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कंद फसलों की खेती: भारत में कई तरह की कंद फ़सलें काफी चाव से खाई जाती हैं। खानें के साथ ही ये किसानों की कमाई का भी बड़ा ज़रिया भी बनती हैं। देश की खेती-किसानी में इनका ख़ास जगह है। कंद फ़सलें स्वाद के साथ पोषण का खज़ाना भी होती हैं। अनाज और दाल के बाद, कंद फ़सलें तीसरे नंबर पर आती हैं। इनकी सबसे बड़ी ख़ूबी ये है कि थोड़ी जगह और कम वक्त में ज़्यादा पैदावार देती हैं। कृषि-वैज्ञानिकों के हिसाब से, ये फ़सलें अपने आप में अनोखी हैं क्योंकि इनसे छोटी जगह में ज़्यादा खाना मिलता है।
इस ब्लॉग में हम कंद फसलों की खेती (Tuber Crop Cultivation) के बारे में जानेंगे। ये जानकारी किसानों के लिए तो फ़ायदेमंद होगी ही, साथ ही हर उस इंसान के लिए भी दिलचस्प होगी जो भारत की खेती और खान-पान रुचि रखता है।
कंद फ़सलें क्या हैं? (What are Tuber Crops?)
कंद फ़सलें वो ख़ास पौधे हैं जिनका खाने योग्य हिस्सा ज़मीन के अंदर विकसित होता है। ये कार्बोहाइड्रेट से भरपूर होती हैं, जो हमारे शरीर को ज़रूरी एनर्जी देती हैं। कंद फ़सलों में आलू, कसावा, शकरकंद, जिमीकंद, कचालू, टैनिया, रतालू, याम बीन,अरबी व अरारोट जैसी फ़सलें आती हैं। इन पौधों की ख़ासियत ये है कि इनका खाने वाला हिस्सा वास्तव में एक जड़ या तना होता है, जिसमें स्टार्च जमा रहता है। कंद फ़सलों की जड़ें अक्सर गहरी और कभी-कभी मोटी होती हैं। इन्हें ज़मीन से खोदकर निकाला जाता है। ये फ़सलें अलग-अलग तरह की मिट्टी और क्लाइमेंट कंडीशन (Climatic Conditions) में उगाई जा सकती हैं। यहां तक कि कठिन परिस्थितियों (Difficult Situations) में भी अच्छी उपज देती हैं।
कंद फ़सलें और उनकी ख़ासियत (Tuber Crops and their Characteristics)
कंद फसलों की खेती (Tuber Crop Cultivation) में कंद पौधों का वो हिस्सा है जो ज़मीन के अंदर रहता है। ये पौधे के खाने को जमा करके रखते हैं। कुछ पौधे इनकी मदद से बिना बीज के ही नए पौधे बना लेते हैं। सर्दी या सूखे में ये पौधे को जिंदा रखने में मदद करते हैं। जब मौसम अच्छा होता है, तो इनमें जमा खाना नए पौधे को बढ़ने में मदद करता है।
कितने तरह की होती हैं कंद फ़सलें?
- तने वाले कंद: जैसे आलू। इनके ऊपर की तरफ कलियां और पत्तियां निकलती हैं, नीचे जड़ें होती हैं।
- जड़ वाले कंद: जैसे शकरकंद। इनमें ख़ास तरह की जड़ें होती हैं जो खाना जमा करती हैं।
कंद में क्या होता है?
