अमरूद की खेती (Cultivation of Guava): सर्दियों के मौसम में यदि अमरूद नहीं खाए, तो मानो कुछ नहीं खाया। लगभग सभी को अमरूद बेहद पसंद होते हैं। मीठे, रसीले और सबको पसंद आने वाले इस फल का जन्म अमेरिका में हुआ था।
आज इसकी खेती संपूर्ण भारत में की जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, कर्नाटक, उडीसा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों के अलावा पंजाब और हरियाणा में भी अमरूद की खेती की जाती है। सबका पसंदीदा यह फल लोगों को लाखों की आमदनी करवा रहा है। शीतल सूर्यवंशी भी ऐसे लोगों में से एक हैं, जो ऑर्गेनिक अमरूद की खेती करके लाखों कमा रहे हैं।
आइए जानते हैं शीतल सूर्यवंशी के बारे में-
लाखों की नौकरी छोड़ शुरू की अमरूद की खेती
शीतल सूर्यवंशी ने लाखों की नौकरी छोड़कर ऑर्गेनिक अमरूदों की खेती करना शुरू किया। इन्होंने 2015 में अमरूद की बागवानी का बिजनेस शुरू किया था। जब उन्होंने लाखों की नौकरी छोड़कर बागवानी करने की सोची, तब परिवार को यह बात पसंद नहीं आई और उन्होंने विरोध किया।
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महाराष्ट्र के सांगली जिले के अंकलखोप गांव में रहने वाले शीतल ने एमबीए करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम किया। उनका वेतन भी लाखों में था। 6 साल तक अलग-अलग पोस्ट पर काम करने के बाद एक दिन शीतल सूर्यवंशी ने नौकरी छोड़ दी। उन्होंने फैसला किया कि वे ऑर्गेनिक अमरूदों की खेती करेंगे।
कैसे की शुरूआत
किसान परिवार से होने के कारण शीतल सूर्यवंशी का लगाव हमेशा खेती की ओर बना रहा। यही कारण था कि लाखों का वेतन और अच्छी पोस्ट होने के बाद भी उन्होंने 2015 में नौकरी छोड़कर खेती को चुना। 34 साल के शीतल के पिता किसान हैं और दो भाई नौकरी करते हैं। शीतल के नौकरी छोड़कर खेती करने के फैसले से परिवार खुश नहीं था।
उनका मानना था कि खेती में मेहनत तो बहुत है, लेकिन मुनाफा ज्यादा नहीं है। ऐसे में अच्छी खासी नौकरी छोड़ना गलत है। इसके अलावा वे लोग जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहां पर ज्यादातर किसान गन्ने की खेती करते हैं। इसमें तो वैसे ही ज्यादा मुनाफा नहीं होता। इतना ही नहीं गन्ने की फसल तैयार होने में 15 से 16 महीनों का समय लग जाता है। इसमें पानी भी ज्यादा देना होता है और हर साल कल्टीवेशन की जरूरत भी पड़ती है। फैक्ट्री में फसल बिकने के बाद पैसों के लेन-देन में भी बहुत समय लगता है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर मैंने फैसला कर लिया था कि मैं गन्ने की खेती नहीं करूंगा। लेकिन पिताजी किसी और फसल को उगाने के पक्ष में नहीं थे। फिर भी मैंने उन्हें समझा-बूझा कर अंगूर की खेती की। लेकिन उसमें कुछ खास मुनाफा नहीं हुआ। इसी बीच मेरी मुलाकात अपने मित्र से हुई, जिसकी शिरडी में अमरूद की नर्सरी है। उसने मुझे बताया कि आजकल ऑर्गेनिक खेती का समय है। लोग ऑर्गेनिक चीजों को काफी पसंद कर रहे हैं। उसी ने मुझे ऑर्गेनिक अमरूद उगाने का आइडिया दिया।
शिरडी के बागानों से सीखा अमरूदों की खेती करना
इसके बाद मैंने शिरडी के बागानों में जाकर अमरूद की खेती करना सीखा। जब मैंने अमरूद की खेती का विचार अपने पिताजी को बताया तो वे इसके लिए तैयार नहीं थे। वे नहीं चाहते थे कि जहां सभी किसान गन्ना उगा रहे हैं, वहां मैं किसी और चीज की खेती करूं। उनका मानना था कि ऐसा करने में जोखिम बहुत है। पता नहीं मुनाफा होगा या नहीं परन्तु मैंने भी ठान लिया था। जैसे तैसे पिताजी को मना कर उनसे 2 एकड़ जमीन ली और उस पर अमरूद लगाने का फैसला किया।
