कर्नाटक के तुमकूर ज़िले के नेरलपुरा गांव के रहने वाले 67 साल के किसान रेवन्नासिद्दैया कई साल से आम की खेती कर रहे हैं। आम की अल्फांसों किस्म का उत्पादन कर रहे हैं। बेंगलुरु स्थित भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIHR) के तत्कालीन निदेशक डॉ. बी.एम.सी. रेड्डी की सलाह पर 2003 में उन्होंने आम की खेती शुरू की। शुरुआत में दो एकड़ क्षेत्र में उन्होंने अल्फांसों किस्म के 74 ग्राफ्टेड पौधे लगाएं। फिर 2011 में एक एकड़ ज़मीन और खरीदी। वहाँ भी आम के पौधे लगाए।
बेहतरीन गुणवत्ता वाले आम
रेवन्नासिद्दैया ने आम की खेती में डॉ. रेड्डी की बताई गई तकनीकों का इस्तेमाल किया। खेती में फ़ार्म यार्ड खाद (FYM) का उपयोग किया। फ़ार्म यार्ड खाद को मवेशियों के गोबर, मूत्र, व्यर्थ चारे और अन्य डेयरी कचरे का उपयोग करके तैयार किया जाता है। पौधों को इस मिश्रण द्वारा संतुलित पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं। सालभर में प्रति एकड़ के हिसाब से 20 किलो फ़ार्म यार्ड खाद और आधा किलो ऑयल केक मिश्रण (नीम, पोंगामिया, मूंगफली आदि) खेत में डाला जाता है।
जब बरसात का मौसम नहीं होता है यानी नवंबर से मई के दौरान, सिंचाई के लिए पानी के टैंकर का उपयोग करते हैं। प्रत्येक पेड़ को 10 दिन में एक बार लगभग 40 लीटर पानी डालते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र ने की मदद
ICAR-IIHR के अलावा, कृषि विज्ञान केंद्र (KVK) हीरेहल्ली से भी वो तकनीकी जानकारी लेते रहते हैं। KVK ने उन्हें हरे चारे के रूप में मुकुना (वेलवेट बीन) को अंतरफसल के रूप मे उगाने, आम का आकार एक समान रखने और अधिक उपज प्राप्त करने के लिए माइक्रो न्यूट्रिएंस फॉलियर स्प्रे (मैंगो स्पेशल) का इस्तेमाल, मैंगों फ्रूट फ्लाई की रोकथाम के लिए फेरोमेन ट्रैप का इस्तेमाल करने के बारे में बताया। दो एकड़ के क्षेत्र में उन्होंने करीबन 12 फेरोमेन ट्रैप लगाए हुए हैं।
माइक्रो न्यूट्रिएंस फॉलियर स्प्रे कैसे करें तैयार?
15 लीटर पानी में 75 ग्राम मैंगों स्पेशल पाउडर, 2 नींबू और एक शैंपू का पाउच मिक्स करके स्प्रे तैयार कर लिया जाता है। फिर हर 15 दिन के अंतराल में अपने आम के बागानों में इस स्प्रे का छिड़काव किया। वह धान के पुआल के बीच आम रखकर उसे कुदरती तरीके से पकाते हैं। इससे स्वादिष्ट होने के साथ ही आम सेहत के लिए भी पूरी तरह से सुरक्षित है।
आम की करते हैं सीधी बिक्री
रेवन्नासिद्दैया खुद अपने आमों की बिक्री करते हैं। शुरुआत में बाज़ार जाकर वो आम बेचते थे। जब लोगों ने उनके आम का स्वाद चखा, तो वह बार-बार उनसे उसी आम की मांग करने लगे। लोग उन्हें आम की अच्छी कीमत देने को तैयार थे। रेवन्नासिद्दैया ने डॉक्टर, अपने दोस्तों और जान-पहचानवालों को आम बेचना शुरू कर दिया, जिससे उन्हें अच्छी आमदनी होने लगी। आम की पहली उपज को बेचकर उन्हें करीबन 40 हज़ार का मुनाफ़ा हुआ। अब उनके ग्राहक फिक्स हो गए हैं, जो पूरे साल उनके संपर्क में रहते हैं।
2011 में उन्हें आम की 2400 किलो उपज प्राप्त हुई। इसमें से 1020 किलो फलों को पैक कर 500 रुपये प्रति बॉक्स (6 किलो का) के हिसाब से बेचा। इससे उन्हें 85 हज़ार की आमदनी हुई। बाकी बचे 1380 किलो आम को एक ठेकेदार को 25 हज़ार रुपये में बेचे। आम की पैदावार हर साल बढ़ने लगी, लेकिन 2013 तक उन्होंने प्रति बॉक्स कीमत 500 रुपए ही रखी।
आम पकाने की नई तकनीक
2014 में फसल कम हुई और किन्हीं कारणों से बाज़ार में उन्हें कीमत भी अच्छी नहीं मिली। फिर भी वह 1,20,000 रुपये के आम बेचने में सफल रहे। इसी दौरान KVK ने लो कॉस्ट मैंगो राइपनिंग चैंबर की शुरुआत की। यह प्लास्टिक पाइप और पॉलिथीन शीट से बना एक क्यूबिक मीटर का ढांचा है। आम (करीब 8 क्रेट-जिसमें 1250 फल होते हैं) को 24 घंटे चेंबर में रखा जाता है। चेंबर के अंदर, एथिलीन का घोल (2%) और सोडियम हाइड्रॉक्साइड (0.5 ग्राम) मिलाकर एक बर्तन नें रखा जाता है।
पारंपरिक रूप से आम को पकने में 10 दिन लगते हैं, जबकि चेंबर में 24 घंटे रखकर निकाल देने पर आम 5 दिनों में ही पक जाते हैं और इस तकनीक में आम केमिकल से पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं।
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