भारत में मछली पालन व्यवसाय बहुत तेजी से बढ़ रहा है। देश के अधिकांश लोग अपनी आजीविका के लिए इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। और अच्छा मुनाफा भी कमा रहे है। लेकिन कभी-कभी जरा सी लापरवाही और जानकारी के अभाव में मछली पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इसलिए वर्षभर इनकी देखरेख करना काफी जरूरी है।
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बता दें हाल ही में थाई मांगुर नामक मछली को पूरे देश में प्रतिबंधित कर दिया गया। इसका सीधा सा कारण है पर्यावरण। थाई मांगुर मछलियों से हमारे पर्यावरण को भारी नुकसान झेलना पड़ रहा हैं। वैसे तो राष्ट्रीय हरित क्रांति न्यायधिकन ने थाई मांगुर मछलियों के पालन पर साल 2000 में ही रोक लगा थी।
हालांकि फिर भी लोग चोरी छुपे मत्स्य पालन कर रहे थे। लेकिन फिर साल जनवरी 2019 में सरकार ने मछली पालन पर प्रतिबंध लगा दिया। साथ ही प्रदेशों और केन्द्र शासित राज्यों की मछलियों को नष्ट करने का आदेश दिया।
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बीते दिनों साल 2021 में मत्स्य विभाग के अधिकारियों में लगभग 15 टन थाई मांगुर मछलियों के बच्चों को नष्ट कर दिया। इसके अलावा अलग अलग राज्यों में भी मछली पालन पर रोक लगा दी। जहां चोरी से थाई मांगुर मछलियों का व्यवसाय किया जा रहा था।
उत्तर प्रदेश में मत्स्य विभाग के उप निदेशक डॉ. हरेंद्र प्रसाद गाँव कनेक्शन को बताते हैं। वाराणसी जिले में मत्स्य विभाग के अधिकारियों को सूचना मिली कि ट्रक में थाई मांगुर मछलियां लायी जा रहीं हैं। अधिकारियों ने पुलिस की मदद से ट्रक को पकड़ा तो उसमें 15 टन थाई मांगुर के बच्चे मिले, जिसे पश्चिम बंगाल से हापुड़ ले जा रहे थे। पश्चिमी यूपी में चोरी से लोग इसका पाल रहे हैं। जबकि उन्हें पुलिस बार पकड़ चुकी है।
मछली पालन में प्रतिबंध लगाने के बाद भी मंडियों में खुले आम इन्हें बेचा जाता हैं। दरअसल, जहां दूसरी मछलियां पानी में ऑक्सीजन कि कमी से अपना दम तोड़ देती है। वहीं थाई मांगुर मछली इसमें जिंदा रहती हैं। अन्य जलीय छोटे छोटे कीड़ों मकोड़ों के अलावा दूसरी मछलियों को भी खा लेती हैं। और तालाब का पर्यावरण खराब करती हैं।
इसीलिए एनजीटी ने इसे पूरी तरह से बैन कर दिया है। इससे पहले भी महाराष्ट्र में साल 2020 में तकरीबन 32 टन थाई मांगुर मछलियों के बच्चों को नष्ट किया गया था।