Kathiya Wheat Farming: गेहूँ की खेती से ज़्यादा कमाई, अपनाएं कठिया गेहूँ की किस्में

सेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है, क्योंकि इसमें ‘बीटा कैरोटीन’ पाया जाता है। बाज़ार में भी किसानों को कठिया गेहूँ का उचित दाम मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया किस्में को ही प्राथमिकता देनी चाहिए।

कठिया किस्में गेहूँ की खेती Kathiya Wheat Farming

गेहूं, भारत की प्रमुख फ़सलों में से एक है। देश में गेहूँ की दो किस्मों की खेती होती है- सामान्य और कठिया। सामान्य गेहूँ की खेती जहाँ सिंचित इलाकों में ज़्यादा लोकप्रिय है वहीं असिंचित और आंशिक रूप से सिंचित इलाकों में कठिया गेहूँ ही प्रचलित है। इसमें सूखा प्रतिरोधी क्षमता होती है। इसके अलावा कठिया गेहूँ की खेती में सिंचाई के अलावा निराई-गुड़ाई की ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ती और रोग लगने की आशंका भी काफ़ी कम होती  है। इस तरह, कठिया गेहूँ की खेती की लागत काफ़ी किफ़ायती होती है।

सामान्य किस्मों की तुलना में कठिया गेहूँ में पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा होती है। इसमें 12 से 14 प्रतिशत प्रोटीन के अलावा प्रचुर मात्रा में ‘बीटा कैरोटीन’ होता है। बीटा कैरोटीन, वो तत्व है जिससे विटामिन ‘ए’ बनता है। दूसरी ओर, सामान्य किस्म वाले गेहूँ में बीटा कैरोटीन नहीं पाया जाता। बीटा कैरोटीन की मौजूदगी की वजह से सेहत के प्रति जागरूक लोगों के बीच कठिया गेहूँ की माँग तेज़ी से बढ़ रही है।

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, माँग ज़्यादा होने की वजह से बाज़ार में किसानों को कठिया गेहूँ की उपज का उचित दाम भी मिलता है। इस तरह, कठिया गेहूँ, अपने उत्पादक किसानों को भी आर्थिक रूप से मज़बूत बनाने के अलावा कुपोषण की समस्या को कम करने में भी अहम भूमिका निभाता है। इसीलिए किसानों का रुझान भी कठिया गेहूँ की खेती के प्रति दिनों-दिन बढ़ रहा है।

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तस्वीर साभार: ICAR

सूखा सहनशील है कठिया गेहूँ

कठिया गेहूँ, सामान्यतः सूखा-आशंकित इलाकों में सिंचाई की कमी और ज़्यादा गर्मी सहन करने की क्षमता के कारण उगाया जाता है। इसकी खेती मुख्यतः मध्य भारत और दक्षिण भारत के शुष्क और पानी की कम उपलब्धता वाले इलाकों जैसे – कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब और उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड इलाकों में होती है। लेकिन कठिया गेहूँ में मौजूद आर्थिक लाभ को देखते हुए ज़्यादा से ज़्यादा किसानों को चाहिए कि यदि वो गेहूँ पैदा करें तो उन्हें कठिया गेहूँ की किस्म को ही प्राथमिकता देनी चाहिए। कठिया गेहूँ के सूखा प्रतिरोधी होने की वजह से यह फ़सल जलवायु परिवर्तन के लिहाज़ से भी किसानों के लिए उपयोगी विकल्प साबित हो रही है।

भारत में कठिया गेहूँ का रक़बा और पैदावार

कठिया गेहूँ की खेती को अपनाने के लिहाज़ से देश में अभी अपार सम्भावनाएँ मौजूद हैं। भले ही भारत, विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर का सबसे बड़ा गेहूँ-उत्पादक देश है, लेकिन तमाम ख़ूबियों के बावजूद देश में कठिया गेहूँ की खेती को उत्साहवर्धक नहीं माना जा सकता। देश में अभी क़रीब 342 लाख हेक्टेयर ज़मीन पर गेहूँ की खेती हो रही है। लेकिन कठिया गेहूँ की खेती का रक़बा क़रीब 15 लाख हेक्टेयर है। ये गेहूँ की खेती के कुल रक़बे का क़रीब साढ़े चार फ़ीसदी ही बैठता है।

