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हमारे देश में पान में सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है या फिर कुछ लोग सुपारी को यूं ही चबाते हैं। इसके अलावा, धार्मिक आयोजनों और पूजा-पाठ में भी सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है। तभी तो भारत सुपारी का सबसे बड़ा उत्पादक देश होने के साथ ही सबसे बड़ा उपभोक्ता देश भी है। यहां कर्नाटक, केरल, असम, तमिलनाडू, मेघालय और पश्चिम बंगाल में सबसे ज़्यादा सुपारी की खेती की जाती है।
सुपारी की खेती के लिए 25 से 35 डिग्री का तापमान ज़रूरी है। सुपारी को अगर अंतरफसल के रूप में उगाया जाए तो किसानों की आमदनी दोगुनी हो जायेगी। कृषि विज्ञान केंद्र, हिरेहल्ली ने तुमकूरु ज़िले के किसानों को सुपारी उगाने का उन्नत तरीका और नई तकनीक बताई जिससे किसानों को बहुत लाभ हुआ।
तुमकूर में खूब होती है सुपारी की खेती
तुमकूर में करीब 34,719 हेक्टेयर में सुपारी उगाया जाता है, लेकिन कई तरह की समस्याओं जैसे फूलों का गिर जाना, फल का गिरना, फल का फटने जैसी समस्याओं के अलावा रोग और कीटों के कारण भी सुपारी उत्पादकों की आय प्रभावित होती थी, क्योंकि इससे फसल को बहुत नुकसान पहुंचता है। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र, हिरेहल्ली ने न सिर्फ़ किसानों की समस्याओं का समाधान किया, बल्कि आमदनी बढ़ाने का तरीका भी सुझाया।
सुपारी की खेती में तकनीक
किसानों को लंबी किस्म की सुपारी के बीज दिए। इसके अलावा अनुशंसित खेत की खाद और उर्वरकों के साथ बोरेक्स 30 ग्राम/पेड़ के हिसाब से डालने की सलाह दी। रबी के सीज़न के दौरान लोबिया, डोलिचोस, फ्रेंच बीन और लौकी के साथ इसकी इंटरक्रॉपिंग यानि अंतर फसल का भी सुझाव दिया। ज़रूरत के मुताबिक, सामान्य कीटों और रोगों से बचाव के लिए कीटनाशकों और फंगीसाइड्स के इस्तेमाल की सलाह दी। कृषि विज्ञान केंद्र की ओर से दी गई सलाह को अपनाकर किसानों की उपज और आमदनी में अच्छी बढ़ोतरी हुई।
सुपारी की खेती में किसानों को फ़ायदा
कृषि विज्ञान केंद्र के हस्तक्षेप के बाद 450 हेक्टेयर इलाके में गुणवत्ता पूर्ण हिरेहल्ली की लंबी किस्म की बुवाई की गई। इसके बाद नट्स यानि सुपारी के फल गिरने के मामले कम हो गए। यव 12 प्रतिशत से घटकर 3.4 प्रतिशत रह गया। डेमो फ़ील्ड में प्रति हेक्टेयर 9.54 क्विंटल उपज प्राप्त हुई जो किसानों द्वारा प्राप्त उपज से 12.5 प्रतिशत अधिक थी। इलाके के 2600 किसानों ने 8000 हेक्टेयर की भूमि में क्रॉप मैनेजमेंट तकनीक अपनाई।
सुपारी की खेती में आमदनी
कृषि विज्ञान केंद्र ने तुमकूरु ज़िले के किसानों को लोबिया, डोलिचोस, फ्रेंच बीन और लौकी के साथ अंतर फसल के रुप में सुपारी उगाने की सलाह दी और जिन किसानों से इसे अपनाया उनकी आमदनी में काफी इज़ाफा हुआ। फ्रेंचबीन्स के साथ सुपारी उगाने पर 50,000 की अतिरिक्त आय हुई, जबकि लोबिया के साथ सुपारी की खेती करने पर 35,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई।
सुपारी के पेड़ की लंबाई 50-60 फ़ीट तक जाती है होती है। इंटरक्रॉपिंग से मिट्टी की सेहत में भी सुधार हुआ क्योंकि इससे मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ बढ़ गए। इसके अलावा, फूट रॉट बीमारी का असर भी 28 प्रतिशत से घटकर सिर्फ़ 12 प्रतिशत रह गया। कृषि विज्ञान केंद्र के हस्तक्षेप से पहले किसानों को प्रति हेक्टेयर 1,60,000 रुपए की आमदनी हो रही थी और अब 2,25,000 रुपए हो गई है यानी प्रति हेक्टेयर 65,000 रुपए की अतिरिक्त आमदनी।
सुपारी की खेती की जानकारी
सुपारी की खेती करने के लिए निम्नलिखित चरणों का पालन किया जा सकता है:
सुपारी कई तरह की मिट्टी में उगने में सक्षम है। ये अच्छी जल निकास वाली मिट्टी में सबसे अच्छा पनपता है। ये नमी की कमी के प्रति संवेदनशील है और इसे वहीं उगाया जाना चाहिए जहां पर्याप्त पानी की सुविधा उपलब्ध हो।
भूमि का चयन: सुपारी की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी का चयन करें। मिट्टी को अच्छे ड्रेनेज और पानी के लिए सुचारू बनाए रखें।
बीज का चयन: उत्तम गुणवत्ता वाले सुपारी के बीज का चयन करें। सुपारी की खेती के लिए नर्सरी में पहले इसके पौधे तैयार किए जाते हैं। बीजों की बुवाई क्यारियों में की जाती है। बुआई के दौरान बीजों की उचित दूरी और गहराई का ध्यान रखें।
सिंचाई: सुपारी के पौधों की नियमित रूप से सिंचाई करें।
खाद: सुपारी के पौधों को विकासित करने के लिए उचित खाद दें। इसमें उर्वरक, कम्पोस्ट, नियमित खाद या विशेष उर्वरक शामिल हो सकते हैं।
रोग और कीट प्रबंधन: सुपारी के पौधों पर रोगों और कीटों का प्रबंधन करें। इसके लिए जल, फफूंदी, और रोगनाशकों का उपयोग किया जा सकता है।
अगर आप सुपारी की खेती करना चाहते हैं, तो इसके लिए स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से सलाह लेना और स्थानीय बाजार की मांग को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है है। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए खेती का सही प्रबंधन, नई तकनीक को अपनाना, अच्छी किस्म के बीजों का चुनाव, मार्केटिंग सहयोग जैसी चीज़ें बहुत ज़रूरी हैं।
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