अलसी, रबी मौसम की एक प्रमुख तिलहनी फ़सल है। तमाम तिलहनों की तरह अलसी भी एक नगदी फ़सल है। इसके दानों या बीजों से प्राप्त होने वाले अलसी के तेल का व्यावसायिक महत्व बहुत ज़्यादा है। क्षेत्रफल के लिहाज़ से देखे तो अलसी की खेती के मामले में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है, क्योंकि दुनिया की जितनी ज़मीन पर अलसी की खेती होती है उसमें भारत की हिस्सेदारी 15 प्रतिशत है।
भारत, दुनिया में अलसी का चौथा सबसे बड़ा उत्पादक है क्योंकि भारतीय किसान पूरी ताक़त से इसकी उन्नत खेती की तकनीकों को नहीं अपनाते। देश में अलसी के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं – मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान। अलसी की फ़सल को मुख्य रूप से चना, जौ और गेहूँ के साथ मिश्रित खेती के रूप में उगाया जाता है। इसे शरदकालीन गन्ने के साथ भी उगाते हैं तथा रबी की अनेक फ़सलों के साथ खेत के किनारों पर भी अलसी की फ़सल उगायी जाती है।
अलसी के तेल का व्यापक इस्तेमाल
अलसी के तेल का प्रयोग अनेक सुगन्धित तेलों और अन्य औषधीय उत्पादों में भी होता है। साबुन, पेंट, वार्निश और छपाई में इस्तेमाल होने वाली स्याही के निर्माण में भी अलसी के तेल की बड़ी भूमिका होती है। इसका इस्तेमाल खाद्य तेल और दीपक जलाने वाले ईंधन के रूप में भी होता है। अलसी की खली भी एक उत्तम पशु आहार के अलावा खाद के रूप में भी इस्तेमाल होती है।
अलसी के बीजों को अन्य अनाजों के साथ पीसकर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इसके पौधों के तने से प्राप्त रेशों से कैनवास, दरी तथा अन्य मोटे कपड़े तैयार किये जाते हैं। अलसी के पके हुए पौधों से रेशों को निकालने के बाद इसके तने के कड़क हिस्सों से ऐसा काग़ज़ बनाया जाता है जिससे सिगरेट बनती है।
अलसी की जैविक खेती
अलसी की खेती अर्धउष्ण, समशीतोष्ण और तीव्र जलवायु में भी की जा सकती है। अलसी की जैविक खेती भी की जा सकती है। ICAR से सम्बन्धित भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान, भोपाल में जैविक खेती के तहत अलसी की पैदावार की गयी। जैविक खादों के रूप में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद, केंचुआ खाद और मुर्गी खाद क्रमशः 4 टन, 2.2 टन और 1.2 टन प्रति हेक्टेयर शुष्क भार आधार पर डाली गई। इससे अलसी के खेत में संचित नाइट्रोजन की 80 किलोग्राम मात्रा का इज़ाफ़ा हुआ।
पौधों के संरक्षण के लिए मिट्टी में ट्राइकोडर्मा विरिडी को डाला गया, ताकि मिट्टीजनित रोगों से फ़सल को बचाया जा सके और 0.03 प्रतिशत नीम तेल के घोल का छिड़काव किया गया। कीट नियंत्रण के लिए फेरोमैन ट्रैप का इस्तेमाल किया गया। जैविक खेती के परिणामों ने दर्शाया कि अलसी की प्रति हेक्टेयर उपज शुरुआती तीन वर्षों में कम हुई लेकिन इसके बाद उपज में बढ़ोतरी देखी गयी। यदि किसान उपलब्ध जैविक खादों का प्रयोग करके जैविक अलसी का उत्पादन करें, तो निश्चित ही कुछ ही वर्षों में मिट्टी के उपजाऊपन में सुधार होगा तथा ज़्यादा पैदावार और मुनाफ़ा हासिल होगा।
अलसी के खेत की मिट्टी और तैयारी
अलसी की फ़सल के लिए काली, भारी और दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। लेकिन अलसी की शानदार पैदावार के लिए मध्यम उपजाऊ और दोमट मिट्टी उत्तम होती है। अलसी की फ़सल में बीज के अच्छे अंकुरण और पौधे की बढ़वार के लिए खेत में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद की 3-4 जुताईयाँ देसी हल या हैरो चलाकर करनी चाहिए। जुताई के बाद पाटा लगाना आवश्यक है।
