मूंग की खेती (Moong Cultivation): मूंग का सेवन आमतौर पर हर भारतीय घर में होता है। छिलके वाली मूंग से लेकर मूंग की दाल तक बहुत पौष्टिक होती है। मूंग से पापड़, नमकीन आदि भी बनाए जाते हैं, इसलिए इसकी मांग हमेशा ही रहती है। भारत मूंग का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और इसकी खपत भी यहां सबसे अधिक होती है। मूंग की खेती गर्मियों में करने से कीट और खरपतवारों का प्रकोप कम रहता है जिससे अच्छी फसल प्राप्त होती है।
मूंग की फसल बहुत अधिक बारिश में खराब हो जाती है, इसलिए जायद में इसकी खेती करना अच्छा होता है। मूंग की कई किस्में कम समय में तैयार हो जाती हैं। खाली खेत में इनकी बुवाई करके किसान अतिरिक्त आमदनी प्राप्त कर सकते हैं।
जलवायु और मिट्टी
मूंग की खेती के लिए 25-35 डिग्री तापमान उचित होता है। साथ ही थोड़ी मात्रा में बारिश की ज़रूरत पड़ती है। इसकी खेती दोमट और बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी होती है। मिट्टी का पीएच मान (pH Value) 7-8 होना चाहिए । साथ ही जल निकासी की उचित व्यवस्था ज़रूरी है। यदि खेतों में पानी भर जाए तो इससे मूंग की फसल खराब हो जाती है।
खेत तैयार करना
रबी की फसल की कटाई के बाद खेत की दो बार हैरो से या मिट्टी पलटने वाले रिज़र हल से जुताई करें। इसके बाद 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। जुताई के बाद मिट्टी में नमी को बनाए रखने के लिए खेत में पाटा लगा दें, क्योंकि मिट्टी में नमी होने पर ही बुवाई की जानी चाहिए। दीमक से फसल को बचाने के लिए आखिरी जुताई से पहले प्रति एकड़ क्यूनालफास 1.5 प्रतिशत चूर्ण, 25 किलोग्राम के हिसाब से खेत में छिड़ककर फिर जुताई कर दें।
गर्मियों की मुख्य किस्में
गर्मियों में बुवाई के लिए मूंग की कई किस्में उपयुक्त होती हैं। इनमें से पूसा वैसाखी, मोहिनी, पंत मूंग1, एमएल 1, वर्षा, सुनैना, जवाहर 45, कृष्णा 11, पंत मूंग 3, अमृत आदि मुख्य हैं। ये किस्में औसतन 60 से 90 दिनों में तैयार हो जाती हैं और सबकी औसत उपज क्षमता 8 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
बुवाई और खाद का प्रयोग
कीट आदि से बचाव के लिए बुवाई से पहले बीजों का फफूंदीनाशक और कीटनाशक से उपचार ज़रूरी है। मूंग के प्रति किलो बीज को 3 ग्राम थीरम या बावास्टिन या कार्बेण्डाजिम से उपचारित करें। इमिडाक्लोरोपड 5 एम.एल को एक किलो मूंग के बीज में डालकर उपचार करें। इससे पौधे कीट व रोगों से बचे रहते हैं। पौधों के सही विकास के लिए नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की खाद बहुत ज़रूरी होती है। इसके लिए सुपर फॉस्फेट और डी.ए.पी. उर्वरक खेतों में डाला जाता है।
बुवाई का सही समय
गर्मियों में मूंग की खेती के लए मार्च के आखिरी सप्ताह से लेकर अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक बुवाई कर दी जानी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 22-25 किलो बीज की ज़रूरत होती है। बीजों को 4-5 से.मी. की गहराई में बोएं और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22-25 सें.मी. और पौधों से पौधों की दूरी 10-12 से.मी. रखें।
अधिक सिंचाई की ज़रूरत
गर्मियों के मौसम में सिंचाई की अधिक ज़रूरत पड़ती है। पहली सिंचाई बुवाई के 25-28 दिन बाद और दूसरी 35-38 दिन बाद करें ।
तीसरी सिंचाई 45-48 दिन बाद की जानी चाहिए। फूल व फलियां आने पर सिंचाई ज़रूर करें। मौसम और मिट्टी की किस्म के आधार पर सिंचाई 2-3 या 3-4 बार की जानी चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन
खरीफ के मौसम की बजाय, जायद के मौसम में खरपतवारों का असर कम होता है। यदि खरपतवार ज़्यादा हो जाए तो 20-40 दिनों के बाद हाथों से निराई-गुड़ाई कर लें।
गर्मियों में मूंग उगाने के फायदे
गर्मियों में मूंग की खेती के कई अन्य फ़ायदे भी हैं । इससे मिट्टी की पानी सहने की क्षमता बढ़ती है, मिट्टी का क्षरण कम होता है, पोषक तत्वों का बहाव रुकता है, खरपतवार कम होते हैं, मिट्टी की सरंचना में सुधार होता है और मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाने में भी ये सहायक होता है। इसके अलावा मिट्टी में हवा का संचार अच्छा रहता है, मिट्टी के कार्बनिक स्तर में बढ़ोतरी होती है, खेती की लागत कम होती है, परती ज़मीन का उपयोग होता है और किसानों की आमदनी में भी इज़ाफा होता है।
उन्नत किस्मों के चुनाव और सही तरीके से गर्मियों में मूंग की खेती करने पर प्रति हेक्टेयर 10-12 क्विंटल फ़सल प्राप्त होती है। इससे मिट्टी की उर्वरता भी बढ़ती है। इस मौसम में मूंग की अच्छी गुणवत्ता वाली फ़सल प्राप्त होती है जिसकी बाज़ार में अच्छी कीमत मिलती है।
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