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भारत समेत 130 से ज़्यादा देशों में मिलेट जिसे श्री अन्न (millet) का नाम दिया गया है पारंपरिक भोजन के तौर पर खाया जाता है। देश की बड़ी आबादी डायबिटीज़, हार्ट प्रॉबलम्स, मोटापे समेत कई हेल्थ समस्याओं से जूझ रही है। ऐसे में श्री अन्न (millet) जिसमें कार्बोहाइड्रेड, प्रोटीन, आयरन,जिंक और विटामिन बी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, डाइट में शामिल करने से इम्यूनिटी मजबूत होती है और कई तरह की बीमारियां भी दूर रहती हैं।
भारत में श्री अन्न का उत्पादन (Millet Production In India)
मिलेट के तहत बाजरा, ज्वार, रागी, कंगनी, कुटकी, कोदो, सावां, काकुन और चना आते हैं। भारत में इन सभी 9 श्री अन्न (millets) का उत्पादन होता है। अगर राज्यों की बात करें तो राजस्थान पहले नंबर पर है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य श्री अन्न (millet) उत्पादन राज्यों में आते हैं।
ICAR में श्री अन्न को लेकर रिसर्च (ICAR Millet Varieties)
श्री अन्न (millet) को लेकर एग्रीकल्चर एरिया में लगातार रिसर्च हो रही है। जिसके ज़रीये श्री अन्न (millet) की नई-नई किस्मों को डेवलप किया जा रहा है। देश में श्री अन्न (millet) की खेती के साथ-साथ मिलेट स्टार्ट-अप्स को सरकार की तरफ से बड़े पैमाने पर प्रमोट किया जा रहा है। भारतीय अनुसंधान परिषद ( Indian council of agricultural research) के अलग-अलग संस्थानों (Institutions) ने श्री अन्न की उन्नत किस्में तैयार की हैं। इन उन्नत हाइब्रिड किस्मों में बाजरा की 4, कुटकी की 6, रागी की 5, चीना या प्रोसो मिलेट की 3, कोदो की 2, कंगनी की 2, ब्राउन टॉप की 1, सांवां की 1 किस्म शामिल है। कुल मिलाकर 24 किस्में है जो ICAR ने तैयार की गई हैं।
यहां पर इन किस्मों के बारें में विस्तार से जानते हैं-
बाजरा मिलेट की खेती (Pearl Millet Farming)
श्री अन्न बाजरा को हर तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। भारत के उत्तर और मध्य भागों में खरी के मौसम में बाजरा की बुवाई की जाती है। वहीं मानसून के आने के साथ भी इसकी फसल खेतों में लगती है। बाजरे को पशुओं के चारे के रूप में इस्तेमाल करते हैं। भारत में पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्यप्रदेश, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में बाजरे की खेती होती है।
बाजरा की किस्में (Pearl Farming Varieties)
GHB 538 (ईवीडी: डीएम): इस किस्म को ख़ासतौर से गुजरात के कृषि क्षेत्र के लिए तैयार किया गया है। ये सूखे वाले एरिया के लिए बेहतरीन मानी जाती है। इस किस्म को अगर किसान एक हेक्टेयर खेत में उगाते हैं तो उनको लगभग 26 क्विंटल उपज मिल जाती है। GHB 538 का दूसरा नाम मरुआ सोना भी है। इसमें हरा चारा 63 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिल जाता है। इस किस्म में इरगॉट, स्मत, भूरा रतुआ रोग नहीं लगता है। ये मिट्टी की लवणता और सूखे में ज़्यादा उपज देने की ताकत रखता है। इसके साथ ही तापमान के उतार-चढ़ाव को भी आराम से सहन कर सकता है।
पीसीबी 166 (एफबीएल 4): ये किस्म पंजाब के खेतों में उगाने के लिए उपयुक्त है। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 41 क्विंटल है। वहीं चारा 722 क्विंटल पर हेक्टेयर मिल जाता है। इस किस्म का बाजरा 89 दिनों में पक कर तैयार हो जाता है। इसमें कोमल असिता और पत्ती प्रध्वंस रोग नहीं लगते हैं। ये हाई प्रोटीनयुक्त (9.6 फीसदी) बाजरे की किस्म है।
