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बैंगन की खेती (Brinjal Farming): बैंगन की सबसे अधिक पैदावार में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर आता है। विश्व की 27 प्रतिशत बैंगन भारत में उगाया जाता है। देश में 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बैंगन उगाया जाता है। बैंगन की खेती (Eggplant Farming) पहाड़ी इलाकों को छोड़कर सभी क्षेत्रों में होती है। झारखंड राज्य में इसकी खेती कुल सब्ज़ी उत्पादन का लगभग 10 प्रतिशत है। भारत में बैंगन उगाने वाले मुख्य राज्य पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, कर्नाटक, बिहार, महाराष्ट्र , उत्तर प्रदेश और आंध्र प्रदेश हैं।
बैंगन की फसल बाकी फसलों के मुक़ाबले ज़्यादा कठिन होती है। इसकी खेती पूरे साल की जा सकती है। पौष्टिकता की दृष्टि से इसे टमाटर के समकक्ष समझा जाता है। बैंगन की हरी पत्तियों से विटामिन ‘सी’ (Vitamin C) मिलता है।
बैंगन के कई रंग और आकार
बैंगन में फलों के रंग तथा पौधों के आकार में अंतर देखने को मिलता है। इसके फल मुख्य तौर पर बैंगनी, सफेद, हरे, गुलाबी एवं धारीदार रंग के होते हैं। आकार में भिन्नता के कारण इसके फल गोल, अंडाकार, लंबे एवं नाशपाती के आकार के होते हैं। क्षेत्र के अनुसार बैंगन के रंग एवं आकार का अलग-अलग महत्व देखा गया है। उत्तरी भारत में बैंगनी या गुलाबी रंग के गोल और अंडाकार बैंगन का अधिक चलन है। गुजरात में हरे अंडाकार बैंगन की अधिक मांग है। झारखण्ड में गोल या अंडाकार एवं गहरे बैंगनी और धारीदार हरे रंग के बैंगन अधिक पसंद किए जाते हैं।
बैंगन की खेती किस समय और जलवायु में करनी चाहिए?
बैंगन की खेती आमतौर पर साल में तीन बार हो सकती है। अगर आप फरवरी में बुवाई करते हैं तो वर्षा ऋतु में पौधे फल देने लगते हैं। जून-जुलाई में बुवाई करना भी उपयुक्त माना गया है। नवंबर की रोपाई से फल फरवरी में लगने लगते हैं। सफल उत्पादन के लिए औसतन तापमान 17 से 21 डिग्री सेल्सियस सबसे अनुकूल है। जब तापमान 17 डिग्री से नीचे चला जाता है तो फसल की वृद्धि बुरी तरह प्रभावित होती है।
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बैंगन की खेती के लिए किस तरह की मिट्टी होनी चाहिए?
इसकी खेती अच्छे जल निकास वाली सभी प्रकार की ज़मीन में की जा सकती है। वैसे बैंगन की खेती दोमट मिट्टी में सबसे बेहतर मानी गई है। भारी मिट्टी, जिसमें कार्बिनक पदार्थ की पर्याप्त मात्रा हो, उसके लिए भी उपयुक्त होती है। भूमि का पी.एच मान (pH Value) 5.5-6.6 के बीच होना चाहिए। इसमें सिंचाई का उचित प्रबंधन होना आवश्यक है। झारखंड की जमीन बैंगन की खेती के लिए सबसे उपयुक्त पायी गई है।
बैंगन के बीज के लिए किसी फल को चुनकर, उसमें कुछ चिह्न लगाकर, पकने के लिए छोड़ देना चाहिए। बीज बोने के बाद फल लगभग 120-130 दिनों में पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। फलों को 8-10 दिनों के अंतराल पर तोड़ा जाता है। बैंगन की औसत उपज 20 से 30 टन प्रति हेक्टेयर मिलती है।
बैंगन की उन्नत किस्में
- स्वर्ण श्यामली (Swarna Shyamli)
यह भू-जनित जीवाणु, मुरझा रोग प्रतिरोधी किस्म है। इस किस्म के फल बड़े आकार के गोल, हरे रंग के होते हैं। फलों के ऊपर सफेद रंग की धारियां होती हैं। रोपाई के 35-40 दिन बाद फलों की तुड़ाई शुरू हो जाती है। इसकी लोकप्रियता छत्तीसगढ़ के छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्रों में अधिक है। स्वर्ण श्यामली किस्म की उपज क्षमता 45 से 60 टन प्रति हेक्टेयर है। - स्वर्ण शक्ति (Swarna Shakti)
यह एक संकर उत्तम किस्म है। इसके पौधों की लंबाई लगभग 70-80 सेंटीमीटर होती है। इस किस्म के फल लंबे, चमकदार बैंगनी रंग के होते हैं। फल का औसत वजन 150 से 200 ग्राम के बीच होता है। स्वर्ण शक्ति किस्म से 40 से 50 टन प्रति हेक्टेयर उपज मिलती है। - अर्का अविनाश (Arka Avinash)
यह उच्च गुणवत्ता वाली जीवाणु झुलसा-रोधी किस्म है। इसे अर्का कुसुमाकर X आईआईएचआर-3 के संकरण से आईआईएचआर, कर्नाटक में विकसित किया गया है। इसके पौधे उँचे एवं फैलने वाली प्रकृति के होते हैं। इस किस्म के फल हरे, लंबे और गूदेदार होते हैं। इसे तैयार होने में लगभग 115 दिनों का समय लगता है। अर्का अविनाश किस्म से 40 से 42 टन प्रति हेक्टेयर का उत्पादन मिलता है। - पूसा क्रांति (Pusa Kranti)
ये किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है। इसके पौधे उँचे एवं फैलने वाली प्रकृति के होते हैं। इस किस्म की पत्ती लंबी, संकरी और हरे रंग की नज़र आती है। इसके फल 15 से 20 सेंटीमीटर लंबे, आकर्षक गहरे बैंगनी रंग के होते हैं। पूसा क्रांति की उपज क्षमता 28 से 32 टन प्रति हेक्टेयर है। - पूसा पर्पल लॉन्ग (Pusa Purple Long)
इस किस्म का पौधा अर्ध-खड़ा और कम ऊंचाई का होता है। इस किस्म का फल चमकदार, हल्का बैंगनी रंग का होता है। इसका फल 25 से 30 सेंटीमीटर लंबा, चिकना और कोमल होता है। इस किस्म को तैयार होने में 100 से 110 दिन का समय लगता है। पूसा पर्पल लॉन्ग की उपज क्षमता 30 से 35 टन प्रति हेक्टेयर है।
आईसीएआर (ICAR) द्वारा अनुशंसित बैगन की अन्य किस्में – पूसा भैरव, पूसा अनमोल (एच), पूसा हाइब्रिड 5(लंबा), पूसा हाइब्रिड 6 और 9 (गोल), अर्का शील, अर्का शिरीष, अर्का कुसुमकर, अर्का नवनीत (हाइब्रिड), अर्का निधि, अर्का केशव और अर्का नीलकंठ हैं।
स्रोत: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research)
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