शायद ही किसी पशुपालक को मुँहपका-खुरपका रोग (Foot-and-mouth disease, FMD या hoof-and-mouth disease) के बारे में नहीं मालूम हो। फिर भी इस लेख में किसानों को कोई न कोई नयी बात ज़रूर जानने को मिलेगी। कोरोना की तरह FMD भी एक बेहद संक्रामक विषाणुजनित रोग हैं। इसे जानवरों का सबसे संक्रामक रोग माना गया है। यह ऐसे तकरीबन सभी स्तनधारी (Mammals) जानवरों या पशुओं में पाया जा सकता है जिनके खुर बीच से विभाजित होते हैं।
FMD का कोई स्थायी उपचार नहीं है, लेकिन यदि गाय, भैंस, भेंड़, बकरी, सूअर आदि पशुओं को FMD का टीका लगवा दिया जाए तो वो इससे ज़िन्दगी भर के लिए सुरक्षित हो जाते हैं। इसीलिए सभी सरकारी पशु चिकित्सालयों में FMD का टीका मुफ़्त लगाया जाता है। ताकि देश के पशुधन को सुरक्षित रखा जा सके। इसीलिए पशुपालकों को चाहिए कि वो छह महीने से बड़े अपने पशुओं को FMD का टीका ज़रूर लगवाएँ। टीकाकरण हमेशा नयी और साफ़ सुई से ही होना चाहिए।
धरती के FMD मुक्त क्षेत्र
मुँहपका-खुरपका रोग एक क्षेत्रीय महामारी (endemic) है। इसके वायरस सात किस्म या सीरोटाइप के होते हैं। इन्हें A, O, C, SAT1, SAT2, SAT3 और Asia1 के नामों से जाना जाता है। दुर्भाग्यवश एक सीरोटाइप से हुए संक्रमण के बाद भी जानवरों में दूसरे सीरोटाइप के ख़िलाफ़ प्रतिरोधकता विकसित नहीं होती है। FMD वायरस के परिवार का वैज्ञानिक नाम Picornaviridae (पाइकोरनावाईराइडिया) है। ये Aththovirus जीन्स समुदाय का सदस्य है। FMD के वायरस एशिया, अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिण अमेरिका के कुछ इलाकों में ही मिलते हैं। ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, अमेरिका के ज़्यादातर क्षेत्रों को FMD मुक्त माना गया है।
क्यों प्राकृतिक आपदा है FMD?
पशुपालकों के लिए FMD भारी तबाही लेकर आता है क्योंकि इससे संक्रमित पशु बहुत तेज़ी से कमज़ोर होने लगते हैं। उनका दूध उत्पादन तेज़ी से गिरने लगता है। FMD से पीड़ित पशु उपचार के बाद महीनों तक जल्द ही हाँफते लगते हैं। उसकी प्रजनन क्षमता वर्षों तक प्रभावित रहती है। पशुओं में गर्भपात की आशंका बढ़ जाती है। उसके शरीर के रोयों और खुर का आकार बहुत बढ़ जाता है।
किसी भी पशुपालक के लिए दिनों-दिन कमज़ोर होते अपने पशुओं के तिल-तिल करके मौत के मुँह में जाते हुए देखना बहुत कष्टकारी होता है क्योंकि आमतौर पर पशुपालक अपने पशुओं को अपने परिवार के अभिन्न अंग की तरह पालते हैं। लिहाज़ा, FMD पीड़ित पशु की तकलीफ़ उनसे देखी नहीं जाती। FMD से पीड़ित पशु उत्पादकता गिरने से पशुपालक को ज़बरदस्त आर्थिक चोट पड़ती है। वैसे यदि पशुपालक ने पशु-बीमा करवा रखा हो तो उसे इससे काफ़ी राहत मिल सकती है, लेकिन दुर्भाग्य से भारत में पशु-बीमा बेहद कम प्रचलित है।
मुँहपका-खुरपका रोग का स्वभाव
मुँहपका-खुरपका रोग के फैलने का कोई मौसम निश्चित नहीं होता। ये कभी भी किसी गाँव में पहुँचकर उसके पशुओं में फैल सकता है। FMD पीड़ित पशु को तेज़ बुखार हो जाता है। उसके मुँह, मसूड़े, जीभ के ऊपर-नीचे और होंठों के भीतरी हिस्सों तथा खुरों के बीच की जगह पर छोटे-छोटे दाने उभर आते हैं। जल्द ही ये दाने आपस में मिलकर बड़ा छाला बन जाते हैं। फिर यही छाले फूटकर जख़्म का रूप से लेते हैं।
संक्रमित पशु जुगाली करना बन्द कर देते हैं। उनके मुँह से खूब लार गिरती रहती है। उन्हें चारा खाने में बहुत कष्ट होता है, इसलिए वो खाना छोड़ देते हैं और देखते ही देखते बहुत सुस्त पड़ जाते हैं। खुरों में जख़्म होने की वजह से बीमार पशु लंगड़ाकर चलता है। कीचड़-मिट्टी के सम्पर्क में आने पर इन्हीं जख़्मों में मवाद भरने लगता है। पशुओं को चलने में बहुत दर्द होता है। वो लंगड़ाते हैं। दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन एकदम से गिर जाता है। वे कमज़ोर होने लगते हैं।
ये भी पढ़ें: पशु पालन में कैसे बढ़ेगी आमदनी?
