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पूरी दुनिया में सबसे ज़्यादा गन्ने की खेती भारत में ही होती है, इसलिए चीनी का उत्पादन और निर्यात भी यहीं से सबसे ज़्यादा होता है। वैसे तो गन्ने की ज़्यादा खेती शरद और बसंत ऋतु में होती है, लेकिन इसकी कुछ किस्मों कों गर्मियों के मौसम में भी लगाया जा सकता है।
गर्मियों में गन्ने की खेती
वैसे तो हमारे देश में साल में गन्ने की बुवाई दो बार की जाती है, एक तो फरवरी-मार्च में और दूसरा अक्टूबर में। लेकिन अब गर्मियों में भी ग्रीष्मकालीन गन्ने की खेती की जा रही है, हालांकि शरद और बसंद ऋतु के मुकाबले गर्मियों में गन्ने की पैदावर कम होती है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखकर गर्मियों में भी अच्छी फसल प्राप्त की जा सकती है।
हमारे देश में गन्ने का सबसे ज़्यादा उत्पादन उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र औऱ पंजाब में होता है। ये किसानों की आमदनी का अच्छा ज़रिया है, क्योंकि गन्ने की मांग हमेशा बनी रहती है। इससे चीनी और गुड़ बनने के साथ ही इथेनॉल बनाने में भी गन्ने का इ्स्तेमाल होता है। इससे किसानों को अपनी उपज की अच्छी कीमत मिल जाती है। तो अगर कोई किसान गेहूं की कटाई के बाद गर्मियों यानि अप्रैल-मई में गन्ने की बुवाई करना चाहता है, तो उसे कुछ बातों का ध्यान रखना होगा, ताकि उसे अच्छी उपज मिल सके।
गर्मियों के उगाई जाने वाली किस्में
गन्ना एक प्रमुख नकदी फसल है, जिसकी सबसे ज़्यादा खेती उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि गेहूं की कटाई के बाद अप्रैल-मई में भी गन्ने की खेती की जा सकती है और इसके लिए गन्ने की अच्छी किस्म सीओएच-35 और सीओएच-37 मानी जाती हैं। गर्मियों में इसकी खेती उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड में की जाती है। सीओएच-37 किस्म की बुवाई मई के पहले हफ़्ते तक की जा सकती है। ये किस्म तेज़ी से बढ़ती है और इसका गन्ना मोटा, नरम और बहुत रसीला होता है।
गर्मियों में गन्ने की बुवाई
गन्ने की बुवाई से पहले खेतों को अच्छी तरह से समतल कर लें। बुवाई से पहले गन्ने के टुकड़ों को 24 घंटे के लिए पानी में भिगोकर रख दें। इससे अंकुरण अच्छा होता है। बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति के बीच 60 सें.मी. की दूरी रखें। बुवाई के करीब 3 महीने बाद 60-75 किलो नाइट्रोजन (130-163 किलो यूरिया) प्रति हेक्टेयर की दर से टॉप ड्रेसिंग करें। अगर बुवाई से पहले उस खेत में गन्ने की ही फसल की कटाई की थी, तो पलेवा करके ही बुवाई करें।
गन्ने की बुवाई द्वि-पंक्ति विधि से करें, क्योंकि अधिक बढ़ने पर ये गिर जाता है। गन्ने के खेत में मिट्टी चढ़ाना और बांधना बहुत ज़रूरी है। ग्रीष्कालीन गन्ने में बुवाई के 6 हफ़्ते बाद पहली सिंचाई करें। जो गन्ने पहले से लगे हैं यानि शरदकालीन और बसंतकालीन फसल में मई महीने में 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें। गन्ने की सी.ओ.जे.-64 किस्म को ज़्यादा सिंचाई की ज़रूरत होती है, जबकि सी.ओ.-1148 और सी.ओ.एस.-767 किस्म में सूखे को सहने की भी क्षमता होती है।
मई महीने में गन्ने की बुवाई कर रहे हैं तो खेत में हल्की मिट्टी चढ़ा दें। इससे खरपतवार नियंत्रण में रहेंगे और फसल के गिरने का खतरा भी नहीं रहेगा। गन्ने की दो पंक्तियों के बीज कम समय में तैयार होने वाली फसलें जैसे मूंग, उड़द और लोबिया की भी बुवाई की जा सकती है। इससे किसानों को न सिर्फ़ अतिरिक्त लाभ होता है, बल्कि दालों में मौजूद नाइट्रोजन से मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बढ़ती है।
