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मक्का को तो हर कोई जानता है, सभी ने मक्के से बने पॉपकॉर्न से लेकर कॉर्न फ्लेक्स कभी न कभी खाए होंगे। इससे और भी तरह के खाद्य पदार्थ जैसे स्टार्च वगैरह तैयार किया जाता है। विश्व के खाद्यान्न उत्पादन में इसका 25 प्रतिशत योगदान है। मक्के की फसल को ‘अनाज की रानी’ भी कहा जाता है।
भारत में मक्के की खेती 7.27 मिलियन हेक्टेयर में की जाती है। मक्के की फसल की ख़ास बात ये है कि ये सभी तरह की मिट्टी में उगाया जा सकता है। मक्के की फसल का इस्तेमाल कच्चे माल के रूप में कई तरह के रॉ प्रोडक्ट्स जैसे तेल, स्टार्च, शराब में भी किया जाता है। अब मक्के से इथेनॉल भी तैयार की जा रही है।
मक्के की खेती जायद मौसम में भी की जा सकती है, लेकिन इसे रबी के मौसम में भी उगाया जाता है। मक्का एक प्रमुख फसल है, जो मोटे अनाजों की फैमली से आती है। मक्के की खेती भारत में अधिकतर उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, राजस्थान, झारखंड, गुजरात राज्यों में की जाती है।
मक्के की खेती में जलवायु (Climate For Corn Farming)
मक्के की फसल की अच्छी पैदावार के लिए जलवायु और तापमान का उचित होना काफ़ी अहम है। मक्के की खेती तो वैसे गर्म और ठंडे दोनों ही इलाकों में हो जाती है, लेकिन ये उष्ण कटिबंधीय इलाकों में अच्छी उपज देती है। फसल लगाने के वक्त इसके पौधों को बढ़ने के लिए नमी की ज़रूरत होती है। बताते चलें कि 18 से 23 डिग्री का तापमान मक्के के पौधों को वृद्धि के लिए चाहिए होता है। वहीं 28 डिग्री सेटिंग्रेट तापमान बेहतर माना जाता है।
मक्के की फसल के लिए मिट्टी (Soil Condition For Corn Farming)
मक्के की खेती के लिए पानी निकलने की सही व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए बलुई मटियार से दोमट मिट्टी उपयुक्त होती है। इसके साथ ही मिट्टी का पीएच मान 6.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए, जिससे मक्के की फसल की अच्छी पैदावार होती है। पूसा के कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, जिस मिट्टी में खारे पानी की समस्या होती है वहां पर बिजाई किनारे-किनारे करनी चाहिए, जिससे जड़ों में नमक न पहुंच सके।
मक्के की फसल में बुवाई (Sowing In Corn Farming)
मक्के की फसल की खेती रबी, खरीफ़ और जायद सीज़न में आराम से की जा सकती है, लेकिन खरीफ़ के मौसम में मक्के की फसल बारिश पर निर्भर करती है। खरीफ़ में बुवाई का सही समय मध्य जून से मध्य जुलाई और अगस्त होता है। वहीं पहाड़ी इलाकों में मई के आखिरी से जून के शुरुआती वक्त मक्के की बुवाई के लिए अच्छे होते हैं।
पूसा के वैज्ञानिकों के अनुसार, मक्का के बीज को 3.5-5.0 सेंटीमीटर गहराई में लगाना चाहिए, जिससे बीज मिट्टी से ढक जाए और उसमें अंकुरण अच्छा हो। मक्के के बीजों को खेत में बोने से पहले उसे उपचारित करना चाहिए। सबसे पहले बीजो को थायरम या कार्बेन्डाजिम की 3 ग्राम मात्रा में प्रति किलो की दर से उपचारित करें। बीजों को मिट्टी के कीड़ो से बचाने के लिए प्रति किलो की दर से थायोमेथोक्जाम या इमिडाक्लोप्रिड 1 से 2 ग्राम की मात्रा से उपचारित करें। बारिश की शुरूआत में ही मक्के की फसल लगानी चाहिए, वहीं अगर सिंचाई करनी है तो 10 से 15 दिन पहले बुवाई कर लें।
मक्के की फसल में सिंचाई (Irrigation In Corn Farming)
मक्के की फसल में पूरे टाइम के लिए 400-600 मीमी पानी की ज़रूरत होती है। फूल के आने और दानों के भरने के वक्त पानी देना ज़रूरी है। ग्रीष्मकालीन फसल में 10-15 दिन के बीच सिंचाई करते रहना अहम है। पूरी फसल अवधि में 8 से 10 सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिसमें पहली तीन सिंचाई फूल आने के पहले और तीन फूल आने के बाद होती हैं।
मक्के की फसल की कटाई का समय (Harvesting In Corn Farming)
मक्के की फसल की अवधि पूरी होने के बाद 60 से 65 दिन के बाद, दाने वाली देसी किस्म बोने के 75-85 दिन बाद और संकर किस्म बोने के 90-115 दिन बाद फसल की कटाई कर लें। जब दानों में 25 फीसदी की नमी हो तब फसल की कटाई करना सही माना जाता है।
मक्के की फसल में रोग प्रबंधन (Disease Management In Corn Farming)
मक्के की फसल में कीट और रोगों से बचाने के लिए अच्छा प्रबंधन ज़रूरी है। धब्बेदार तनाबेधक कीट और गुलाबी तनाबेधक कीट मक्के की फसल में लगने वाले प्रमुख कीट हैं। मक्के की फ़सल डाउनी मिल्डयू, पत्तियों का झुलसा रोग और तना सड़न जैसे रोगों से भी खराब हो जाती है। इन रोगों से बचाव के लिए सही उपचार अहम है।
मक्के में पाए जाने वाले खनिज (Minerals Found In Corn)
मक्का में फाइबर (Fiber), आयरन (Iron), पोटेशियम (Potassium), फेरुलिक एसिड (Ferulic Acid ) होता है। मक्के में विटामिन ए पाया जाता है, जो शरीर के लिए काफ़ी ज़रूरी होता है।
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