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प्राकृतिक खेती का मुख्य आधार देसी गाय है। प्राकृतिक खेती (Natural Farming) कृषि की प्राचीन पद्धति में से एक है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार एक देसी गाय आपकी 30 एकड़ तक खेती के लिए रामबाण साबित हो सकती है। इससे रासायनिक खेती के मुकाबले कम लागत आती है और किसान का जीवन खुशहाल हो सकता है। आज हम आपको बताएंगे प्राकृतिक खेती में देसी गाय कैसे निभा रही है अहम भूमिका।
कहाँ से विकसित हुई देसी गाय?
पद्मश्री सम्मानित कृषि विशेषज्ञ सुभाष पालेकर का मानना है कि आज की हमारी देसी गाय एक जंगली प्राणी के रूप में करोड़ों साल पहले प्रकृति में विकसित हुई थी। 1.5 लाख साल पहले ‘देसी गाय और जर्सी होलस्टीन’ इन दोनों का मूल रूप एक ही था ‘बॉस जनरा’। प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटनाओं के कारण बॉस जनरा के शरीर में जनुकीय (genetic) बदलाव आया। जिसके परिणाम स्वरूप उसकी तीन शाखायें निकलीं –
1.देसी गाय (Boss Indicus)
2.जर्सी होलस्टीन (Boss taurus)
3.याक (Yak)
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प्राकृतिक खेती पर 16 दिसंबर 2021 को राष्ट्रीय प्राकृतिक सम्मेलन में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने कहा “आचार्य देवव्रत और अन्य बहुत सारे कृषि वैज्ञानिकों ने एक देसी गाय से 30 एकड़ भूमि की प्राकृतिक खेती हो पाए और उसके लिये एक रुपये का खाद या कीटनाशक का भी उपयोग न करना पड़े, इस प्रकार के प्रयोग को आगे बढ़ाया है।”
एक देसी गाय से 30 एकड़ खेती का क्या है फॉर्मूला?
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार एक देसी गाय औसतन एक दिन में 10 किलो गोबर देती है। भूमि में जीवाणुओं का रोजन/जामन के लिए (Culture of Fermentation) देसी गाय का गोबर सबसे अधिक लाभकारी विकल्प साबित हुआ है। इसी प्रक्रिया के लिए महीने में एक बार 10 किलो गोबर का इस्तेमाल करना चाहिए। तो इसे ऐसे समझ सकते हैं एक देसी गाय से हमें एक महीने में औसतन 300 किलो गोबर मिलेगा जो हम 30 एकड़ भूमि में इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्राकृतिक खेती में देसी गाय का किन-किन तरीकों से होता है इस्तेमाल?
10 किलो देसी गाय के गोबर में 30 लाख करोड़ उपयुक्त सूक्ष्म जीवाणु (Micro-organisms) होते हैं। अलग-अलग मीठे प्रदार्थों का इस्तेमाल करके किण्वन क्रिया (Fermentation Process) को बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए गुड़, फलों का गूदा (Fruit Pulp) का इस्तेमाल कर सकते हैं।
प्राकृतिक उर्वरक जैसे जीवामृत, घनजीवामृत और बीजामृत बनाने के लिए देसी गाय के गोबर और गौमूत्र का प्रयोग किया जाता है। जीवामृत और बीजामृत को खेत में डालने के बाद इसका असर 30 महीने तक अधिक रहता है। इसके बाद फिर से किसान इन्हें बनाकर खेत में डाल सकते हैं। इसके अलावा प्राकृतिक कीटनाशक जैसे ब्रह्मास्त्र, नीमास्त्र और अग्नि अस्त्र में भी इनका इस्तेमाल होता है।
इसमें किसान ध्यान रखें कि इस विधि की खेती में साहीवाल गाय व देसी गाय का ही इस्तेमाल करें। भैंस आदि पशुओं के गोबर या मूत्र का प्रयोग खेती के लिए ज़्यादा कारगर नहीं है।
देसी गाय के प्रति भी किसानों का बढ़ेगा रुझान
किसान इस विधि को अपनाते हैं तो उनका देसी गाय के प्रति रुझान बढ़ेगा। इससे देसी गायों को भी सहारा मिल सकेगा और आवारा पशुओं में कमी आएगी। जहां किसान और उसका परिवार गाय का दूध पीकर अपना स्वास्थ्य बेहतर करेंगे, वहीं गाय के गोबर और गौमूत्र से खेत का स्वास्थ्य भी बेहतर होगा।
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