बाजरा हाइब्रिड: इस किस्म को सिंचाई और सूखे दोनों की क्षेत्रों में बड़े आराम से उगाया जा सकता है। बाजरा हाईब्रिड किस्म ख़ासतौर पर तमिलनाडु के लिए उपयोगी मानी जाती है। सिंचाई क्षेत्र में 30.13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फसल होती है। इसमें आयरन और ज़िंक भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। बाजरा हाईब्रिड में प्ररोह मक्खी और मृदुरोमिल असिता रोग नहीं लगते हैं।
वीपीएमएच 14: ये किस्म सूखे और सिंचाई दोनों की जगहों में उगाने के लिए उपयुक्त होती है। ये कर्नाटक राज्य में खेती के लिए बेस्ट है। इस किस्म से किसानों को 37.62 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज बड़े आराम से मिल जाती है। वीपीएमएच-14 किस्म में आयरन और ज़िंक भरपूर पाये जाते हैं।
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कुटकी मिलेट की खेती (Little Millet Farming)
कुटकी मिलेट की खेती सूखे और सिंचाई वाले एरिया में की जाती है। कुटकी को पशुओं के चारे के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। भारत में इसकी खेती मध्य प्रदेश समेत छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में की जाती है। इसका इस्तेमाल औषधी के तौर पर भी किया जाता है। स्वास्थ्य के लिए कुटकी काफी फायदेमंद होती है। कब्ज को रोकने समेत पेट से संबंधित समस्याएं दूर करता है।
कुटकी की किस्में (Little Millet Varieties)
कलिंगा सुआन18: ये खरीफ़ के मौसम में उगाने वाली मिलेट की किस्म है। कुटकी की कलिंगा सुआन किस्म सूखे और सिंचाई दोनों ही क्षेत्रों में बड़े आराम से उगाई जाती है। ओड़िसा, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश का कृषि क्षेत्र सबसे उपयुक्त माना जाता है। फसल 92 दिनों में पक कर तैयार होती है। 16 से 17 क्लिंटल प्रति हेक्टेयर उपज किसानों को मिल जाती है। इस किस्म में झड़न और फटन रोग नहीं लगता है।
जीवी 4(अंबिका): कुटकी की ये किस्म खरीफ के मौसम के लिए सबसे सही मानी जाती है। 32 से 34 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होती है। इसमें झड़न और फटन रोग नहीं लगता है। इसके साथ ही ये किस्म कीटों और रोगों से बचाव की क्षमता रखती है।
हेगारी सेम 1: ये किस्म कर्नाटक राज्य में खरीफ के मौसम में बुवाई के लिए उपयुक्त होती है। ये एक हेक्टेयर में 15 से 16 क्विंटल की उपज देती है। ये 90 से 95 दिनों में तैयार होती है। आयरन, ज़िंक, फाइबर पाया जाता है। इसमें झड़न रोग नहीं होता है।
जीपीयूएल 6: ये किस्म गर्मी और खरीफ के मौसम में बोने के लिए सबसे सही मानी जाती है। ये वैरायटी कर्नाटक के क्लाइमेट के लिए ख़ासतौर से उपयुक्त है। 15 से 20 क्विंटल पैदावार एक हेक्टेयर में हो जाती है। ये 85 से 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार रहती है। पत्ती अंगमारी और भूरा रोग नहीं लगते हैं।
डीएचएलएम 28- 4: मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, गुजरात, झारखंड और आंध्र प्रदेश में कुटकी की इस किस्म की खेती की जाती है। सूखाग्रस्त इलाकों के लिए ये वैरायटी सबसे उपयुक्त है। एक हेक्टेयर में 17 क्विंटल उपज किसानों को मिलती है। ये 93 से 96 दिनों में उपज देती है। इस वैराइटी में ग्रेट स्मट, भूरा धब्बा रोग, पत्ती अंगमारी रोग होने के कम चाजेंस होते हैं। प्ररोह मक्खी रोग नहीं लगता है।
