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मक्का इंसानों के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद तो होता ही है साथ ही पशुओं के लिए भी पौष्टिक हरा चारा उपलब्ध कराता है। पशुपालक इसे अपने पशुओं के लिए दाना और चारा दोनों के लिए उगा सकते हैं। भारत में बड़े पैमाने पर मक्का की खेती होती है। मक्का लगभग देश के सभी राज्यों में उगाया जाता है। मक्का का वानस्पतिक नाम ‘जीया मेज’ है और ये मोटे अनाज की श्रेणी में आता है।
मक्का जिसे मकई भी कहते हैं, का हरा चारा डेयरी किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है, ये दूध उत्पादन की लागत को कम करता है। बता दें कि देश में हरे चारे की करीब 35.6 फीसदी की कमी है, ऐसे में मक्का की खेती से किसानों को बहुत मदद मिल जाती है। इसका चारा दूसरी फसलों से ज्यादा पोषण देने वाला होता है। मक्का में घुलनशील शर्करा काफी मात्रा में पाई जाती है, जिससे इसमें गुणवत्तापूर्ण साइलेज बनाकर लंबे वक्त तक दुधारू पशुओं को खिलाया जा सकता है।
बता दें कि देश में मक्का उत्पादन का 85 प्रतिशत भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। भारत जैसे देश में जहां हरे चारे की कमी है, वहां नई-नई तकनीकों के ज़रिये से खेती करना बहुत ज़रूरी हो जाता है, इसलिए मक्का की उन्नत खेती करके पशुपालक ज़्यादा से ज़्यादा हरा चारा पा सकते हैं।
मक्के की खेती: मिट्टी और जलवायु
वैसे तो मक्के की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन अच्छी फसल के लिए बलुई दोमट और चिकनी दोमट मिट्टी अच्छी मानी जाती है। मिट्टी में पर्याप्त जीवाश्म और पोषक तत्व होने चाहिए और उसका पी.एच. मान 6-7.5 तक होना चाहिए। मिट्टी अच्छी जल निकासी वाली होनी चाहिए। मक्के की फसल के अच्छे विकास के लिए 24-30 डिग्री का तापमान अच्छा माना जाता है, ये गर्म जलवायु की फसल होती है।
हरे चारे के लिए मक्के की उपयुक्त किस्में
अफ्रीकन टाल, J- 1006, जवाहर संकुल, विजय संकुल, मंजरी कंपोजिट, मोती संकुल, प्रताप मक्का चरी-6, MPFM-8 वगैरह।
कब करें मक्के की बुवाई?
उत्तरी भारत में इसकी बुवाई जून–जुलाई और मार्च–अगस्त के बीच की जाती है, जबकि दक्षिण भारत में इसकी बुवाई फरवरी से नवंबर महीने तक की जाती है। बुवाई से पहले बीजों को थीरम/बाविस्टीन 1 ग्राम प्रति किलो के हिसाब से उपचारित करने के बाद ही बुवाई करें। प्रति हेक्टेयर बीज की दर अलग-अलग किस्मों के लिए अलग-अलग होती है। सामान्य मक्का 20 किलो प्रति हेक्टेयर, स्वीट कॉर्न मक्का 8 किलो प्रति हेक्टेयर, बेबी कॉर्न मक्का 25 किलो प्रति हेक्टेयर, ग्रीन कॉर्न कोब 20 किलो प्रति हेक्टेयर, हरा चारा मक्का 50-60 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से डालना चाहिए।
मक्के की फसल में खाद और उर्वरक
हरे चारे के लिए लगाई गई मक्के की फसल के लिए 80 किलो नाइट्रोजन, 40 किलो फॉस्फोरस और 40 किलो पोटाश की ज़रूरत होती है। फ़ॉस्फ़ोरस और पोटाश की पूरी और नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा अंतिम जुताई में डालें। बचे हुए नाइट्रोजन का दो-तिहाई हिस्सा बुवाई के 30 दिन बाद खेतों में डालें। फसल की शुरुआती अवस्था में अगर जस्ते की कमी के लक्षण दिखे, तो 5.0 किलोग्राम जिंक सल्फेट और 2.5 किलो चूना 100 लीटर पानी में घोलकर पौधों में इसका छिड़काव ज़रूर करें।
मक्के की फसल में सिंचाई और खरपतवार प्रबंधन
मॉनसून के मौसम में बारिश होने की वजह से मक्के की फसल को सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है, जबकि दूसरे मौसम में 3-5 सिंचाई की ज़रूरत होती है। खरपतवार फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं, इसलिए इनका प्रबंधन ज़रूरी है। 1 से 1.5 किलो एट्राजिन और एलाक्लोर किलो 400 से 500 लीटर पानी में घोलकर एक हेक्येटर में छिड़काव करें। छिड़काव बुवाई के 2-3 दिनों के बाद करें।
चारे के लिए कटाई
अच्छी गुणवत्ता वाले चारे की कटाई तब करें जब पौधों में 50 प्रतिशत फूल आ चुके हों या दानों में दूध भरने लगे। सही प्रबंधन से 40 से 50 टन प्रति हेक्टेयर हरा चारा आराम से मिल सकता है। अगर दाना प्राप्त करना हो तो दाना सूखने पर कटाई करें, इसमें सिर्फ 20 प्रतिशत ही नमी होनी चाहिए। साइलेज बनाने के लिए मक्का की फसल को दुग्ध अवस्था के बाद काटना चाहिए।
मक्का खल भी फ़ायदेमंद
हरे चारे के साथ ही मक्का खल भी दुधारू पशुओं के लिए बहुत फायदेमंद होती है। इसके सेवन से दूध में वसा की मात्रा बढ़ती है, जिसकी वजह से किसानों को दूध के अच्छे दाम मिल पाते हैं। दरअसल, मक्का खल में तेल की मात्रा 10 से 14 प्रतिशत तक होती है, जबकि बिनौला, मूंगफली और सरसों जैसे अन्य खलों में तेल की मात्रा सिर्फ 7-8 फीसदी ही होती है। इसके कारण मक्का खल पशुओं को खिलाने से दूध का उत्पादन बढ़ जाता है।
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