पराली (फसल काटने के बाद खेत में बचा अपशिष्ट) के कारण देश के कई शहर प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। एक सर्वे के अनुसार देश में हर साल करीब 80 टन पराली जलाई जाती है।
पराली जलाने से बड़ी मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, मीथेन जैसे हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है। यह हवा में घुलकर उसे जहरीला बना देती हैं। पराली के धुएं से दमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस व स्नायु तंत्र से जुड़ी हुई गंभीर बीमारी हो सकती है। दिल्ली में भी पराली से प्रदूषण एक बड़ी समस्या है।
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इससे होने वाले प्रदूषण को लेकर सरकार काफी सख्त रुख अपना चुकी है। यहां तक कि इसे जलाने को अपराध भी घोषित कर दिया गया है, लेकिन इसके बावजूद किसानों ने पूरी तरह से पराली जलाना बंद नहीं किया है। इसका निपटान किसानों के लिए भी एक बड़ी समस्या है।
ऐसे में अब आईआईटी दिल्ली (Delhi IIT) के छात्रों ने इस समस्या के हल के लिए बेहतरीन प्रयास किया है। आईआईटी के अंकुर, कणिका व प्राचीर दत्ता ने एक स्टार्टअप शुरू किया है, जिसमें वह पराली से इको फ्रेंडली कप-प्लेट बनाएंगे।
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पराली से पेस्ट बनाकर बनाते हैं कप-प्लेट
क्रिया लैब्स कंपनी के सीईओ अंकुर ने अपने इस स्टार्टअप प्रोजेक्ट के बारे में बताया कि हम किसानों से पराली लेकर उसे पेस्ट में बदल देते हैं। फिर हमारी मशीन नेचुरल केमिकल के जरिए पराली से आर्गेनिक पॉलीमर को सेल्यूलोज से अलग कर देती है। फिर इसकी नमी को खत्म किया जाता है और उच्च दबाव पैदाकर कप और प्लेट बनाए जा सकते हैं। यह कप-प्लेट की कीमत भी आम मैलामाइन से बनने वाली क्रॉकरी से कम होगी।
साल के आखिर में प्रोसेसिंग यूनिट लगाएंगे
तीनों छात्रों के मुताबिक हम पर्यावरण के लिए नुकसानदायक पराली को एक कमर्शियल वैल्यू दे रहे हैं। अगर हम किसानों से पराली से खरीद लेंगे तो वे उसे नहीं जलाएंगे। इससे एक बड़े स्तर पर ग्रामीण रोजगार भी पैदा होगा। क्रिया लैब्स में चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर प्राचीर दत्ता बताते हैं एक यूनिट लगाने में करीब 1.5 करोड़ रुपये खर्च आता है।
इससे एक दिन में रोजाना 4-5 टन पराली पेस्ट तैयार हो सकता है। हम किसानों को एक किलो पराली के बदले करीब 3 रुपये का भुगतान करेंगे। हम कुछ बड़े किसानों को पराली इकट्ठा करने का काम देंगे। यह अन्य किसानों से पराली जमा करके हमारे पास पहुंचाएंगे।