ग्रामीण क्षेत्रों में जिन किसानों के पास खेती योग्य भूमि अधिक नहीं है, वह मुर्गी, हिरण और बकरी पालन से अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। अगर वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन किया जाए तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। ऐसा ही अंडमान और निकोबार के रहने वाले चंदन बिस्वास कर रहे हैं। दो साल के अंदर ही उन्होंने बकरियों की संख्या लगभग दोगुनी कर ली है और अब उनकी योजना 100 बकरियां पालने की है।
वैज्ञानिक तरीके से कर रहे बकरी पालन
दक्षिण अंडमान के मीठाखरी इलाके के रहने वाले चंदन बिस्वास इंजीनियरिंग ग्रैज्युएट हैं। उन्होंने नौकरी ढूंढ़ने की बजाय खेती-किसानी से जुड़े बकरी पालन व्यवसाय को चुना। 2018 में पोर्ट ब्लेयर के पशु विज्ञान प्रभाग ICAR-CIARI के संपर्क में आने के बाद इसकी शुरुआत की। विशेषज्ञों की सलाह से वह वैज्ञानिक तरीके से बकरी पालन कर रहे हैं। उन्होंने 2 नर और 27 मादा बकरियों के साथ बकरी पालन की शुरुआत की। उनके रहने के लिए बांस और स्थानीय रूप से उपलब्ध चीज़ों से शेड बनाया। चारे में अजोला घास और कई मिनरल सप्लिमेंट्स देते हैं।
चंदन बिस्वास वैज्ञानिक तरीके से ब्रीडिंग भी कराते हैं। बकरियों के मूत्र और मल से जैविक खाद बनाते हैं। चारे की खेती भी खुद ही करते हैं। वैज्ञानिक पद्धित अपनाने की वजह से ही सिर्फ़ दो साल में उनकी बकरियों की संख्या 29 से 73 हो गई।
मुर्गी पालन से भी करते हैं कमाई
वह मुर्गी की एक नस्ल वनराजा भी पाल रहे हैं। उनके पास 250 वनराजा मुर्गी की नस्ल है। इसके अंडे और मीट की होम डिलीवरी करते हैं। वैज्ञानिकों की सलाह से वह कृषि अपशिष्टों को खाद में बदल देते हैं। इसे 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचते हैं।
तकनीक का इस्तेमाल
ICAR-CIARI ने उन्हें सभी तरह की तकनीकी सलाह दी। मादा और नर बकरियों का चयन, वैज्ञानिक प्रबंधन, प्रजनन प्रबंधन, खनिज सप्लीमेंट, बकरी के मल का खाद के रूप में इस्तेमाल, हेल्थ कैलेंडर, शरीर के वजन की रिकॉर्डिंग, विकास पैरामीटर आदि चीज़ों के बारे में बताया। उन्होंने खेत की बाड़ में मोरिंगा, ग्लिरिसिडिया, कटहल और सुबाबुल के पेड़ लगाए हुआ हैं। इनका उपयोग चारे के रूप में करते हैं,। इसके अलावा हाइब्रिड नेपियर और मक्का भी चारे के लिए उगाते हैं। वैज्ञानिक तकनीक के इस्तेमाल की बदौलत ही दो साल में बकरियों की संख्या 29 से 73 हो गई और उनका वज़न 20-25 किलो रहता है।
कितनी होती है आमदनी?
पिछले डेढ़ साल में वह 15 बकरियों को मांस के लिए बेच चुके हैं, जिनका वजन 22-25 किलो था। इन्हें 500-600 रुपये प्रति किलो की दर से बेचा गया। प्रजनन के लिए उन्होंने एक बकरी बेची, जिसका वज़न 32 किलो था, इसे 900 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचा गया। इसी दर से वो अपनी बकरियां बेचते हैं। इसके अलावा, 20 रुपये प्रति किलो के हिसाब से खाद बेचकर भी वह कमाई कर रहे हैं।
वैज्ञानिक पद्धित से बकरी पालन करने पर बकरियों की गुणवत्ता अच्छी होती है। वजन अधिक होने से मुनाफ़ा बढ़ता है। इसके अलावा, अपशिष्टों से खाद बनाकर अतिरिक्त कमाई की जा सकती है। चारा भी खुद ही उगाया जाता है, जिससे इसे खरीदने की ज़रूरत ही नहीं पड़ती यानी लागत कम हो जाती है।
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