मुँहपका-खुरपका रोग के मुख्य लक्षण
- संक्रमित खुर वाले पैर को बार-बार पटकना या झाड़ना
- पैरो में खुर के आस-पास सूजन
- लंगड़ाकर चलना
- एक से दो दिन तक तेज़ बुख़ार होना
- खुर में घाव होना और घावों में मवाद (Maggots) पड़ना
- कभी-कभी खुर का पैर से अलग हो जाना
- मुँह से अत्यधिक लार का गिरना
- जीभ, मसूड़ों और खुरों के बीच की संकरी जगहों पर छाले पड़ना
- पशुओं की उत्पादन क्षमता में भारी गिरावट
मुँहपका-खुरपका रोग का उपचार
ज़्यादातर FMD पीड़ित पशु सही इलाज़ पाकर स्वस्थ हो जाते हैं। उनके मुँह के छाले और जख़्म भर जाते हैं। हालाँकि, उन्हें पूरी तरह से स्वस्थ और सामान्य होने में महीनों लगते हैं। संकर नस्ल वाले पशुओं के लिए कभी-कभी FMD मौत का कारण भी बन जाते हैं। इसीलिए FMD के लक्षण दिखते ही किसानों को पशु चिकित्सक से परामर्श लेकर उपचार शुरू करने में देरी नहीं करनी चाहिए।
FMD का देसी और घरेलू उपचार
रोगग्रस्त पशु के पैर को नीम और पीपल की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो से तीन बार धोना चाहिए। प्रभावित पैरों और खुरों को फिनाइल वाले पानी से दिन में दो-तीन बार धोकर जख़्मों को मक्खी को दूर रखने वाले मलहम का प्रयोग करना चाहिए। मुँह के छाले को 1 प्रतिशत फिटकरी अर्थात एक लीटर पानी में 10 ग्राम फिटकरी का घोलकर दिन में तीन बार ज़रूर धोना चाहिए। बीमार पशुओं को मुलायम और सुपाच्य भोजन देना चाहिए।
ये भी पढ़ें: पशु किसान क्रेडिट कार्ड में मिलेगा पशुपालकों को 1.60 लाख तक लोन, ऐसे करें अप्लाई
FMD से जुड़ी ख़ास सावधानियाँ
किसानों के लिए FMD के संक्रमण को फैलने से रोकना सबसे बड़ी चुनौती होती है। यदि ये काम कुशलता और सावधानी से नहीं किया गया तो देखते ही देखते परिवार, आसपास और यहाँ तक कि गाँवों के तमाम पशु भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। इसीलिए FMD से पीड़ित पशु को बेहद साफ़ और हवादार जगह पर अन्य स्वस्थ पशुओं से दूर रखना चाहिए। बीमार पशु की देखरेख करने वाले व्यक्ति को भी अपने हाथ-पाँव को अच्छी तरह साफ़ करने के बाद ही बाक़ी पशुओं के सम्पर्क में जाना चाहिए।
FMD से पीड़ित पशु के मुँह से गिरने वाले लार और खुरों से निकलने वाले मवाद वग़ैरह को पुआल, भूसा, घास वग़ैरह के सम्पर्क नहीं आने देना चाहिए। यदि किसी वजह से ऐसा नहीं हो सके तो बीमार पशु के सम्पर्क में आयी चीज़ों को या तो जला देना चाहिए या फिर उस पर चूना छिड़ककर उसे ज़मीन में गाड़ देना चाहिए।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।