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उड़द दाल दक्षिण भारत के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय है, क्योंकि मेदु वड़ा से लेकर, इडली, डोसा जैसे व्यंजन बनाने में इसका ही इस्तेमाल होता है। ये प्रोटीन से भरपूर होती है, साथ ही इसमें कैल्शियम, फॉस्पोरस, आयरन और विटामिन भी पाया जाता है। वैसे उड़द दाल को डायट में शामिल करना अच्छा रहता है, लेकिन जिन लोगों को वज़न घटाना हो या जिनका पाचन कमज़ोर हो, उन्हें इससे परहेज़ करना चाहिए, क्योंकि ये जल्दी पचता नहीं है। उड़द की खेती से किसान कैसे अच्छी कमाई कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
उड़द की उन्नत किस्मों की बुवाई
उड़द की फसल से अच्छी आमदनी प्राप्त करने के लिेए किसानों को इसकी उन्नत किस्मों की बुवाई करनी चाहिए, जो न सिर्फ़ रोग प्रतिरोधी होती हैं, बल्कि जिससे उत्पादन भी अच्छा मिले। वी.बी.जी-04-008, वी.बी.एन-6, माश-114, को.-06, माश-479, पंत उर्द-31, आई.पी.यू-02-43, वाबन-1, ए.डी.टी-4 एवं 5, एल.बी.जी-20 चितकबरा रोग प्रतिरोधी किस्में हैं। अगर आप खरीफ़ सीज़न में इसकी खेती करते हैं तो के.यू-309, के.यू-99-21, मधुरा मिनीमु-217, ए.के.यू-15 किस्में उपयुक्त रहेगी। रबी सीज़न के लिए के.यू-301, ए.के.यू-4, टी.यू.-94-2, आजाद उर्द-1, मास-414, एल.बी.जी-402, शेखर-2 प्रजातियां अच्छी होती हैं। अगर आप जल्दी फसल लेना चाहते हैं, तो प्रसाद, पंत उर्द-40 और वी.बी.एन-5 लगाएं, क्योंकि ये जल्दी पकती हैं।
उड़द की खेती में मिट्टी और जलवायु
उड़द की खेती के लिए नम और गर्म मौसम की ज़रूरत पड़ती है। उड़द के पौधों को बढ़ने के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान चाहिए। इसकी खेती के लिए हल्की रेतीली या दोमट मिट्टी अच्छी होती है। खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए। मिट्टी का पी.एच. बैलेंस 7-8 होना चाहिए। बारिश शुरू होने से पहले बुवाई करने से फसल का विकास अच्छा होता है।
कब और कैसे करें बुवाई
उड़द की बुवाई के लिए बारिश के समय वाला मौसम उपयुक्त होता है। ऐसे में खरीफ़ सीज़न में जून के आखिरी हफ़्ते में बारिश के बाद उड़द की बुवाई करनी चाहिए। बुवाई के समय दूरी का ध्यान रखें। एक पंक्ति से दूसरी पंक्ति के बीच 30 सेंटीमीटर की दूरी और पौधों से पौधों की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। जबकि बीज को 4-6 सेंटीमीटर की गहराई पर बोएं।
गर्मी के मौसम में उड़द की खेती करना चाहते हैं, तो बुवाई फरवरी के तीसरे हफ़्ते से अप्रैल के पहले हफ़्ते तक की जा सकती है। बुवाई के लिए प्रति एकड़ 6-8 किलो बीज का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। साथ ही बुवाई से पहले इनका जैविक बीजोपचार ज़रूरी है। इसके लिए प्रति किलो बीज में 5-6 ग्राम ट्राइकोडर्मा फफूंदनाशक डालें या 3 ग्राम थीरम या 2.5 ग्राम डायथेन एम 45 प्रति किलो के हिसाब से डालें।
खाद और उर्वरक
प्रति एकड़ 8-12 किलो नाइट्रोजन, 20-24 किलो फॉस्फोरस और 10 किलो पोटाश डालना चाहिए। इसके अलावा, इसमें सिंगल सुपर फॉस्फेट, अमोनिया सल्फेट, जिम्पस जैसे सुगंध वाले उर्वरक का इस्तेमाल करना चाहिए।
सिंचाई और निराई-गुड़ाई
वैसे तो बारिश के मौसम में होने वाली उड़द की फसल में सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है, लेकिन फूल और दाना बनने के समय अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं है, तो एक सिंचाई कर देनी चाहिए। वहीं गर्मी के मौसम वाली फसल में 3 से 4 सिंचाई की ज़रूरत पड़ती है। उड़द की बुवाई के बाद करीब 15-20 दिनों के बाद खुरपी से गुड़ाई करके खरपतवार हटा दें। अगर इसके लिए केमिकल का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो एक किलो फ्लूक्लोरीन को 800-1000 लीटर पानी में मिलाकर करीब एक हेक्टेयर क्षेत्र में छिड़काव करें।
उड़द की फसल में कीट प्रबंधन
उड़द की फसल को कीटों से बहुत हानि होती है। इसमें करीब 15 तरह के कीट लगते हैं जिससे फसलों को 17 से 38 प्रतिशत तक नुकसान होता है।
पिस्सू भृंग- ये उड़द की फसल में लगने वाला एक खतरनाक कीट है, जो रात के समय नए पौधों और पत्तियो को खा सकता है। पत्तों में 10 से ज़्यादा छेद बन जाते हैं। दिन के समय ये कीट मिट्टी में छिप जाते हैं। ये कीट फसल की जड़ों में घुसकर फलियों को खा जाते हैं और ग्रंथियों को नुकसान पहुंचाते हैं।
इल्ली- ये हरे रंग की होती है और इनका सिर पीले रंग का होता है। ये पत्तियों को ऊपरी सिरे से बीच के भाग की ओर मोड़ देती हैं और इन्हीं में रहकर पत्तियों के हरे भाग को खा जाती हैं। जिससे पत्तियां पीली और सफेद पड़ने लगती हैं।
सफेद मक्खी- ये कीट शिशु और व्यस्क दोनों ही अवस्था में हानिकारक होता है। इनका रंग सफेद होता है। ये कीट पत्तियों का रस चूसकर पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के कारण ही यलो मोजैक रोग होता है। इस रोग से पीड़ित पौधों को उखाड़कर फेंक देना चाहिए।
फलीभेदक- ये उड़द की फसल का सबसे खतरनाक कीट है। इस कीट की सुंडी पहले पत्तियों को खाती हैं और बाद में फलियों में छेद करके विकसित होते दानों को खा जाती है।
बिहार रोमिल इल्ली- ये कीट छोटी अवस्था में झुंड में रहकर पत्तियों को खाते हैं। बड़ी होने पर इन इल्लियों के शरीर पर बाल आ जाते हैं इसलिए इन्हें कंबल कीट कहा जाता है। इनके कारण फसल के दाने छोटे होते हैं और उपज भी कम होती है।
कीटनाशकों का इस्तेमाल
फली भृंग, बिहार रोमिल और इल्ली कीट होने पर क्वालीनालफॉस और सफेद मक्खी के लिए हाइमिथोएट 30 ई.सी. का इस्तेमाल करें। कीटनाशक का घोल हमेशा एक मग में बनाएं और उसे स्प्रेयर की टंकी में पानी के साथ मिलाएं। कभी भी टंकी में कीटनाशक न डालें। कीटों के नियंत्रण के लिए हर मौसम में कीटनाशक बदलकर डालें और इसका छिड़काव सुबह के समय करें।