परिवार की ज़िम्मेदारी, पूरा घर संभालना और फिर खेत-खलिहान में जाकर अपने पति का हाथ बंटाना। देश की एक महिला किसान न सिर्फ़ अपने घर का पालन-पोषण करती हैं, बल्कि कृषि क्षेत्र में भी पूरा हाथ बंटाती हैं। इकोनॉमिक सर्वे 2017-18 के मुताबिक, जैसे-जैसे पुरुष वर्ग ने काम की तलाश में शहरी इलाकों का रूख किया, वैसे-वैसे कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बतौर किसान, उद्यमी और खेतिहर मज़दूर बढ़ती गई।
आम की फसल बर्बाद होने से होता था भारी नुकसान
एक ऐसी ही महिला का ज़िक्र हम अपने इस लेख में करने जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के हसनगंज ब्लॉक की रहने वाली तारावती सैनी का परिवार आम की खेती करता है। उनके पास खेती के लिए सिर्फ़ 0.1 हेक्टेयर की ज़मीन है। आम के सीज़न में आंधी तूफ़ान के कारण उनके क्षेत्र में आम की फसल 20 से 25 फ़ीसदी बर्बाद हो जाती है। इससे आम की खेती कर रहे किसानों को भारी नुकसान होता है।
2008 से पहले तक तारावती सैनी का परिवार भी मौसम की मार से परेशान था। आम की खेती से उन्हें करीबन तीन से चार हज़ार की सालाना आमदनी होती थी। उन्हें अपनी उपज को 7 से 8 रुपये प्रति किलो के हिसाब से गाँव में ही मजबूरन बेचना पड़ता था। पशुपालन से भी उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी। इससे परिवार का खर्चा निकालना मुश्किल था।
कृषि विज्ञान केंद्र की सलाह पर शुरू की प्रोसेसिंग
आम की खेती में हो रहे नुकसान से निपटने का बीड़ा तारावती सैनी ने खुद उठाया। वो उन्नाव के कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) और जिला कृषि विभाग पहुंची। यहां के वैज्ञानिकों ने उन्हें फ़ूड प्रोसेसिंग करने की सलाह दी। फ़ूड प्रोसेसिंग में खाने के कच्चे माल को प्रोसेस करके बेचा जाता है। प्रोसेस्ड फ़ूड की सेल्फ़ लाइफ़ लंबी होती है। मसलन आम से अचार, सॉस, कैंडी, जूस, आइसक्रीम, आम पापड़ जैसे कई प्रॉडक्ट्स बनाए जा सकते हैं।
इससे जुड़ी ट्रेनिंग्स उन्हें दी गईं। 2009 में तारावती को “आम फल के मूल्यवर्धन के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं का सशक्तिकरण” परियोजना (Empowerment of rural women through value addition of Mango fruit) के तहत बतौर भागीदार महिला किसान चुना गया।
कृषि विज्ञान केंद्र करता है पूरा सहयोग
ट्रेनिंग लेने के बाद तारावती ने खुद से आम की प्रोसेसिंग शुरू कर दी। संसाधन की कमी और कम ज़मीन की समस्या थी। इसमें कृषि विज्ञान केंद्र ने उनकी पूरी मदद की। बेहद कम शुल्क के साथ प्रोसेसिंग, पैकिंग और लेबलिंग की ज़िम्मेदारी कृषि विज्ञान केंद्र ने उठाई।
तकरीबन 65 हज़ार पहुंचा सालाना मुनाफ़ा
आम को प्रोसेस कर तारावती और उनका परिवार साल का करीबन 60 हज़ार से लेकर 65 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा कमा लेता है। करीबन 37 क्विंटल कच्चे आम को प्रोसेस कर तारावती अचार, पाउडर और स्लाइस तैयार करती हैं। आम को प्रोसेस कर जो उत्पाद तैयार होते हैं, वो 250 ग्राम, 500 ग्राम, एक किलो और पांच किलो की बोतल में पैक किए जाते हैं। बाज़ार में मांग के हिसाब से इन्हें तैयार किया जाता है। प्रोसेसिंग से लेकर प्रॉडक्ट्स की मार्केटिंग में तारावती का पूरा परिवार उनकी मदद करता है। तारावती की इस सफलता से प्रेरित होकर क्षेत्र की कई महिलाएं प्रोसेसिंग से जुड़कर अच्छी आमदनी कर रही हैं। इससे वो किसी पर निर्भर नहीं है और अपने खर्चे खुद उठाने में सक्षम है।
कितनी आती है लागत और कितना होता है मुनाफ़ा?
आम का एक किलो अचार तैयार करने में 48 रुपये की लागत आती है। बाज़ार में एक किलो आम का अचार 85 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिक जाता है। इस तरह आम के अचार से तारावती को लगभग 55 हज़ार का सीधा मुनाफ़ा होता है।
प्रति किलो आम का पाउडर बनाने में 100 रुपये की लागत आ जाती है, जो बाज़ार में 180 रुपये में बिक जाता है। इस तरह से सालाना आम के पाउडर पर उन्हें तकरीबन 6 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा हो जाता है।
आम के स्लाइस तैयार करने में 50 रुपये प्रति किलो की लागत लगती है, इसे बाज़ार में 110 रुपये प्रति किलो का दाम मिल जाता है। इससे तारावती करीबन पांच हज़ार तक का मुनाफ़ा कमा लेती हैं।
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