अलसी के बीज की उन्नत प्रजातियाँ
अलसी की खेती के लिए 15-20 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता पड़ती है। बड़े बीज वाली प्रजातियों में 25-30 किलोग्राम और मिश्रित फ़सल के लिए बीज की मात्रा 8-10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से ज़रूरत पड़ती है। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के वैज्ञानिकों ने देश के अलग-अलग इलाकों के लिए अलसी की अनेक उन्नत किस्मों की सिफ़ारिशें की हैं। इसीलिए अलसी की खेती से अच्छी कमाई के लिए किसानों को उपयुक्त बीजों का ही चयन करना चाहिए।
विभिन्न प्रान्तों के लिए अलसी की उन्नत प्रजातियाँ | ||
क्रमांक | राज्य | प्रजातियाँ |
1 | उत्तर प्रदेश | नीलम, हीरा, मुक्ता, गरिमा, लक्ष्मी 27, T-397, K-2, शिखा, पद्मिनी |
2 | पंजाब, हरियाणा | LC-54, LC-185, K-2, हिमालिनी, श्वेता, शुभ्रा |
3 | राजस्थान | T-397, हिमालिनी, चम्बल, श्वेता, शुभ्रा, गौरव |
4 | मध्य प्रदेश | JLS(J)-1, जवाहर-17, जवाहर-552, जवाहर-7, जवाहर-18, श्वेता, शुभ्रा, गौरव, T-397, मुक्ता |
5 | बिहार | बहार, T-397, मुक्ता, श्वेता, शुभ्रा, गौरव |
6 | हिमाचल | हिमालिनी, K-2, LC-185 |
अलसी की बुआई का मौसम
अलसी की बुआई के लिए अक्टूबर से नवम्बर के मध्य तक का मौसम सही माना गया है। लेकिन यदि किसी वजह से इस दौरान बुआई नहीं हो सके तो नवम्बर के आख़िर तक भी अलसी की बुआई की जा सकती है। बिहार और राजस्थान में धान की खड़ी फ़सल में अगर बुआई करनी है, तो सितम्बर के अन्त तक छिटकवाँ विधि से बीजों की बुआई करनी चाहिए।
अलसी की बुआई विभिन्न क्षेत्रों में छिटकवाँ विधि और पंक्तियों में की जाती है। मध्य प्रदेश में धान की खड़ी फ़सल में छिटकवाँ बुआई को ‘उतेरा’ और बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में ‘पेरा’ विधि कहते हैं। पंक्तियों में बुआई करने के लिए, वांछित दूरी पर कूड़ तैयार करके बुआई करते हैं। मिश्रित फ़सल की बुआई करने के लिए, चने की तीन पंक्तियाँ, गेहूँ की 5-8 पंक्तियों के बाद, अलसी की फ़सल एक से डेढ़ मीटर के अन्तर पर पंक्तियों में भी बोयी जाती है। शरदकालीन गन्ने की दो पंक्तियों के बीच अलसी की दो पंक्तियाँ उगा सकते हैं। सामान्य अवस्थाओं में बीज बोने की गहराई 3-4 सेंटीमीटर रखते हैं।
अलसी की खेती के लिए खाद
पोषक तत्वों की मात्रा का निर्धारण सदैव उस क्षेत्र की मिट्टी का परीक्षण करवाकर निश्चित करना चाहिए। साधारणतः अलसी फ़सल को नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा क्रमश: 80, 40 और 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना चाहिए। फॉस्फोरस और पोटाश की मात्रा बुआई के समय और नाइट्रोजन की आधी मात्रा बुआई के समय और आधी पहली सिंचाई पर देने से अधिक लाभ प्राप्त होता है। नाइट्रोजन को अमोनियम सल्फेट के ज़रिये देने से उपज और अच्छी मिलती है।
सिंचाई और जल निकास
देश में अधिकतर क्षेत्रों में अलसी की खेती मुख्यतः वर्षा के ऊपर निर्भर करती है। अलसी की खेती में सिंचाई का महत्व बहुत अधिक है। अगर शरदकालीन वर्षा नहीं हो तो पहली सिंचाई पौधों में 4-6 पत्तियाँ निकलने पर और दूसरी फूल आते वक़्त करना लाभदायक साबित होता है।
निराई-गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण
बोने के 30-35 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई की जाती है। इसी समय पंक्तियों में पौधों की छँटाई करके पौधों के बीच का फ़ासला 5-7 सेंटीमीटर कर देते हैं। फ़सल को खरपतवार से मुक्त करने के लिए 20-25 दिनों बाद दूसरी निराई से कर सकते हैं।
कटाई, मड़ाई और उपज
दाने वाली फ़सल की कटाई मध्य मार्च से लेकर अप्रैल के प्रारम्भ तक होती है। फ़सल की कटाई करके बंडल खलिहान में लाये जाते हैं। यहाँ बंडल 4-5 दिनों तक सुखाये जाते हैं। बाद में मड़ाई के लिए थ्रेशर से अलसी के दानों को अलग करते हैं। अलसी की उन्नत प्रजातियों से औसत उपज 15-25 क्विंटल और मिश्रित फ़सल से 4-5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दाने की उपज प्राप्त होती है।
भंडारण
भंडार में रखने से पहले दानों को सुखाकर उसमें सिर्फ़ 10-12 प्रतिशत तक नमी रहनी चाहिए। नमी की मात्रा अधिक रहने से अगली बुआई के लिए बीजों के अंकुरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है। बीज को 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर काफ़ी दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इससे अंकुरण पर भी बुरा प्रभाव नहीं पड़ता।
ये भी पढ़ें: Saunf Ki Kheti- अच्छी कमाई के लिए करें सौंफ की खेती, जानिए Fennel Cultivation की उन्नत तकनीक
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।
ये भी पढ़ें:
- कृष्ण कुमार यादव ने जैविक खाद के जरिए नई तकनीक से खेती को दी नई दिशागुरुग्राम के पाटौदी गांव के कृषक कृष्ण कुमार यादव ने जैविक खाद और वर्मीकम्पोस्ट से आय बढ़ाई, पर्यावरण संग खेती को नई दिशा दी।
- जैविक खेती कर रहे हैं महाराष्ट्र के किसान नितिन चंद्रकांत गायकवाड, जानिए उनकी सफलता की कहानीमहाराष्ट्र के नितिन चंद्रकांत गायकवाड द्वारा अपनाई गई जैविक खेती, जो किसानों को रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक तरीकों से खेती करने की प्रेरणा देती है।
- कृषि में नई तकनीक से क्रांति ला रहे हैं किसान प्रीतम सिंह, जानिए उनकी कहानीप्रीतम सिंह, हरियाणा के पानीपत जिले के निवासी, ने कृषि में नई तकनीक अपनाकर अपनी खेती की उत्पादकता बढ़ाई और पर्यावरण संरक्षण में योगदान दिया।
- जैविक खेती में अग्रणी किसान जयकरण का सफर और खेती में किए गए बदलावहरियाणा के जयकरण जैविक खेती के क्षेत्र में एक प्रमुख नाम हैं, जो यूट्यूब चैनल के जरिए किसानों को जैविक खेती की तकनीकों से प्रेरित कर रहे हैं।
- कृषि में आधुनिक तकनीक से मनेन्द्र सिंह तेवतिया ने उन्नति की राह बनाईमनेन्द्र सिंह तेवतिया ने कृषि में आधुनिक तकनीक अपनाकर पारंपरिक तरीकों से बेहतर उत्पादन प्राप्त किया, जिससे उन्होंने खेती में नई दिशा और सफलता हासिल की।
- Global Soils Conference 2024: ग्लोबल सॉयल्स कॉन्फ्रेंस 2024 का आगाज़ मृदा सुरक्षा संरक्षण पर होगा मंथनGlobal Soils Conference 2024 नई दिल्ली में आयोजित हुआ, जो 19 से 22 दिसंबर तक चलेगा, जहां मृदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी तंत्र पर चर्चा होगी।
- जल संरक्षण के साथ अनार की खेती कर संतोष देवी ने कायम की मिसाल, योजनाओं का लिया लाभसंतोष देवी ने जल संरक्षण के साथ अनार की खेती के तहत ड्रिप इरिगेशन के माध्यम से 80% पानी की बचत करते हुए उत्पादन लागत को 30% तक कम किया।
- रोहित चौहान की कहानी: युवाओं के बीच डेयरी व्यवसाय का भविष्यरोहित चौहान का डेयरी फ़ार्म युवाओं के बीच डेयरी व्यवसाय को प्रोत्साहित कर रहा है। रोहित ने कुछ गायों और भैंसों से छोटे स्तर पर डेयरी फ़ार्मिंग की शुरुआत की थी।
