ब्रूसीलोसिस (Brucellosis) मुख्य रूप से दुधारू पशुओं – गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सूअर और कुत्तों में फैलने वाली ऐसी बीमारी है जिससे संक्रमित पशु में बार-बार गर्भपात होने की तकलीफ़ ज़िन्दगी भर बनी रहती है, क्योंकि उनकी बच्चेदानी में ब्रुसेला (Brucella) बैक्टीरिया अपना टिकाऊ ठिकाना बना लेते हैं।
ब्रुसेला (Brucella) से संक्रमित पशु के दूध और गर्भाशय के स्राव से ज़िन्दगी भर इसके बैक्टीरिया निकलते रहते हैं। इसीलिए पशु के गर्भपात के समय निकलने वाले सभी पदार्थों का बेहद सावधानी से निपटान करना बेहद ज़रूरी है।
ब्रूसीलोसिस, वैसे तो रीढ़धारी पशुओं की बीमारी (zoonotic disease) है, लेकिन इसका बैक्टीरिया हवा के ज़रिये संक्रमित पशु से इंसान में भी पहुँच सकता है। हालाँकि इंसान से इंसान में ये बहुत कम फैलता है। लेकिन पशुपालकों में इससे संक्रमित होने का खतरा बहुत ज़्यादा होता है। मनुष्य में इसके संक्रमण का प्रमुख स्रोत कच्चे दूध और इससे बने उत्पाद हैं। पशुपालन, पशु अस्पताल या कसाईबाड़े से जुड़े किसी भी उम्र के नर-नारी इसके शिकार बन सकते हैं।
ब्रूसीलोसिस का इतिहास
ब्रूसीलोसिस की पहचान 1886 में हुई। इसे माल्टा बुखार (Malta fever) या Mediterranean fever (भूमध्यसागरीय ज्वर) या ‘लहरदार बुखार’ भी कहते हैं। ब्रुसेला बैक्टीरिया की प्रजातियों के नाम मेलिनटेंसिस, अबोर्टस, सुइस और केनिस (Melitensis, Abortus, Suis and Canis) हैं। अमेरिकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केन्द्र (CDC) के मुताबिक, ब्रूसीलोसिस का बैक्टीरिया संक्रमित पशु के कच्चे दूध या कम पका हुआ माँस खाने से इंसान में पहुँचता है, लेकिन इंसान से इंसान में बहुत कम फैलता है। लेकिन पशुपालकों में इससे संक्रमित होने का खतरा बहुत ज़्यादा होता है।
चीन में ब्रूसीलोसिस का बड़ा हमला
दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान शहर में कोरोना विस्फोट होने के बाद जुलाई-अगस्त 2020 में वहाँ से 1400 किलोमीटर दूर लांझोउ शहर में पशुओं के बेहद संक्रामक रोग ब्रूसीलोसिस ने भी सिर उठा लिया था। हालाँकि, चीन के उत्तर-पूर्वी प्रान्त गांसु (Gansu) की राजधानी लांझोउ के स्वास्थ्य आयोग (Health Commission of Lanzhou) ने त्वरित उपाय करके सितम्बर तक ब्रूसीलोसिस पर काबू पा लिया, लेकिन तब तक 29 लाख की आबादी वाले लांझोउ शहर में 14,646 लोग इसकी चपेट में आ चुके थे।
इस घटना के बाद हुई जाँच से पता चला कि जानवरों के लिए ब्रुसेला के टीकों का उत्पादन करने वाली फैक्ट्री में साफ़-सफ़ाई के लिए ख़राब कीटाणुनाशक का इस्तेमाल होने से प्रदूषित अपशिष्ट में मौजूद ब्रुसेला बैक्टीरिया हवा में घुल गये। इससे लांझोउ के पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान में संक्रमण फैल गया। इसके बाद, जनवरी 2021 में सरकार ने दोषी कारखाने का लाइसेंस और उसके सभी उत्पादों को रद्द कर दिया। फरवरी में कारखाने ने सार्वजनिक रूप से माफ़ी माँगने का बयान जारी करके बताया कि उसने घटना के लिए ज़िम्मेदार 8 लोगों को ‘कड़ी सज़ा’ दी है।