रिसर्च करके ही काम शुरू किया
पहले अंगूरों की फसल में ज्यादा मुनाफा ना होने के कारण मैंने इस बार हर काम पूरी रिसर्च के साथ किया। मैंने अमरूद की 2 फसल लगाई। एक ललित और दूसरी जी विलास। ललित की साइज छोटी और जी विलास की साइज बड़ी होती है। अमरूद की एक किस्म थाइलैंड पिंक भी होती है, इसकी साइज भी बड़ी होती है। मैंने अलग-अलग शहरों में जाकर वहां अमरूद की डिमांड, उनका मार्केट और ट्रांसपोर्टेशन से जुड़ी पूरी जानकारी ली।
इतना ही नहीं मिट्टी कैसी हो, कौनसी नस्ल अच्छी रहेगी और किस तरह अमरूदों को मार्केट में बेचा जाए आदि बातों पर रिसर्च की। उसके बाद ही इस दिशा में कदम उठाया।
सबसे पहले 2 किस्म की फसल लगाई इससे लगभग 20 टन का प्रोडक्शन हुआ। करीब 3-4 लाख की आमदनी हुई। इससे हिम्मत मिली और ज्यादा जमीन पर अमरूद उगाने का फैसला किया। अमरूद की फसल का एक लाभ यह भी है कि एक बार इसका प्लांट लगा दिया, तो 10-12 साल तक दुबारा प्लांट लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। इस वजह से हर साल प्लांटेशन में जो खर्चा होता है, उसकी भी बचत होती है।
लगाना चाहते हैं अमरूदों से अन्य उत्पाद बनाने की प्रोसेसिंग यूनिट
शीतल बताते हैं कि पिछले साल बाढ़ आने और इस साल कोरोना की वजह से काफी नुकसान हो गया। लगभग 4 से 5 टन अमरूद पक के सड़ गया, लेकिन अब हालात सामान्य होने लगे हैं। अब तो इन्होंने 5 लोगों को भी रोजगार दिया है। ये सब मिलकर ऑर्गेनिक अमरूद की खेती करते हैं।
शीतल का कहना है कि वे एक प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के बारे में विचार कर रहे हैं। उनके अनुसार हर साल काफी मात्रा में अमरूद पक कर पेड़ से गिर जाते हैं या पूरे अमरूद बिक नहीं पाते। इससे होने वाले नुकसान से बचने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट मददगार साबित होगा। इसके जरिए दूसरे प्रोडक्ट तैयार किए जा सकेंगे।
कैसे करें अमरूद की खेती
ऑर्गेनिक अमरूद की खेती करने के लिए दो पौधों के बीच न्यूनतम 9 फीट की दूरी होनी जरूरी है। अमरूद के पौधे जुलाई से सितंबर माह में ही लगाए जाने चाहिए। शुरू में एक पौधे से लगभग 6-7 किलो तक अमरूद निकलता है, लेकिन बाद में यह संख्या बढ़कर 10 से 12 किलो तक हो जाती है। हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस जमीन पर खेती करना चाहते हैं, वो भी कम पानी वाली होनी चाहिए। इस पर बारिश का ज्यादा असर होता है।
यदि बुवाई का समय और जमीन सही है, तो उत्पाद भी अच्छा होगा। पौधों में केमिकल फर्टिलाइजर की जगह ऑर्गेनिक फर्टिलाइजर का उपयोग हो, तो इससे जमीन की उपजाऊ क्षमता में बढ़ोतरी होती है। केमिकल फर्टिलाइजर से पौधों को भी नुकसान होता है। यदि अमरूद की किस्म अच्छी हो, तो पौधे एक साल में तैयार हो जाते हैं।
मिला मेहनत का फल
कहते हैं कि मेहनत करने वाले की हार नहीं होती। शीतल सूर्यवंशी पर भी यह बात पूरी तरह सटीक बैठती है। ऑर्गेनिक अमरूद लगाने का उनका फैसला आज फायदेमंद साबित हो रहा है। अब हर दिन उनके बगीचे से लगभग 4 टन अमरूद निकलता है। इससे लगभग रोज 10 हज़ार तक की कमाई हो रही है। वे मुंबई, पुणे, सांगली आदि कई शहरों में अमरूद भेजते हैं। शीतल एक सीजन में लगभग 12 लाख तक की कमाई कर लेते हैं।