नागफनी जिसे कैक्टस (Cactus) भी कहा जाता है, वैसे तो कांटेदार पौधा है, लेकिन इसकी कुछ वैरायटी कांटारहित भी होती है। इसका इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिए किया जा सकता है। इस संबंध में रिसर्च भी की जा चुकी है। रिसर्च में ये देखा गया है कि पशु इसे आसानी से खा लेते हैं और पाचन में भी कोई समस्या नहीं होती है। इतना ही नहीं, गर्मियों के दिनों में इसे पशुओं को खिलाने से उन्हें गर्मी और डीहाइड्रेशन से बचाया जा सकता है। इसके साथ ही नागफनी का इस्तेमाल कई अन्य उत्पाद बनाने में भी किया जाता है, यानी किसान कच्चे माल के रूप में भी नागफनी की खेती (Cactus cultivation) करके मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
नागफनी की कांटारहित प्रजाति
आमतौर पर कैक्टस को बेकार पौधा समझा जाता है, लेकिन किसान इस पौधे से अच्छी कमाई कर सकते हैं। कई देशों ने इस पौधे की अहमियत समझी है और नागफनी की खेती से अच्छा मुनाफ़ा कमा भी रहे हैं। मैक्सिकों में कैक्टस का इस्तेमाल जैव ईंधन के रूप में किया जा रहा है, तो वियतनाम में कैक्टस के तेल का उपयोग हो रहा है। चीन प्राकृतिक रंगों के लिए कैक्टस का उत्पादन करता है, वहीं अब भारत में भी किसान दवा बनाने और पशु चारे के लिेए कर रहे हैं। इसकी कांटारहित प्रजातियों की व्यावसायिक खेती की जा सकती है। अपुंशिया फिकस-इंडिका (Apuntia Ficus-Indica) जिसे कैक्टस पीयर (Cactus Pear)और इंडियन फिग (Indian Fig) यानी नागफनी कहा जाता है, ये वैरायटी लोकप्रिय है। कैक्टस की इन प्रजातियों में कांटे नहीं होते हैं और इनकी खेती में पानी भी बहुत कम लगता है। इसलिए रेगिस्तान की बंजर भूमि पर भी इसकी अच्छी खेती की जा सकती है।
नागफनी के उपयोग
गर्मियों में पशुओं के लिए हरे चारे का बेहतरीन विकल्प तो है ही इसके साथ ही इसका कई अन्य चीज़ों में भी इस्तेमाल होता है, जैसे- जूस, मुरब्बा, कैंडी, चमड़ा बनाने, दवाईयां, ईंधन, तेल, शैंपू, साबुन और लोशन आदि बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। ऐसे में किसान बड़े पैमाने पर नागफनी की खेती करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। इसके अलावा, अंतर फसल के रूप में भी कैक्टस को उगाया जा सकता है और खेतों में बाड़बंदी के लिए मेड़ों पर भी इसे लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, अब तो कैक्टस से चमड़ा भी बनने लगा है और इसे पर्यावरण के लिए सुरक्षित माना जा रहा है।
नागफनी की खेती कैसे करें?
नागफनी की खेती बरसात के मौसम में (जून-जुलाई से नवंबर) की जाती है। इसकी बुवाई क्लेडोड (तने से निकला चैडा भाग) के द्वारा की जाती है। क्लेडोड को तने से तोड़कर एक मीटर की दूरी पर मेंड़ के किनारे 10.15 सेमी. का गढढा खोदकर जमीन में सीधे गाड़ दें। अगर नमी कम है तो सिंचाई करें, वरना इसकी ज़रूरत नहीं होती। खारी मिट्टी में भी यह आसानी से उग जाता है। इसके पौधे 5-6 महीने में तैयार हो जाते हैं। जब पौधा एक मीटर तक ऊंचा हो जाए तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए, काटने के बाद इसके तने दोबारा उग जाते हैं।
नागफनी की खेती के संबंध में की कई रिसर्च से साबित हुआ है कि ऐसे क्षेत्र जहां पानी की कमी है या बारिश बहुत कम होती है वहां भी नागफनी की कांटारहित वैरायटी उगाकर पशुओं के हरे चारे की समस्या को दूर किया जा सकता है। इससे डेयरी उद्योग से जुड़े किसानों को फ़ायदा होगा। इस संबंध में जागरुकता फैलाने और नागफनी की कांटारहित खेती के लिए किसानों को प्रेरित करने का काम सरकारी एजेंसियां कर रही हैं।
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