अनानास की खेती भारत के कुछ चुनिंदा राज्यों में ही की जाती है जिसमें असम, मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय, और पश्चिम बंगाल शामिल है। हालांकि, अब पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही कुछ मैदानी इलाकों में भी किसान अनानास की खेती कर रहे हैं। चूंकि इसकी मांग पूरे साल बनी रहती है, इसलिए यह किसानों के लिए फ़ायदे का सौदा साबित होता है। अनानास की अच्छी फसल के लिए कैसी जलवायु और मिट्टी की ज़रूरत पड़ती है? आइए, जानते हैं।
कैसी होनी चाहिए जलवायु
सभी फसल हर तरह की जलवायु में नहीं उगती। किसी के लिए अधिक गर्म तो किसी के लिए ठंडे मौसम की ज़रूरत पड़ती है। अनानास की खेती के लिए ठंडे मौसम की ज़रूरत होती है। इसकी अच्छी फसल के लिए तापमान 20 से 35 डिग्री तक होना चाहिए। जबकि सालाना बरसात 100 से 150 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए।
अनानास की खेती के लिए कैसी मिट्टी उपयुक्त?
अनानास की अच्छी फसल के लिए बलुई दोमट मिट्टी जिसका पीएच मान 5-6 हो अच्छी मानी जाती है। साथ ही खेत में जल निकासी की भी उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
उन्नत किस्में
अनानास की कुछ उन्नत किस्मों की खेती करके किसान अधिक मुनाफ़ा कमा सकते हैं। मुख्य किस्मों में शामिल हैं जायनट क्यू, क्वीन, मॉरिशस, रैड स्पैनिश, जलधूप आदि।
कब करें बुवाई
पूरे साल अनानास का उत्पादन प्राप्त करने के लिए बुवाई जून-जुलाई और अक्टूबर-नवंबर में करनी चाहिए। जनवरी से मार्च के बीच इसमें फूल आने लगते हैं। बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करना ज़रूरी है। इसके लिए एक लीटर पानी में 4 ग्राम कार्बेन्डाजिम डालकर घोल तैयार करें या फिर 2 ग्राम डाईथेन एम-45 को एक लीटर पानी में घोलकर बीजों को उपचारित करें।
बीजों की बुवाई दो कतार में की जाती है। पौधों से पौधों की दूरी 45 सेंटीमीटर और कतार से कतार के बीच 90 सेंटीमीटर की दूरी होती है। बीजों को लगाने के लिए 22 सेंटीमीटर गहरा और 30 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढा किया जाता है। बुवाई के 12 से 15 महीने बाद फूल आने लगते हैं और 15-18 महीने बाद फल परिपक्व हो जाते हैं।
अनानास की खेती में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए नियमित निराई-गुड़ाई ज़रूरी है। पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 40-50 दिन बाद ही करनी चाहिए, दूसरी 110-120 दिन बाद, तीसरी 200-210 दिन बाद, चौथी बार 300-310 दिन बाद करनी चाहिए। इसके बाद कटाई से पहले एक बार खरपतवारों को हटा लेना चाहिए।
अनानास की खेती में सिंचाई की विधि
पर्याप्त सिंचाई की व्यवस्था होने पर फसलों की वृद्धि अच्छी होती है। इसके लिए ड्रिप सिंचाई या स्प्रिंकल सिंचाई विधि उपयुक्त होती है।
कीट व रोग प्रबंधन
वैसे तो अनानास के पौधों में कीटों का प्रकोप कम ही होता है, फिर भी 3-3 बार सिस्टमेटिक दवा का छिड़काव करते रहना चाहिए। इसके अलावा, यह स्टेम रॉट रोग से प्रभावित हो सकता है जिससे बचने के लिए खेतों में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
भारत के साथ-साथ विदेशों में भी अनानास (Pineapple) की काफी मांग रहती है. भारत खुद तो अनानास का बड़ा उत्पादक (Pineapple Producer) है ही, साथ ही दूसरे देशों में इसका निर्यात (Pineapple Export) भी होता है. कई किसान इसकी खेती के साथ-साथ इसके प्रोसेस्ड फूड(Pineapple Processing) बनाकर बाजार में बेचते हैं।
अनानास के मंडी भाव की बात करें तो दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में अभी इसका औसतन मूल्य लगभग 3800 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। वहीं उत्तर प्रदेश की खतौली मंडी में औसतन मूल्य लगभग 1900 रुपये चल रहा है।
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