कंद में ज़्यादातर स्टार्च और पानी होता है। इनमें नाइट्रोजन और वसा कम होता है। इनमें पोटैशियम, मैंगनीज और तांबा जैसे मिनिरल्स भरपूर होते हैं। ये हमारे शरीर को तंदुरुस्त रखने में मदद करते हैं।
कंद खाने के फ़ायदे:
- इनमें ज़रूरी विटामिन होते हैं।
- इनमें फ़ाइबर होता है जो पेट के लिए फायदेमंद है।
- इनमें विटामिन सी और बीटा-कैरोटीन जैसे एंटीऑक्सिडेंट होते हैं। ये हमारे शरीर को बीमारियों से बचाते हैं और पाचन में मदद करते हैं। इस तरह, कंद फ़सलें हमारे खाने और सेहत के लिए बहुत फ़ायदेमंद होती हैं।
कंद फ़सलें और उनका महत्व (Tuber Crops and Their Importance)
भारत में केंद्रीय कंद फ़सल अनुसंधान संस्थान (CTCRI)टॉपिकल ट्यूबर क्रॉप्स (Tropical Tuber Crops) पर रिसर्च और डेवलपमेंट एक्टिविटी करता है।
- कंद फ़सलें छोटे किसानों और आदिवासियों समुदायों के लिए बहुत ज़रूरी हैं। ये उनके खाने और कमाई का एक बड़ा ज़रिया हैं।
- ये फ़सलें दूसरी फ़सलों की तुलना में कम जगह में ज़्यादा खाना पैदा करती हैं।
- कंद फ़सलें बेचकर और उनसे बनी चीज़ें बेचकर किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं।
- इनमें एंटीऑक्सिडेंट, फ़ाइबर, खनिज और विटामिन बी, ई और सी भरपूर मात्रा में होते हैं।
- नारंगी और बैंगनी रंग के कंदों में β-कैरोटीन और एंथोसायनिन जैसे फ़ायदेमंद तत्व ज़्यादा होते हैं।
- कसावा कंद फ़सल को भविष्य की सुरक्षित खाद्य फ़सल माना जाता है क्योंकि ये मौसम के बदलाव का सामना आराम से कर सकती है।
- कंद फ़सलें कम देखभाल में भी अलग-अलग तरह की मिट्टी और मौसम में उग सकती हैं।
- कसावा, जिसे टैपिओका के नाम से भी जाना जाता है, लाखों लोगों का मुख्य भोजन है और इसका इस्तेमाल पशु आहार और औद्योगिक उत्पादों (Industrial Products) के लिए भी किया जाता है।
- शकरकंद बहुत गुणों वाली फ़सल है। इसमें पोषक तत्व भरपूर पाए जाते हैं और ये मौसम के बदलाव का सामना कर सकती है।
- रतालू की फ़सल अलग-अलग क्षेत्रों में मुख्य खाद्य पदार्थ है और इसमें औषधीय गुण भी होते हैं।
इस तरह, कंद फसलों की खेती न केवल पोषण और आर्थिक दृष्टि से भी अहम है, बल्कि आने वाले वक्त में फूड सिक्योरिटी के लिए भी बेहद ज़रूरी हैं।
अनाज की तुलना में कंदीय फ़सलों से होता है ज़्यादा फ़ायदा
फ़सलों की तुलना में फल, सब्जियां और कंद फसलों की खेती (Tuber Crop Cultivation) किसानों को ज़्यादा फ़ायदा देती हैं। किसानों को आमदनी बढ़ाने के लिए ऐसी फ़सलें उगाना ज़रूरी है जिनकी क़ीमत बाज़ार में अच्छी मिलती हो।
सूची: प्रमुख अनाज और आलू फ़सल में खेती की लागत और शुद्ध आय की तुलना
राज्य | विवरण | धान | गेहूं | आलू |
उत्तर प्रदेश | खेती की लागत (रुपये/हैक्टर) | 29915.4 | 27501.3 | 77307.3 |
कुल आय (रुपये/हैक्टर) | 61692.4 | 59233.9 | 139786.4 | |
शुद्ध आय (रुपये/हैक्टर) | 31777.0 | 31732.6 | 62479.1 | |
पश्चिम बंगाल | खेती की लागत (रुपये/हैक्टर) | 44645.8 | 34709.1 | 108860.3 |
कुल आय (रुपये/हैक्टर) | 57316.5 | 44614.7 | 145380.0 | |
शुद्ध आय (रुपये/हैक्टर) | 12670.7 | 9905.6 | 36519.7 | |
बिहार | खेती की ऑपरेशनल लागत (रुपये/हैक्टर) | 25236.5 | 23055.8 | 39952.7 |
कुल आय (रुपये/हैक्टर) | 31514.2 | 49891.5 | 72739.7 | |
शुद्ध आय (रुपये/हैक्टर) | 6277.7 | 26835.7 | 32787.0 |
