंटीग्रेटेड न्यूट्रिएंट मैनेजमेंट और जैविक खेती पर ज़ोर देने की ज़रूरत है। खेती में लागत खर्च भी दिन-ब-दिन बढ़ रहा है। अगर इन सब परेशानियों से निज़ात पाना है तो खेत की मिट्टी की सेहत सुधारने वाले जैव उर्वरकों यानी बायो फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल पर ज़ोर देना होगा।
बायो फ़र्टिलाइज़र क्या है?
डॉ. ममता ने बताया कि बायो फ़र्टिलाइज़र एक जीवाणु खाद है, जिसमें मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवाणु वायुमंडल में पहले से उपस्थित नाइट्रोजन को अवशोषित कर और मिट्टी में मौजूद फॉस्फोरस को पानी में घुलनशील बनाकर पौधों को देते हैं। इससे पौधो की नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की ज़रूरतों को पूरा किया जा सकता है। यह जैव उर्वरकों यानी बायो फ़र्टिलाइज़र मानव स्वास्थ, पर्यावरण और खेत की मिट्टी की उर्वरता के लिए भी लाभकारी होते हैं।
बायो फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से उत्पादन में बढ़ोतरी
अगर नाइट्रोजन की पूर्ति करने वाला जैव उर्वरक राइजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर का इस्तेमाल करते हैं, तो इसके प्रयोग से 30 से 40 किलो ग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर फसलों को मिल जाती है। फसलों की उपज में भी लगभग 10 से 20 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी देखी गई है। इसलिए अगर किसान रासायनिक उर्वरकों की जगह अपने खेतों में जैव उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, तो फसलों से भरपूर उपज ली जा सकती है।
इसी तरह अगर किसान फॉस्फो बैक्टीरिया और माइकोराइजा जैव उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं तो वो खेतों में 20 से 30 प्रतिशत फॉस्फोरस की मौजूदगी बढ़ा सकते है। इन बायो फ़र्टिलाइज़र के इस्तेमाल से एक तरफ किसान की त्पादन लागत घटती है तो वहीं दूसरी तरफ उनकी खेतों की मृदा संरचना बेहतर होती है।
दलहनी फसलों के लिए राइजोबियम कल्चर करें प्रयोग
डॉ. ममता सिंह ने बताया कि दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए बायो फ़र्टिलाइज़र राइजोबियम कल्चर का इस्तेमाल बीजों के उपचार और मृदा उपचार के रुप में किया जाता है। खेतों में बीजों की बुवाई के बाद राइजोबियम के जीवाणु पौधों के जड़ों में प्रवेश करके छोटी-छोटी गांठें बना लेते हैं। इन गांठों में जीवाणु अपनी सख्यां बढ़ाते हैं। फिर प्राकृतिक रूप से मौजूद नाइट्रोजन को वायुमंडल से शोषित करके, उसे पोषक तत्वों में परिवर्तित कर, पौधों को उपलब्ध कराते हैं। राइजोबियम कल्चर दलहनी फसलों की जड़ों में गांठे बनाता है। इससे ज़मीन में नाइट्रोजन का स्थितिकरण होता है। राइजोबियम दलहनी फसलों में नाइट्रोजन की मात्रा को 70 प्रतिशत तक पूरा करता है। इसका इस्तेमाल दहलनी फसलों जैसे अरहर, चना, मूंग, उड़द, मटर, मसूर,सोयाबीन, मूंगफली व सेम जैसी कई फसलों में किया जाता है।
खाद्यान्न और तिलहनी फसलों के लिए जैव उर्वरक
डॉ. ममता के अनुसार, खाद्यान्न फसलों में नाइट्रोजन की पूर्ति के लिए एजोटोबैक्टर बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल किया जाता है। इसके जीवाणु पौधों की जड़ में जाकर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को नाइट्रोजन उपलब्ध कराते हैं। इसके अलावा, यह जिब्रालिक एसिड और एसिटिक एसिड जैसे हार्मोन्स का उत्सर्जन करते हैं, जिससे बीजों का जमाव और पौधों के बढ़वार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। इस बायो फ़र्टिलाइज़र का इस्तेमाल अनाज वाली फसलों जैसे धान, गेहूं जौ, जई, मक्का और बाजरा सहित तिलहनी फसलों जैसे सरसो और सूरजमूखी में किया जाता है।
डॉ. ममता सिंह का कहना था कि एजोस्पाइलम कल्चर फसलों को नाइट्रोजन पूर्ति करने वाला एक ऐसा जैव उर्वरक है, जो अधिक नमी में उगाए जाने वाली फसलों के लिए काफ़ी लाभकारी होता है। कई रिसर्च में पाया गया है कि अगर धान की रोपाई के पहले एजोस्पाइलम का इस्तेमाल किया जाता है, तो धान की फसल की अच्छी पैदावार होती है और उपज में भी बढ़ोतरी होती है। एजोस्पाइलम का इस्तेमाल धान, मक्का, गन्ना सहित छोटे अनाज वाली फसलों में करना काफी फ़ायदेमंद पाया गया है। अगर एजोस्पाइलम कल्चर से बीज उपचार करते है तो प्रति किलो बीज के लिए 5 से 6 ग्राम एजोस्पाइलम कल्चर की ज़रुरत पड़ती है। इसके प्रयोग से बीजों के अंकुरण क्षमता में सुधार होता है और पौधों की जड़ें मज़बूत होती हैं।
फॉस्फोरस की पूर्ति के लिए करे फसलों में पीएसबी कल्चर प्रयोग
डॉ. ममता ने बताया कि फसलों की अच्छी बढ़वार के लिए नाइट्रोजन के बाद सबसे महत्वपूर्ण पोषक तत्व फॉस्फोरस होता है। इसके लिए रासायनिक उर्वरकों की जगह फॉस्फोरस घोलक जीवाणु का यानी पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल किया जाता है। इस कल्चर के जीवाणु ज़मीन में मौजूद अघुलनशील फॉस्फोरस को घुलनशील अवस्था में बदल कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं। इसके इस्तेमाल से प्रति हेक्टयर 10 से 40 किलोग्राम फॉस्फोरस पौधों को मिल जाता है। पीएसबी कल्चर का इस्तेमाल बीज उपचार और मृदा उपचार के रुप में किया जाता है। इसके इस्तेमाल से पौधों की जड़ो और ग्रंथियों का भी विकास होता है।
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