नर्सरी व्यवसाय (nursery business): एक ओर जहां खेतीबाड़ी से मोहभंग होने के बाद लोग नौकरी के लिए शहरों की ओर भाग रहे हैं। वहीं दूसरी ओर झारखंड में किसान हितैषी कार्यक्रमों ने वहां के आदिवासी किसानों की जिंदगी बदल दी है।
हम बात कर रहे हैं हजारीबाग जिले में चुरचू ब्लॉक के नगड़ी गांव के संथाली आदिवासी किसान राजेंद्र टुडू की, जो आज वहां के किसानों के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। खेती के अलावा अब वे नर्सरी का व्यवसाय कर रहे हैं और अन्य किसानों को भी इस बारे में जानकारी देते हैं।
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उनकी पहचान का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जिले में सड़क किनारे लगे मिशन 2020: लखपति किसान स्मार्ट गांव के बोर्ड में उनका नाम और चित्र छपा है।
करीब तीन साल से नर्सरी व्यवसाय से जुड़े राजेंद्र खीरा, करेला, लौकी, तरबूज, कद्दू आदि के पौधे उगाते हैं। उनके मुताबिक पॉलीहाउस में प्रत्येक प्लास्टिक ट्रे में 102 पौधे होते हैं। नर्सरी में प्रत्येक चक्र में एक लाख पौधे लगाने की क्षमता होती है। खरीफ के मौसम में बीज से पांच बार नर्सरी ली जा सकती है।
राजेंद्र बाजार में सब्जियों के दाम के आधार पर पौधे की कीमत तय करते हैं। जैसे अगर बाजार में करेला 40 रुपये प्रति किलो मिलता है तो वे प्रति पौधा 5 रुपये लेते हैं। वहीं अन्य सब्जियों के लिए वे सवा रुपये लेते हैं।
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इस तरह खरीफ के सीजन में करीब 5 लाख और रबी के सीजन में एक लाख पौधों को मिलाकर वे 6 से 10 लाख रुपये तक कमाते हैं। पौधों की लागत हटाने के बाद 5 लाख तक का मुनाफा हो जाता है।
लखपति किसान कार्यक्रम ने की मदद
राजेंद्र को एक सफल उद्यमी बनाने में सोसाइटी फॉर अपलिफटमेंट आफ पीपुल विथ पीपुल्स आर्गनाइजेशन एंड रूरल टेक्नोलॉजी (सपोर्ट) और कलेक्टिव्स फॉर इंटीग्रेटेड लिवलीहुड इनीशिएटिव (सीआईएनआई) से जुड़े पेशेवरों ने काफी मदद की।
सपोर्ट और सीआईएनआई की टीम ने अन्य संगठनों और सरकार के साथ लखपति किेसान योजना की शुरुआत की है। इसका मकसद आदिवासी किसानों की आजीविका में सुधार लाना और उन्हें प्रतिवर्ष एक लाख रुपये कमाने में मदद करना है।
यह योजना झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट और गुजरात में चलाई जा रही है।
सफलता की यात्रा
सिर्फ सातवीं कक्षा तक पढ़े राजेंद्र टुडू ने सबसे पहले नर्सरी में पौधे तैयार करने के लिए ग्रीनहाउस बनाया और पौधे आसपास के किसानों को खेती के लिए बेचे, लेकिन उनका यह प्रयोग सफल नहीं हुआ। जब पौधे नहीं बचे तो उन्होंने महसूस किया कि गर्मी के चरम सीमा तक पहुंचने के दौरान ग्रीनहाउस ने भी पौधों के लिए समान तापमान बनाए रखने में मदद नहीं की।
इसके बाद सपोर्ट और सीआईएनआई के निर्देशों, पेशेवरों की विजिट और उनके प्रशिक्षण ने नर्सरी व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए राजेंद्र का आत्मविश्वास बढ़ा दिया। 16 गुना 18 मीटर आकार के पॉलीहाउस बनाने में 1.20 लाख रुपये निवेश की जरूरत थी।
पॉलीहाउस के लिए आवश्यक कुल 3 लाख रुपये लागत की आधी राशि सीआईएनआई व टाटा टस्ट कार्यक्रम के जरिए अनुदान मिल जाती है। राजेंद्र ने अपनी बचत से 30,000 रुपये और बाकी 1.20 लाख रुपये का कर्ज रंग दे से जुटाने के बाद काम शुरू कर दिया।