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ब्रूसीलोसिस के लक्षण – पीड़ित पशु के पैरों के जोड़ों में भी सूजन नज़र आती है
पशुओं में ब्रूसीलोसिस का प्रबन्धन
संक्रमण का ज़रिया – ब्रूसीलोसिस से पीड़ित पशु के दूध, माँस, ख़ून अथवा उसके जननांगों के स्त्राव से संक्रमित चारा खाने से या संक्रमित वीर्य से होने वाले कृत्रिम गर्भाधान से अन्य पशुओं में फैलता है। कई बार गर्भपात होने पर जब पशु चिकित्सक या पशु पालक पर्याप्त सावधानी को रखे बग़ैर जेर या गर्भाशय के स्त्राव को छूते हैं तो इससे भी ब्रुसीलोसिस के जीवाणु दूसरे शरीर में पहुँच जाते हैं। मनुष्यों में ब्रुसीलोसिस रोग के पहुँचने की सबसे बड़ी वजह संक्रमित पशु के कच्चे दूध के सेवन को माना गया है।
ब्रूसीलोसिस के लक्षण – पशुओं में गर्भावस्था की अन्तिम तिमाही में गर्भपात होना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। मादा पशुओं में जेर का रूकना और गर्भाशय में सूजन तथा नर पशुओं के अंडकोष की सूजन की वजह ब्रूसीलोसिस होती है। कई बार पीड़ित पशु के पैरों के जोड़ों में भी सूजन नज़र आती है। इसे हाइग्रोमा कहते हैं। ब्रूसीलोसिस से संक्रमित इंसान को तेज़ बुख़ार आता है, लेकिन ये बार-बार चढ़ता-उतरता रहता है। इसके अलावा जोड़ों और कमर में दर्द भी होता रहता है।
ब्रूसीलोसिस का उपचार – पशुओं के लिए ब्रूसीलोसिस के इलाज़ की कोई स्थायी दवा नहीं है। लेकिन उन्हें इंसानों को दी जाने वाली एंटीबायोटिक दवाओं से काफ़ी हद तक राहत मिल जाती है। हालाँकि, इन दवाईयों के इस्तेमाल के बाद भी संक्रमित पशु को बहुत ज़्यादा साफ़-सफ़ाई से रखने और उसके मल-मूत्र तथा दूध-माँस वग़ैरह का बहुत एहतियात के साथ इस्तेमाल करना ज़रूरी है। लेकिन जो पशु इस बीमारी से संक्रमित नहीं हैं, उन्हें 4 से 8 महीने की उम्र के दौरान ब्रुसेल्ला एस-19 वैक्सीन का टीका लगवा बचाव किया जाना चाहिए।
ब्रूसीलोसिस से बचाव – नये खरीदे गये पशुओं की ब्रुसेला संक्रमण की जाँच करवाये बग़ैर अन्य स्वस्थ पशुओं के साथ कभी नहीं रखना चाहिए। अगर किसी पशु को गर्भधारण की तीसरी तिमाही में गर्भपात हुआ हो तो उसे फ़ौरन बाकी पशुओं से अलग-थलग करके आसपास की जगह को फ़िनाइल से धोकर जीवाणु रहित रखना चाहिए, क्योंकि इसके स्त्राव से अन्य पशुओं के संक्रमित होने का ख़तरा बहुत ज़्यादा होता है।