जवाहर कुटकी: बारिश के मौसम के लिए ये वैरायटी उपयुक्त होती है। मध्य प्रदेश में इस किस्म की खेती की जाती है। 17.1 क्विटल पैदावार होती है। 152 दिनों में ये फसल कटने के लिए तैयार हो जाती है। इसमें आयरन, ज़िंक भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं। इसमें भूरा धब्बा रोग नहीं लगता है। इस किस्म से तैयार आटे से रोटियां अच्छी बनती हैं।
रागी मिलेट की खेती (Finger Millet Farming)
रागी जिसे भारत में मडुआ के नाम से भी जानते हैं। रागी को फिंगर बाजरा, अफ्रीकन रागी, लाल बाजरा भी कहते हैं। इसकी खेती सिंचित और असिंचित दोनों जगहों पर होती है। ये गंभीर सूखा भी सहन कर सकता है। प्रोटीन और आयरन की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसके सेवन से हीमोग्लोबिन की कमी नहीं होती है।
रागी या मडुआ की किस्में (Finger Millet Varieties)
वीएल रागी या मडुआ: इसकी खेती ज़्यादातर मध्यप्रदेश, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखंड, गुजरात, आंध्रप्रदेश में की जाती है। ये खरीफ के मौसम में खेती के लिए अच्छी किस्म है। 100 से 102 दिनों में फसल तैयार होती है। इस वीएल रागी वैरायटी में प्रोटीन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
सीएफएमवी 4: रागी की इस वैरायटी की खेती खरीफ और रबी दोनों ही मौसम में बड़े आराम से होती है। 39 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज मिल जाती है। 110 से 115 दिनों में फसल को किसान काट सकते हैं। ग्रीवा प्रध्वंस, भूरा धब्बा रोग, बैंडेड आच्छाद, अंगमारी, खुरपका, सड़न जैसे रोग फसल में ना के बराबर लगते हैं।
गोष्ठानी रागी: खरीफ और रबी दोनों ही मौसम में लगने वाली उपयुक्त वैरायटी है। इसमें आयरन और ज़िंक पोषक तत्व पाये जाते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। ग्रीवा प्रध्वंस रोग इसमें नहीं लगता है। ये एक हेक्टेयर में 35 से 38 क्विंटल उपज का देता है।
एसआईआरआई 316: ये खरीफ़ और गर्मी के मौसम में पछेती फसलों के साथ उगाये जाने के लिए सही मानी जाती है। 23.5 क्विंटल एक हेक्टेयर में पैदा करने की ताकत होती है। इस फसल को पकने में 100 से 105 दिन लगता है। इसमें पत्ती, ग्रीवा और बाली प्रध्वंस, खुरपका जैसे रोग नहीं लगते हैं। एफिड, तनाभेदक, प्ररोह मक्खी, ग्रास हॉपर, माइलोसेरेस वीविल जैसे फंगस लगने की उम्मीद काफी कम होती है। ईयर हैड कैटरपिलर जैसे कीटों से फसल ख़राब नहीं होती है। इस वैरायटी से खेती के लिए कर्नाटक का क्लाइमेट परफेक्ट है।
श्रीरंत्ना (ओयूएटी कलिंगा फिंगर मिलेट 1): इसकी खेती खरीफ और गर्मी के मौसम में सिंचाई के लिए उपलब्ध साधनों के साथ होती है। 117 दिनों में उपज को किसान काट सकते हैं। लगभग 30 क्विंटल की पैदावार एक हेक्टेयर में होती है।
कोदो मिलेट की खेती (Kodo Millet Farming)
कोदो की खेती भारत में करीब 3000 सालों से की जा रही है। कोदो को देशभर में अलग-अलग कोदरा, हरका, वरगु, अरिकेलु नामों से जाना जाता है। कोदो देखने में धान की तरह लगता है। कोदो की खेती महाराष्ट्र, उत्तरी कर्नाटक, तमिलनाडु के कुछ भाग, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और उत्तर प्रदेश में की जाती है। प्रोटीन और फाइबर के साथ फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन, पोटेशियम, मैग्नीशियम, जिंक भरपूर मात्रा में पाये जाते हैं।