पैदावार के लिहाज़ से देखें तो देश में गेहूँ का उत्पादन क़रीब 11 करोड़ टन है, जबकि कठिया गेहूँ की पैदावार क़रीब 35 लाख टन ही है। इसका मतलब ये हुआ कि देश में पैदा होने वाले कुल गेहूँ में सामान्य किस्म वाला या ‘बीटा कैरोटीन रहित’ गेहूँ क़रीब 97 फ़ीसदी है तो कठिया गेहूँ क़रीब 3 प्रतिशत ही है। कठिया गेहूँ का बहुतायत में उपयोग दलिया, सूजी, पिज्जा, स्पेघेटी, सेवईयाँ, नूडल्स जैसे पौष्टिक और सुपाच्य आहार को बनाने में किया जाता है।

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तस्वीर साभार: ICAR

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वैश्विक गेहूँ उत्पादन में भारत का स्थान

दुनिया की 8 अरब से ज़्यादा आबादी को खाद्य सुरक्षा देने में गेहूँ का अहम मुक़ाम है। गेहूँ उत्पादन में क़रीब 14 करोड़ टन की उपज के साथ चीन शीर्ष है तो क़रीब 11 करोड़ टन गेहूँ पैदा करके भारत का स्थान दूसरा है। एक अनाज के रूप में गेहूँ की खेती भारत की 140 करोड़ की आबादी के पोषण और देश की आर्थिक स्थिरता में बेहद महत्वपूर्ण निभाता है।

हरित क्रान्ति से पहले भारत को कई बार अपनी आबादी का पेट भरने के लिए गेहूँ का आयात करना पड़ा। लेकिन हरित क्रान्ति से अब तक देश में गेहूँ की पैदावार क़रीब एक हज़ार गुना बढ़ चुकी है। अब तो भारत में गेहूँ निर्यातक बन चुका है। हालाँकि, दुनिया का सबसे बड़ा गेहूँ निर्यातक रूस है। क़रीब 9 करोड़ टन की पैदावार करने वाला रूस दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक है।  अमेरिका चौथे स्थान पर है और इसका उत्पादन क़रीब 5 करोड़ टन है।

कठिया गेहूँ की उत्पादन तकनीक

खेत की तैयारी: मिट्टी को बारीक और भुरभुरी करने के लिए गहरी जुताई करनी चाहिए। यदि बुआई से पहले नमी नहीं है तो अंकुरण की एकरूपता के लिए सिंचाई आवश्यक है।

बीज की मात्रा और बीजोपचार: कठिया गेहूँ की बुआई के लिए 40 किलोग्राम प्रति एकड़ के हिसाब से बीज की आवश्यकता होती है। बुआई से पहले बीज को मिट्टीजनित रोगों से सुरक्षित बनाने के लिए वीटावैक्स (कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत थीरम 37.5 प्रतिशत) 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

उर्वरक: उर्वरकों का उपयोग करने से पहले मिट्टी की जाँच ज़रूर करवाएँ। फिर जाँच रिपोर्ट के सिफ़ारिशों के अनुसार ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें। उच्च उर्वरता वाली मिट्टी के लिए प्रति हेक्टेयर 120 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फॉस्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश देना पर्याप्त होता है। इसमें फॉस्फोरस और पोटाश की कुल मात्रा बुआई के समय तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा देनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन का 1/4 भाग पहली सिंचाई तथा शेष 1/4 भाग दूसरी सिंचाई से पहले देना चाहिए। यदि उपलब्ध हो तो 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद का प्रयोग करना भी बेहद उपयोगी साबित होता है।

बुआई का समय: कठिया गेहूँ की खेती में भरपूर उपज पाने के लिए सही समय पर बुआई करना बेहद ज़रूरी है। असिंचित दशा में कठिया गेहूँ की बुआई अक्टूबर के अन्तिम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक अवश्य कर देनी चाहिए। सिंचित अवस्था में नवम्बर का दूसरा और तीसरा सप्ताह उपयुक्त समय होता है। असिंचित और अर्धसिंचित दशा में बुआई के समय खेत में नमी का होना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि मिट्टी की नमी का सीधा नाता बीजों के अच्छे और समयानुकूल अंकुरण से होता है।

सिंचाई: कठिया गेहूँ की खेती में सुविधानुसार सिंचाई करनी चाहिए। फिर भी पहली सिंचाई का सही वक़्त बुआई के 25-30 दिनों बाद है जब फ़सल ताजमूल अवस्था में होती है। दूसरी सिंचाई को बुआई के 60 से 70 दिनों पर करना चाहिए जब फ़सल दुग्धावस्था में होती है। तीसरी सिंचाई का समय बुआई के 90 से 100 दिनों के बाद तब आता है जब फ़सल में दाने बनने लगते हैं। चमकदार दानों के लिए पकने के समय खेत में नमी का पर्याप्त स्तर बेहद फ़ायदेमन्द साबित होता है। लिहाज़ा, इसका ख़ास ख़्याल रखना चाहिए।

