कस्टर्ड एप्पल, इसे कई शरीफा बुलाते हैं तो कई सीताफल। कई पोषक तत्वों से भरपूर शरीफा सेहत का खज़ाना माना जाता है। इसकी तासीर ठंडी होती है। खाने में मीठा और स्वादिष्ट शरीफे का इस्तेमाल औषधि के रूप में भी किया जाता है। शरीफा (Custard Apple) में कई सारे विटामिन पाए जाते हैं, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं। इसमें नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा पाई जाती है। शरीफा में मौजूद विटामिन सी, विटामिन ए, पोटेशियम, मैगनीशियम, तांबा और फाइबर स्वास्थ्य के लिए काफ़ी फ़ायदेमंद माने जाते हैं। इसके इन्हीं औषधीय गुणों को देखते हुए देश के कई किसान शरीफे की खेती भी कर रहे हैं।
गर्म और शुष्क जलवायु में उपजे शरीफा की अच्छी गुणवत्ता
बाहर से खुरदुरा और अंदर से सफेद दिखने वाले शरीफे की खेती मुख्य रूप से सूखा प्रवण क्षेत्रों (Drought Prone Area) में की जाती है। वैसे इसकी खेती भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में भी संभव है, लेकिन गर्म और शुष्क जलवायु में उपजे शरीफा फल का स्वाद ज़्यादा मीठा और अच्छी गुणवत्ता वाला होता है।
चट्टानी ज़मीन से लेकर रेतीली ज़मीन में खेती संभव
शरीफे के पेड़ का पौधा चट्टानी ज़मीन से लेकर रेतीली ज़मीन तक में उग सकता है। ये जलोढ़ मिट्टी, लाल मिट्टी के साथ-साथ कई तरह की मिट्टी में अच्छी तरह से बढ़ता है। वहीं भारी, काली, जलभराव वाली चिकनी मिट्टी इस फलदार पेड़ के लिए सही नहीं होती।
शरीफे की फसल को नियमित रूप से पानी देने की ज़रूरत नहीं होती। अगर पहले तीन से चार सालों तक गर्मियों में पानी दिया जाए तो पौधे की वृद्धि अच्छी होती है। महाराष्ट्र में, बीड, औरंगाबाद, अहमदनगर, नासिक, सोलापुर, सतारा और भंडारा जिलों में बड़ी संख्या में सीताफल के पेड़ हैं। वहीं मराठवाड़ा का धारूर और बालाघाट गांव शरीफा के फल के लिए मशहूर हैं।
छत्तीसगढ में है सीताफल का सबसे बड़ा फ़ार्म
वहीं शायद ही आपको पता हो कि एशिया में शरीफा का सबसे बड़ा फ़ार्म छत्तीसगढ़ में है। 400 एकड़ क्षेत्रफल में फैले इस फ़ार्म में 180 एकड़ में शरीफे की खेती की जाती है। वहीं 16 अन्य फलों की जैविक खेती की जाती है। छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के धौराभाठा गांव में ये फ़ार्म बना हुआ है।
6 लाख की लागत से 30 लाख तक का मुनाफ़ा
ऐसे ही मध्य प्रदेश की रहने वाली 54 वर्षीय ललिता मुकाती शरीफे की जैविक तरीके से खेती करके अच्छा मुनाफ़ा कमा रही हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने के उनके कामों को देखते हुए उन्हें कई पुरुस्कारों से भी सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें 1999 में इनोवेटीव फ़ार्मर अवॉर्ड और 2019 में भी हलधर पुरस्कार से नवाज़ा गया।
ललिता मुकाती जैविक खेती के लिए ज़रूरी चीजों को खुद तैयार करती हैं। नीम के फल से तेल तैयार करने से लेकर वर्मी-कम्पोस्ट और जीवामृत खाद भी घर पर ही बनाती हैं। इससे लागत में कमी आती है। 32 एकड़ में शरीफे की खेती में उन्हें 6 लाख के आसपास की लागत आती है। इससे उन्हें सालाना करीबन 30 लाख का मुनाफ़ा होता है।
बाज़ार में कैसा है शरीफा का दाम
शरीफा का फल मांग ज़्यादा होने पर 150 रूपये प्रति किलो के हिसाब से भी बिक जाता है। वहीं इसे प्रोसेस कर कई और चीजें भी बनाई जा सकती हैं। इसके पल्प से आइसक्रीम, जूस और रबड़ी बनाई जाती है। पल्प 100 से 150 रुपये किलो में बिक जाता है। शरीफा का पाउडर बाज़ार में 350 से लेकर 450 तक बिक जाता है।
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