- जैविक खेती के जरिए संजीव कुमार ने सफलता की नई राह बनाई, जानिए उनकी कहानीसंजीव कुमार की कहानी, संघर्ष और समर्पण का प्रतीक है। जैविक खेती के जरिए उन्होंने न केवल पारंपरिक तरीकों को छोड़ा, बल्कि एक नई दिशा की शुरुआत की।
- जैविक तरीके से रंगीन चावलों की खेती में किसान विजय गिरी की महारत, उपलब्ध कराते हैं बीजबिहार के विजय गिरी अपने क्षेत्र में जैविक खेती के प्रचार-प्रसार में लगे हैं। वो 6-10 एकड़ भूमि पर धान, मैजिक चावल, रंगीन चावलों की खेती करते हैं।
- रोहन सिंह पटेल ने वर्मीकम्पोस्टिंग व्यवसाय शुरू किया, क्या रहा शुरुआती निवेश और चुनौतियां?रोहन सिंह पटेल ने दो साल पहले वर्मीकम्पोस्टिंग व्यवसाय का काम शुरू किया, जिसमें उन्होंने जैविक खाद बनाने की तकनीक को अपनाया।
- नौकरी छोड़कर अपने गांव में जैविक खेती और कृषि में नई तकनीक अपनाकर, आशुतोष सिंह ने किया बड़ा बदलावआशुतोष प्रताप सिंह ने अपने गांव लौटकर कृषि में नई तकनीक और जैविक खेती अपनाकर अपनी खेती को सफल बनाया और आसपास के किसानों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बनें।
- जैविक खेती के जरिए रूबी पारीक ने समाज और राष्ट्र निर्माण में किया अद्वितीय योगदानरूबी पारीक ने जैविक खेती के जरिए न केवल अपना जीवन बदला, बल्कि समाज के लिए स्वस्थ भविष्य की नींव रखी। उनकी कहानी संघर्ष और संकल्प की प्रेरणा है।
- Millets Products: बाजरे के प्रोडक्टस से शुरू की अनूप सोनी ने सफल बेकरी, पढ़ें उनकी कहानीअनूप सोनी और सुमित सोनी ने मिलेट्स प्रोडक्ट्स (Millets Products) से बेकरी व्यवसाय शुरू किया, बाजरे से हेल्दी केक बनाकर स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा दिया।
- जानिए रघुवीर नंदम का कम्युनिटी सीड बैंक कैसे उनके क्षेत्र में वन सीड रेवोल्यूशन लेकर आ रहा हैआंध्र प्रदेश के रहने वाले रघुवीर नंदम ने ‘वन सीड रेवोल्यूशन कम्युनिटी सीड बैंक’ की स्थापना की, जिसमें उन्होंने 251 देसी चावल की प्रजातियों का संरक्षण किया है।
- पोल्ट्री व्यवसाय और जैविक खेती से बनाई नई पहचान, जानिए रविंद्र माणिकराव मेटकर की कहानीरविंद्र मेटकर ने पोल्ट्री व्यवसाय और जैविक खेती से अपनी कठिनाइयों को मात दी और सफलता की नई मिसाल कायम की, जो आज कई किसानों के लिए प्रेरणा है।
- उत्तराखंड में जैविक खेती का भविष्य: रमेश मिनान की कहानी और लाभउत्तराखंड में जैविक खेती के इस किसान ने न केवल अपनी भूमि पर जैविक खेती को अपनाया है, बल्कि सैकड़ों अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है।
- Wheat Varieties: गेहूं की ये उन्नत किस्में देंगी बंपर पैदावारगेहूं की ये किस्में (Wheat Varieties) उच्च उत्पादन, रोग प्रतिरोधक क्षमता और विभिन्न क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं, किसानों के लिए लाभकारी मानी गई हैं।
- पहाड़ी इलाके में मछलीपालन कर रही हैं हेमा डंगवाल: जानें उनकी सफलता की कहानीउत्तराखंड की हेमा डंगवाल ने पहाड़ी इलाकों में मछलीपालन को एक सफल व्यवसाय में बदला, इस क्षेत्र में सफलता हासिल की और अन्य महिलाओं को भी जागरूक किया।
- किसान दीपक मौर्या ने जैविक खेती में फसल चक्र अपनाया, चुनौतियों का सामना और समाधानदीपक मौर्या जैविक खेती में फसल चक्र के आधार पर सीजनल फसलें जैसे धनिया, मेथी और विभिन्न फूलों की खेती करते हैं, ताकि वो अधिकतम उत्पादकता प्राप्त कर सकें।