स्रोतः आर्थिकी एवं सांख्यिकी निदेशालय, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार (2013-14)
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार में चावल, गेहूं और आलू की खेती पर रिसर्च की गई। इससे पता चला कि आलू की खेती में सबसे ज़्यादा खर्च पश्चिम बंगाल में होता है, करीब 1,08,860 रुपये प्रति हेक्टेयर। लेकिन इस खर्च के बावजूद फ़ायदा भी ज़्यादा होता है। उत्तर प्रदेश में आलू से होने वाली कमाई चावल और गेहूं से दोगुनी से भी ज़्यादा है। पश्चिम बंगाल में आलू से प्रति हेक्टेयर 36,519 रुपये की कमाई होती है, जो चावल और गेहूं से तीन गुना ज़्यादा है।
बिहार में भी आलू से ज़्यादा फ़ायदा होता है। वहां गेहूं से 26,835 रुपये प्रति हेक्टेयर कमाई होती है, जबकि आलू से 32,787 रुपये। बिहार में धान की खेती से किसानों को बहुत कम फ़ायदा होता है, सिर्फ़ 6,277 रुपये प्रति हेक्टेयर। इस अध्ययन से साफ़ पता चलता है कि चावल और गेहूं जैसी पुरानी फ़सलों की तुलना में आलू जैसी कंद फसलों की खेती से किसानों को ज़्यादा फ़ायदा होता है। इसलिए किसानों को अपनी खेती में बदलाव लाकर कंद फसलों की खेती करनी चाहिए जिनसे उन्हें ज़्यादा आमदनी हो सके।
ये भी पढ़ें: जानिए जिमीकंद की खेती कैसे की जाती है?
कंद फसलों की खेती (Tuber Crop Cultivation) पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल
सवाल 1: कंद फसलों से क्या मतलब है?
जवाब: गर्म देशों में अनाज के बाद सबसे ज़्यादा कंद फसलों की खेती की जाती है। इनमें कसावा, शकरकंद, रतालू जैसी चीज़ें आती हैं। कंद खाने के काम आते हैं और इनसे नए पौधे भी उगाए जा सकते हैं। कई देशों में कंद की फ़सलें लोगों की कमाई और पोषण का एक बड़ा ज़रिया हैं।
सवाल 2: जड़ और कंद वाली फसलों में क्या फ़र्क़ है?
जवाब: जड़ वाली फ़सलों में, जड़ें ही खाने की चीज़ को अपने अंदर जमा करके रखती हैं। इनसे नए पौधे नहीं उग सकते। कंद वाली फ़सलों में, तना या जड़ दोनों खाने की चीज़ जमा करते हैं और इनसे नए पौधे भी उगाए जा सकते हैं। कंद वाली फ़सलें खुद से ही बढ़ सकती हैं, पर जड़ वाली फ़सलें ऐसा नहीं कर सकतीं।
सवाल 3: कंद कैसे उगते हैं?
जवाब: कंद ज़मीन के अंदर उगते हैं। ये दरअसल पौधे के तने का ही एक हिस्सा होते हैं, जो गोल और फूला हुआ होता है। कंद सर्दियों में जीवित रहने और अगले मौसम में बढ़ने के लिए पोषक तत्वों को अपने अंदर जमा करके रखते हैं। ये मुख्य तने से जुड़े होते हैं, और इन जोड़ों को ‘स्टोलन’ कहा जाता है।
सवाल 4: कंद फसलों की खेती में कौन-कौन सी सब्जियां उगाई जाती हैं?
जवाब: कंद फसलों की खेती में ज़मीन के अंदर उगने वाली सब्ज़ियों में आलू, गाजर, चुकंदर, शलजम, शकरकंद और अरबी जैसी सब्जियां आती हैं।
सवाल 5: कंद फसलों की खेती से उगने वाली सब्ज़ियों के क्या फ़ायदे हैं?
जवाब: कंद फसलों की खेती से उगाई गई सब्ज़ियाँ खाने में तो काम आती ही हैं, कुछ बीमारियों के इलाज में भी मदद करती हैं। इनमें ज़्यादातर कार्बोहाइड्रेट होता है, जो शरीर को ऊर्जा देता है। इनमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता और वसा भी बहुत कम होता है। ये शरीर को साफ़ करने में मदद करती हैं और सूजन को कम करने का गुण भी रखती हैं।
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