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फ़सल सुरक्षा

खरपतवार नियंत्रण: कठिया गेहूँ में निराई-गुड़ाई की कोई ख़ास ज़रूरत नहीं पड़ती। फिर भी यदि खरपतवार ज़्यादा नज़र आये तो खरपतवार-नाशक का इस्तेमाल किया जा सकता है। संकरी और चौड़ी पत्ती दोनों प्रकार के खरपतवारों के एक साथ नियंत्रण के लिए पेंडीमेथलीन 30 प्रतिशत EC की 3.30 लीटर प्रति हेक्टेयर, बुआई के 3 दिनों के अन्दर 500-600 लीटर पानी की मात्रा में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से फ्लैटफैन नोजल से छिड़काव करना चाहिए या सल्फोसल्फ्यूरॉन 75 प्रतिशत + मेट सल्फोसल्फ्यूरॉन मिथाइल 5 प्रतिशत WG 400 ग्राम का (2.50 यूनिट) का बुआई के 20 से 30 दिनों के अन्दर छिड़काव करें। खरपतवारनाशी के प्रयोग के समय खेत में नमी का होना आवश्यक है।

रोग नियंत्रण: कठिया गेहूँ में रोग लगने की कम आशंका मानी जाती है। फिर भी कठिया गेहूँ में गेरूई या रतुआ जैसी महामारी का प्रकोप तापमान के हिसाब से कम या ज़्यादा हो सकता है। लेकिन नयी रोग प्रतिरोधी किस्मों को बुआई से इनका प्रकोप कम किया जा सकता है। इसके अलावा, बुआई से कठिया गेहूँ के बीजों को वीटावैक्स या बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करना चाहिए।

दीमक से रोकथाम: दीपक एक सामाजिक कीट है। ये मिट्टी में कॉलोनी बनाकर रहते हैं और पौधे की जड़ों को खाकर बेहद हानिकारक साबित होते हैं। दीपक की रोकथाम के लिए खेत के प्रभावित इलाके में नीम की खली का प्रयोग 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए। खड़ी फ़सल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफॉस 20 EC दो से तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ अथवा बालू में मिलाकर प्रयोग करें। बेवेरिया वेसियाना की 2 किलोग्राम मात्रा को 20 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर 10 दिनों तक छाया में रख दें तथा बुआई करते समय कूड़ में इसे डालकर बुआई करें।

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उपज और भंडारण

फ़सल पकने पर कठिया गेहूँ के झड़ने की आशंका रहती है। इसीलिए पकने के दौर में कटाई और मड़ाई को सही वक़्त पर करना चाहिए। कठिया गेहूँ के सुरक्षित भंडारण के लिए इसके दानों में 10-12 प्रतिशत नमी होनी चाहिए। भंडारण से पहले इसकी जगह को अच्छी तरह से साफ़ कर लेना चाहिए। भंडारण कक्ष में कीट-नियंत्रण के लिए एल्युमिनियम की गोली 3 ग्राम प्रति टन की दर से धुआँ करना चाहिए।

पैदावार

सिंचित दशा में कठिया प्रजातियों का औसत उत्पादन 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित और अर्धसिंचित दशा में इसका उत्पादन 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है।

मध्य भारत के लिए उपयुक्त कठिया गेहूँ की नयी प्रजातियाँ
क्र. किस्म उपयुक्त दशा पकने की अवधि (दिन) औसत उपज (क्विं./हे.)
1 एचआई 8759 (पूसा तेजस) सिंचित और समय से बुआई 117 56.9
2 एचडी 4728 (पूसा मालवी) सिंचित और समय से बुआई 120 54.2
3 एचआई 8737 (पूसा अनमोल) सिंचित और समय से बुआई 124 53.4
4 एचआई 8713 (पूसा मंगल) सिंचित और समय से बुआई 122 52.3
5 एचआई 8823 (डी) सीमित सिंचाई और समय से बुआई 122 38.6
6 यूएएस 466 सीमित सिंचाई और समय से बुआई 120 38.8
7 डीडीडब्ल्यू 47 सीमित सिंचाई और समय से बुआई 121 37.3

 

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