कोदो मिलेट की किस्में (Kodo Millet Varieties)
दाहोद कोदो 1: कोदो मिलेट की ये वैरायटी खरीफ के साथ ही बारानी ज़मीन (Dryland farming) पर भी की जाती है। आंध्रप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु राज्यों में इसकी खेती के अनुकूल स्थिति होती है। इस किस्म से 30 क्विंटल प्रति हेक्टर फसल होती है। साथ ही उपज का 77 से 90 क्विंटल चारा प्रति हेक्टेयर मिलता है। इसमें झड़न रोग नहीं लगता है। हेड स्मट, बैंडेट ब्लाइट, पत्ती अंगमरी और भूराधब्बा रोग लगने की उम्मीद कम होती है। प्ररोह मक्खी से लगने वाले रोग भी नहीं होते हैं।
जवाहर कोदो 9-1: ये सूखाग्रस्त इलाकों के लिए सबसे उपयुक्त किस्म मानी जाती है। 27.4 प्रति क्विंटल उपज एक हेक्टेयर खेत से बड़े आराम से निकल आती है। इस वैरायटी से फसल 104 दिनों में कटने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाती है। प्ररोह मक्खी और हेड स्मट से लगने वाले रोगों के साथ ही सूखा व फटन रोग से भी मुक्त होती है।
प्रोसो मिलेट की खेती (Proso Millet Farming)
प्रोसो मिलेट को चीना फसल भी कहा जाता है। ये फसल बहुत कम पानी की मांग करती है। लगभग 65-75 दिन में अच्छी पैदावार देती है। इसकी खेती अधिकतर खरीफ के मौसम में की जाती है। प्रोसो मिलेट की फसल में रोग बहुत कम लगते हैं।
प्रोसो मिलेट की किस्में (Proso Millet Varieties)
हेगारी बारूगो 1 (एचबी 1): प्रोसो मिलेट की ये किस्म खरीफ के मौसम में कर्नाटक राज्य के लिए बेहतर मानी जाती है। 12 से 14 क्विंटल फसल बड़े आराम से एक हेक्टेयर खेत से निकल आती है। किसान इस प्रोसो मिलेट की फसल को 65 से 70 दिनों में काट सकते हैं। इसमें उच्च मात्रा में आयरन और ज़िंक पाये जाते हैं। साथ ही कच्चा रेशा भी मिलता है।
जीआरयूपी 28: ये किस्म खरीफ के साथ शुष्क मौसम में भी पैदावार देती है। ये वैरायटी कर्नाटक में खेती के लिए बेहतर है। 80 से 85 दिनों में फसल पक कर तैयार होती है। 31. 8 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर खेत से हो जाती है। प्रोसो मिलेट की इस नई वैरायटी में प्रोटीन और कैल्शियम उच्च मात्रा में पाया जाता है।इसमें पत्ती अंगमारी और भूरा धब्बा रोग नहीं लगता है।
एटीएल 2 (पानी वरागु): प्रोसो मिलेट की ये किस्म यांत्रिक फसल कटाई के लिए उपयुक्त मानी जाती है। इसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है। इसकी फसल तैयार होने में 65 से 73 दिन लगते हैं। 21.40 क्विंटल उपज प्रति हेक्टेयर मिल जाता है। इसमें झड़न रोग नहीं लगता है।
कंगनी मिलेट की खेती (Foxtail Millet Farming)
कंगनी श्री अन्न की दूसरी सबसे ज़्यादा बुवाई वाली फसल है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, राजस्थान, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और कुछ हद तक नॉर्थ ईस्ट राज्यों में उगाया जाता है। कंगनी से रोटियां, खीर, इडली, दलिया, मिठाई, बिस्किट तैयार किये जाते हैं।
कंगनी मिलेट की किस्में (Foxtail Millet Varieties)
महानंदी (एसआईए 238): ये रबी, खरीब और वर्षा वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती है। 80 से 85 दिनों में उपज को काटा जाता है। 31.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर फसल किसानों को मिल जाती है। प्रोटीन और कैल्शियम भरपूर पाया जाता है। प्ररोह मक्खी, प्रध्वंस रोग, मृदुरोमिल आसिता रोग नहीं लगते हैं। आंध्र प्रदेश का क्लाइमेट इसकी खेती के लिए सबसे अच्छा है।
