भारत में गाय पालन (Cow Farming/Dairy farming) एक बेहतरीन व्यवसाय है। देसी गाय के दूध की पौष्टिकता को देखते हुए इसकी मांग अधिक है। छोटे बच्चों को भी डॉक्टर माँ के दूध के बाद गाय का दूध देने की ही सलाह देते हैं।
आइये आज हम देसी गाय और उनकी नस्लों के बारे में जानते हैं…
देसी गाय की पहचान
भारत में देसी गाय (Desi Cow) की पहचान करना काफी आसान है। देसी गायों में कूबड़ पाया जाता है। इसी कारण इन्हें कूबड़ धारी भारतीय नस्ल की गाय भी कहा जाता है।
ज्यादा दूध का उत्पादन देने वाली देसी गाय
देसी गाय की नस्ल जिस क्षेत्र की है, अगर उसी क्षेत्र में पाली जाए, सही से दानापानी दिया जाए तो उत्पादन अच्छा होता है। आज हम आपको बताएंगे कि किस क्षेत्र में गाय की कौन सी नस्ल ज्यादा फायदा दे सकती है।
गिर नस्ल (Gyr cattle Breed)
गिर नस्ल की गाय मूलतः गुजरात के इलाकों से आती हैं। गिर के जंगलों में पाए जाने के कारण इनका नाम “गिर” पड़ा है। इन्हें भारत मे सबसे ज्यादा दूध उत्पादन देने वाली नस्ल माना जाता है। इस नस्ल की गाय एक दिन में 50-80 लीटर तक दूध दे सकती है। इस गाय के थन बड़े होते हैं। देश ही नहीं, विदेशों में भी इस गाय की काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील के लोग गिर गाय को पालना पसंद करते हैं।
साहीवाल नस्ल (Sahiwal cattle Breed)
साहीवाल गायों को दूध व्यवसायी काफी पसंद करते हैं। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध उत्पादन करती है। एक बार मां बनने पर लगभग 10 महीने तक ये दूध देती है। इन्हें भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है। मूल रूप से ये नस्ल पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है।
राठी नस्ल (Rathi Breed Cow)
राठी नस्ल राजस्थान की है। राठस जनजाति के नाम पर इनका नाम राठी पड़ा है। इन्हें ज्यादा दूध देने के लिए जाना जाता है। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6-8 लीटर दूध देती है।
हल्लीकर नस्ल (Hallikar Breed)
हल्लीकर गाय कर्नाटक में पायी जाने वाली नस्ल है। मैसूर (कर्नाटक) में ये नस्ल सबसे ज्यादा पायी जाती है। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।
हरियाणवी नस्ल (Haryana Cow Breed)
नाम के मुताबिक ये नस्ल हरियाणा की है। मगर उत्तर प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्रों में भी इसे पाया जाता है। ये गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में भी अच्छा कार्य करते हैं।
कांकरेज नस्ल (Kankrej Breed of Cattle)
कांकरेज नस्ल मूलतः गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है। ये प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती हैं। कांकरेज गायों का मुंह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं।
लाल सिंधी नस्ल (Red Sindhi Breed of Cattle)
लाल सिंधी गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु में पाई जाती है। अपने रंग के कारण इन्हें लाल सिंधी गाय कहा जाता है। लाल रंग की इस गाय को अधिक दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है। ये सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। पहले ये नस्ल सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थी लेकिन अब पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पाई जाती है।
कृष्णा वैली नस्ल (Krishna Valley, Indian breed of draught cattle)
ये नस्ल मूल रूप से कर्नाटक की है। सफेद रंग की इस गाय के सींग छोटे और मोटी कद काठी होती है। एक बार मां बनने के बाद ये औसतन 900 दूध देती है।
नागौरी नस्ल (Nagori Breed)
राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाने वाली इस नस्ल का रंग हल्का लाल, सफेद और हल्का जामुनी होता है। एक बार मां बनने के बाद ये नस्ल 600 से 1000 लीटर तक दूध देती है। इसके दूध में वसा 4.9% होती है। इस नस्ल के बैल अच्छे भारवाहक क्षमता के होते हैं।
खिल्लारी नस्ल (Khillari cattle breed)
ये नस्ल मूल रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिमी महाराष्ट्र में पाई जाती है। इस प्रजाति का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बे और पूंछ छोटी होती हैं। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का वजन औसतन 450 किलो और गाय का औसतन 360 किलो होता है। इसके दूध में वसा लगभग 4.2% होती है। यह एक बार मां बनने के बाद यह गाय औसतन 240-515 लीटर दूध देती है।