खेती-किसानी की दुनिया में परम्परागत ज्ञान और सूझबूझ भले ही किसानों की थाती है, लेकिन देश का कृषि क्षेत्र जितना व्यापक और विशाल है, उसमें उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं के लिए भी अपार सम्भावनाएँ हैं, क्योंकि यही तबका सामान्य टैक्नीशियन से लेकर चोटी के कृषि वैज्ञानिक और एग्रीकल्चर इंज़ीनियर बनता है। इस तरह PCM (Physics, Chemistry & Mathematics) या PCB (Physics, Chemistry & Biology) जैसे विषयों में 12वीं पास करने के बाद छात्रों के लिए कृषि सेक्टर में भी अपना करियर सँवारने का रास्ता खुल जाता है।
कृषि क्षेत्र में 12वीं तक विज्ञान का विद्यार्थी रहने वालों के लिए BSc (Ag) से लेकर एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग तक के अनेक कोर्स मौजूद हैं। देश भर में कृषि विज्ञान से जुड़ी सैकड़ों शैक्षिक और शोध संस्थानों में प्रतिभाशाली युवाओं के लिए शानदार सम्भावनाएँ हैं। एग्रीकल्चर इंजीनियर्स भी इनमें से ही एक है। रोज़गार की दुनिया में इसकी बहुत डिमांड भी है, क्योंकि यही समुदाय किसानों को खेती के लिए बेहतरीन किस्म के बीज, उपकरण और अन्य संसाधन न सिर्फ़ उपलब्ध करवाते हैं बल्कि इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षित भी करते हैं। ताकि किसानों की पैदावार और आमदनी में लगातार इज़ाफ़ा होता रहे।
एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग का काम खेती-किसानी से नयी तकनीकों से जोड़ने और इसके लिए उन्नत फार्मिंग इक्विपमेंट्स डिज़ाइन करने, पार्ट्स बनाने और टेस्टिंग करने का काम करते हैं। इसके अलावा वाटर रिजर्वोयर्स, वेयरहाउसेज, बाँध और इससे जुड़े एग्रीकल्चरल इन्फ्रास्ट्रक्चर स्ट्रक्चर्स को डिज़ाइन और तैयार करने में भी योगदान देते हैं।
ये भी पढ़ें – भोपाल की रीना नागर ने आपदा को अवसर में बदला, बनायी मिसाल
एग्रीकल्चर इंजीनियर्स के कोर्स में दाख़िले के लिए ज़्यादातर सरकारी संस्थानों की ओर से प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया जाता है। इसके बारे में विभिन्न संस्थानों के वेबसाइट से नवीनतम जानकारी हासिल करनी चाहिए। शैक्षिक योग्यता के लिहाज़ से देखें तो आमतौर पर अभ्यर्थी के PCM और PCB में 50 प्रतिशत से अधिक अंक होना ज़रूरी होता है। एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग में डिप्लोमा या बीटेक या फिर बीई कोर्स कर सकते हैं। डिप्लोमा कोर्स की अवधि 3 साल और बीटेक या बीई कोर्स के लिए 4 साल होती है। कई प्राइवेट संस्थानों में प्रवेश परीक्षा के बग़ैर ही एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग कोर्स में एडमिशन दिया जाता है।
एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग के प्रमुख संस्थान
इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट, नयी दिल्ली
चौधरी चरण सिंह एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, हरियाणा
बिरसा एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, झारखंड
इलाहाबाद एग्रीकल्चरल इंस्टीट्यूट, उत्तर प्रदेश
महाराष्ट्र एनिमल एंड फिशरी साइंसेज यूनिवर्सिटी, महाराष्ट्र
पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, पंजाब
राजस्थान एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी, बीकानेर
ये भी पढ़ें – MSc की छात्रा तबस्सुम को मधुमक्खियों ने दी नयी पहचान
किस क्षेत्र में मिलेगा रोज़गार?
एग्रीकल्चरल इंजीनियरों को सरकारी नौकरी का भी ख़ूब विकल्प मिलता है। इन्हें फार्मिंग, फॉरेस्ट्री और फूड प्रोसेसिंग जैसे सेक्टर्स से जुड़ी निजी क्षेत्र की कम्पनियों में भी नौकरी मिलती है। ये इंजीनियर्स फूड मैन्युफैक्चरिंग और आर्किटेक्चर से जुड़ी सेवाओं में भी काम करते हैं और एग्रीकल्चर इंजीनियर, माइक्रो बायोलॉजिस्ट, एग्रीकल्चरल इंस्पेक्टर, एग्रोनॉमिस्ट सहित रिसर्चर की भी नौकरी पाते हैं। इसके अलावा कृषि शिक्षा और मार्केटिंग सम्बन्धी नौकरी का भी विकल्प है।