गर्मियों में गन्ने की सिंचाई, पत्तियां बिछाना
अगर गर्मियों में पानी की कमी हो और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी न मिले तो गन्ने की पंक्तियों के बीच पत्तियों की 7 से 8 सें.मी. मोटी परत बिछा दें। ऐसा करने से पेड़ी के खेत में सिंचाई के बाद नमी बनी रहेगी, खरपतवार भी कम उगेंगे और गन्ने के पत्ते धीरे-धीरे सड़कर कंपोस्ट खाद का काम करते हैं। गर्मियों के मौसम में गन्ने का ख़ास ध्यान रखने की ज़रूरत होती है, खासतौर से सिंचाई का। क्योंकि मई महीने में आमतौर पर गर्मी ज़्यादा होने के साथ ही तेज़ हवाएं भी चलती हैं। इसलिए मिट्टी में पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए हर 15-20 दिनों के अंतराल पर पानी दें।
गन्ने की फसल को कीटों से बचाना
अगर खेत में कीटों का असर दिखे तो फोरेट 10 जी की 30 किलो मात्रा का इस्तेमाल करें। गन्ने की फसल में कीट नियंत्रण और प्रबंधन के लिए बुवाई के समय एक एकड़ खेत में 2 लीटर क्लोरोपायरीफॉस को 400 लीटर पानी में घोलकर बुवाई की गई पंक्तियों में डालने की सलाह दी जाती है। अप्रैल से जुलाई के बीच 400 लीटर पानी में रैनेक्सीपैर 20 एस.सी. की 150 मि.ली. मात्रा घोलकर छिड़काव करें और जून के आखिर में 13 किलो कार्बोफ्यूरॉन को प्रति एकड़ खेत में डालें।
पेड़ी फसल में काला चिकटा और गुलाबी चिकड़ा कीट का प्रकोप अप्रैल-मई में होता है। ये पत्तियों का रस चूल लेते हैं जिससे पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और धीरे-धीरे मुर्झाने लगती हैं। इस पर नियंत्रण के लिए रॉकेट (प्रोफोनोफोससाइपर) प्रति एकड़ 400 मि.ली. को 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें। इसके अलावा, किसान रोग प्रतिरोधी किस्मों का भी चुनाव कर सकते हैं।
गन्ने की उन्नत किस्में
कालेख 11206- ये गन्ने की बेहतर किस्म है। इसकी लंबाई थोड़ी कम होती है, लेकिन मोटा ज़्यादा होता है। पंजाब, हरियाणा और उत्तराखंड का मौसम इसके लिए ज़्यादा अनुकूल है। ये दिखने में हल्का पीले रंग का होता है। कालेख 11206 किस्म की खेती करने पर आपको प्रति हेक्टेयर 91.5 टन पैदावार मिलेगी। इस किस्म की ख़ासियत है कि ये लाल सड़न रोग से लड़ने में सक्षम है।
कोलख 09204- गन्ने की ये भी एक बेहतरीन किस्म है। जिसे वैज्ञानिकों ने उत्तराखंड, पंजाब, राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मौसम और मिट्टी को ध्यान में रखकर विकसित किया है। इस किस्म का गन्ना ज़्यादा मोटा नहीं होता है और इसका रंग हरा होता है। ये प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उत्पादन देने में सक्षम है।
कोलख 14201- इस किस्म को उत्तर प्रदेश के मौसम और जलवायु को ध्यान में रखते हुए विकसित किया है। इस किस्म का गन्ना पीले रंग का होता है और बहुत पैदावार देता है। एक हेक्टेयर में कोलख 14201 की खेती करने पर 95 टन गन्ना प्राप्त होता है।
गन्ने की किस्म बदलते रहें
गन्ने की खेती से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए कृषि वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि किसानों को गन्ने की एक ही प्रजाति पर हमेशा निर्भर नहीं रहना चाहिए। समय-समय पर अलग-अलग किस्मों की बुवाई करनी चाहिए, क्योंकि किसान अगर लंबे समय तक एक ही प्रजाति की बुवाई करते हैं, तो उसमें कई तरह के रोग लग जाते हैं और पैदावार कम हो जाती है। इसलिए किसानों को अलग-अलग प्रजातियों का चुनाव करना चाहिए। गन्ने की खेती किसानों के लिए हमेशा फ़ायदेमंद होती है, क्योंकि इसकी मांग हमेशा ही बनी रहती है।
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