जीपीयूएफ 3: ये खरीफ़ और गर्मी के मौसम में खेती करने के लिए उपयुक्त किस्म है। इसमें रतुआ, पत्ती अंगमारी रोग नहीं लगते हैं। इसकी उपज प्रति हेक्टेयर 15 से 20 क्विंटल है। कर्नाटक राज्य की जलवायु इसकी खेती के लिए उत्तम है।
ब्राउन टॉप मिलेट की खेती (Brown Top Millet Farming)
ब्राउन टॉप मिलेट श्री अन्न बहुत कम पानी के साथ और ख़राब मिट्टी में भी उगता है। हाई प्रोटीन होने की वजह से ये कई बीमारियों से लड़ने की ताकत रखता है। ब्राउन टॉप मिलेट की खेती गर्म जलवायु वाले स्थानों पर होती है। जिन जगहों पर सूखा हो, वहां ये फसल आसानी से उगाई जा सकती है। हिंदी भाषी राज्यों में इसको ‘छोटी कंगनी’, ‘खरपड’ कहते हैं तो तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे राज्यों में पलापुल, कोराले, अंडकोरा जैसे नामों से जाना जाता हैं।
ब्राउन टॉप मिलेट की किस्म (Brown Top Millet Variety)
हेगारी ब्राउन टॉप-2 (एचबीआर 2): ये खरीफ़ मौसम के लिए बेहतर मानी जाती है। इसमें आयरन, जिंक की मात्रा ज़्यादा पाई जाती है। एक हेक्टेयर में 18 से 20 क्विंटल दाना मिलता है। 95 से 100 दिनों में फसल कटने के लिए रेडी रहती है।
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बर्नयार्ड मिलेट की खेती (Barnyard Millet Farming)
बर्नयार्ड मिलेट पोषक तत्वों से भरपूर होता है। बर्नयार्ड मिलेट को बाजरे के रूप में जाना जाता है। इसके पौधों में कीड़े लगने की समस्या कम होती है। इसमें विटामिन, खनिज,कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, प्रोटीन पाया जाता है।
बर्नयार्ड मिलेट की किस्म (Barnyard Millet Variety)
एटीएल 1 (कुदिराइवेली)- बर्नयार्ड मिलेट की ये सूखाग्रस्त और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में उगाने वाली वैरायटी है। इसकी खेती दक्षिण भारत के तमिलनाडु राज्य में की जाती है। 90 से 95 दिनों में किसान उपज को काट सकते हैं। 21.2 क्विंटल पैदावार एक हेक्टेयर खेत से मिल जाती है। इसमें ग्रेन स्मट, प्ररोह मक्खी, तना बेधक रोग नहीं लगता है।
श्री अन्न के उत्पादक और निर्यातक देश
दुनिया में मोटे अनाजों (millet) का सबसे बड़ा उत्पादक और पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक देश भारत है। देश में 170 लाख टन से ज़्यादा श्री अन्न यानि कि मिलेट (millet) का उत्पादन किया जाता है जो एशिया के टोटल प्रोडक्शन का 80 फीसदी और ग्लोबल प्रोडक्शन का 20 फीसदी है।
श्री अन्न की ख़ासियतें (Specialties Of Shri Anna)
- मिलेट की सबसे ख़ास बात ये है कि ये ग्लूटेन-फ्री होते हैं। जिसकी वजह से ये उन लोगों के लिए सबसे अच्छे हैं, जिनको ग्लूटेन फ्री खाना पसंद है या फिर एलर्जी होती है।
- आपको बता दें कि यूनाइटेड नेशन की तरफ से इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट 2023 डिक्लेयर किया गया था, जिसका प्रस्ताव भारत ने दिया था।
- श्री अन्न (millet) को हर तरह के क्लाइमेट में उगाया जाता है। इसे किसान सूखाग्रस्त भूमी पर भी उगाकर बढ़िया उत्पादन पा सकते हैं।
- भारत समेत विदेशी बाज़ारों में भी श्री अन्न (millet) के अच्छे दाम मिल जाते हैं। इसकी खेती में बहुत ज्यादा लागत नहीं आती है।
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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।