जिस पशु का गर्भपात हुआ हो उसके ख़ून की जाँच करानी चाहिए। गर्भपात वाले मृत पशु और जैर को चूने के साथ मिलाकर ज़मीन में गहराई से गाड़ देना चाहिए। ताकि कोई अन्य जानवर या पक्षी उस तक नहीं पहुँच सके। ब्रूसीलोसिस की रोगी मादा के कच्चे दूध को भी किसी अन्य पशु या इंसान को नहीं पिलाना चाहिए। ऐसे दूध को हमेशा उबालकर (pasteurization/ sterilization) ही इस्तेमाल चाहिए। ख़ुद पशुपालकों को भी संक्रमित स्त्राव, मल-मूत्र आदि के सम्पर्क से बचना चाहिए क्योंकि ये उन्हें भी बीमार कर सकता है।
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इंसानों में लक्षण – शुरुआती लक्षणों में बुख़ार, कमज़ोरी, बेचैनी, सिरदर्द, भूख में कमी, थकान, माँसपेशियों और जोड़ों तथा पीठ में दर्द शामिल हैं। इसके अलावा, बार-बार बुख़ार के कम-ज़्यादा होने, गठिया, हृदय (endocarditis) की सूजन, अत्यधिक थकान, अवसाद, यकृत और तिल्ली (liver and spleen) तथा अंडकोष की सूजन जैसे लक्षण लम्बे अरसे तक बने रह सकते हैं। ब्रूसीलोसिस की जटिलताएँ शरीर की किसी भी अंग प्रणाली को प्रभावित कर सकती हैं।
इंसानों में संक्रमण का ज़रिया – ब्रुसेला प्रजाति के बैक्टीरिया धूल, गोबर, पानी, गाढ़े घोल, गर्भपात भ्रूण, मिट्टी, माँस और डेयरी उत्पादों में लम्बी समय तक जीवित रह सकते हैं। इनसे ही ये मनुष्यों में पहुँचते हैं। संक्रमित पर्दार्थों से सीधे सम्पर्क के अलावा बैक्टीरिया हवा के रूप में साँस के साथ भी शरीर में पहुँच सकते हैं। लेकिन एक संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आये दूसरे व्यक्ति तक इनका पहुँचना बेहद कम होता है।
इंसानों में निदान – निदान (Diagnosis) के लिए दो स्तर वाले प्रयोगशाला परीक्षणों की ज़रूरत पड़ती है। पहले ‘रोज़ बंगाल टेस्ट’ (Rose Bengal test, RBT) और ‘स्टैंडर्ड एग्लूटीनेशन टेस्ट’ (Standard agglutination test, SAT) किया जाता है और इनमें से किसी एक में भी पॉजिटिव होने पर ELISA IgG और Coombs IgG टेस्ट किया जाता है।
इंसानों में उपचार – ब्रूसीलोसिस का इलाज़ चिकित्सक से सलाह से ही किया जा सकता है। वो मरीज़ की ज़रूरत को देखते हुए दो से तीन सप्ताह के लिए एंटीबायोटिक दवाओं Aureomycin, Chloramphenicol, Terramycin, Streptomycin and Sulfadiazine की अलग-अलग समन्वय का इस्तेमाल करके मरीज़ को स्वस्थ होने में मदद करते हैं। कई बार उपचार कई महीनों लम्बा भी चल सकता है।
ब्रूसीलोसिस से बचाव का तरीका – मनुष्य को ब्रुसेलोसिस से बचने का सबसे तर्कसंगत तरीका संक्रमित जानवरों का उन्मूलन है। लोगों को बिना पाश्चरीकृत दूध और उससे बने उत्पादों के सेवन से बचने तथा माँस को पर्याप्त रूप से पकाकर खाने के लिए जागरूक करना चाहिए। जहाँ ब्रूसीलोसिस का जोख़िम अधिक हो, वहाँ पशुओं को टीका लगवाकर सुरक्षित रखना चाहिए। कुलमिलाकर, पशुओं के गर्भपात के बाद निकलने वाले पदार्थों (रक्त, गर्भनाल और झिल्ली वग़ैरह) का निपटारा बेहद सावधानी से करना पशुओं और मनुष्यों दोनों की सुरक्षा के लिए अनिवार्य है।
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