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इलायची का हब दक्षिण भारत है। इसकी सबसे ज़्यादा खेती केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में होती है। यहां का मौसम इलायची की उपज के लिए बहुत अनुकूल है। आपको बता दें कि इलायची का पौधा पूरे साल हरा-भरा रहता है। इसकी पत्तियां एक से दो फ़ीट लंबी होती है।
इलायची की बेहतरीन खुशबू की वजह से ही मीठे व्यंजन और करी वाली चीज़ों में इसका इस्तेमाल किया जाता है। हलवा और मिठाई तो इलायची के बिना अधूरे हैं। मसालों में इलायची महंगी मिलती है। यही वजह है कि किसानों को इलायची की खेती से अच्छा मुनाफ़ा होता है। इलायची की उन्नत खेती कैसे कर सकते हैं, आइए जानते हैं।
इलायची की खेती में जलवायु और मिट्टी
इलायची की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इसके अलावा लैटेराइट और काली मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है। साथ ही खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए। ध्यान रहे कि रेतीली मिट्टी में इलायची की खेती नहीं की जानी चाहिए। जहां तक तापमान की बात है तो इलायची की खेती के लिए 10 से 35 डिग्री का तापमान बेहतर माना जाता है।
इलायची की खेती में खेत की तैयारी
पौधे लगाने से पहले खेत की गहरी जुताई करें और पिछली फसल के अवशेषों को भी हटा दें। फिर खेत में रोटावेटर चला कर गहरी जुताई करके मिट्टी को समतल बनाएं। मिट्टी के समतल हो जाने के बाद अगर आप पौधों को मेड पर लगाना चाहते हैं, तो दो पौधों के बीच में लगभग डेढ़ से दो फ़ीट की दूरी होनी चाहिए और अगर समतल भूमि पर पौधे लगाना चाहते है तो दो से ढाई फ़ीट की दूरी पर गड्ढे तैयार कर लें। इसके बाद इन गड्ढो और मेड पर गोबर की खाद और रासायनिक खाद डालकर मिट्टी में मिलाएं। पौधे लगाने से करीब 15 दिन पहले खेत तैयार कर लेना चाहिए।
इलायची के पौधों की नर्सरी तैयार करना
इलायची की खेती के लिए पहले पौधों को नर्सरी में तैयार किया जाता है। नर्सरी में पौधों के बीजों को 10 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाया जाता है। बुवाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा की उचित मात्रा से उपचारित कर लें। एक हेक्टयेर भूमि के लिए करीब सवा किलो बीज की ज़रूरत पड़ती है। बुवाई क्यारियों में की जाती है। बुवाई के बाद अच्छी तरह सिंचाई करें। बीजों के अंकुरित होने तक मल्चिंग से ढक देना चाहिए ताकि नमी बनी रहे।
इलायची के पौधों के लिए छायादर जगह होनी ज़रूरी है। करीब 3 महीने बाद इलायची का पौधा तैयार हो जाता है, जिसे फिर खेतों में लगाया जा सकता है। रोपाई का काम जुलाई के पहले कर लेना चाहिए। पौधों को खेत में लगाते समय हर पौधे के बीच लगभग 60 सेंटीमीटर की दूरी रखें। अगर मेड़ पर पौधे लगा रहे हैं, तो उसे जिगजैग तकनीक से लगाएं।
इलायची की खेती में सिंचाई और उर्वरक
पौधों की रोपाई के बाद तुरंत सिंचाई कर देनी चाहिए। अगर बारिश का मौसम है तो सिंचाई की ज़रूरत नहीं पड़ती है, लेकिन गर्मी में पौधों को ज़्यादा पानी की ज़रूरत पड़ती है। ऐसे में नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई ज़रूरी है।
सर्दियों के मौसम में 10 से 15 दिन के अंतराल में पानी दे सकते हैं। खेत में पौधे लगाने से पहले गड्ढों या मेड़ पर हर पौधे के लिए 10 किलो के हिसाब से पुरानी गोबर की खाद और एक किलो वर्मिकम्पोस्ट की ज़रूरत होती है। साथ ही पौधों के अच्छे विकास के लिए नीम की खली और मुर्गी की खाद को दो से तीन साल तक देते रहना चाहिए।
इलायची की खेती में कितनी होती है फसल?
इलायची के पौधे को तैयार होने में 3 से 4 साल का समय लगता है। एक हेक्टेयर में सूखी हुई इलायची की लगभग 130-150 किलो उपज प्राप्त होती है। फसल काटने के बाद कई दिनों तक इसे धूप में सुखाया जाता है।
18 से 24 घंटे तक घूप में सुखाने के बाद इसे हाथ, कॉयर मैट या तार की जाली से रगड़ा जाता है। फिर उन्हें आकार और रंग के अनुसार छांट लिया जाता है। गुणवत्ता के हिसाब से ही इसका बाज़ार भाव तय होता है जो 1100 से 2000 रुपए प्रति किलोग्राम तक है। इस तरह इलायची की खेती से किसान लाखों की कमाई कर सकते हैं।
इलायची की उन्नत किस्में
इलायची कुछ उन्नत किस्में हैं मालाबार: मुदिग्री 1, मुदिग्री 2, PV 1, PV-3, ICRI 1, ICRI 3, TKD 4, IISR सुवर्णा, IISR विजेता, IISR अविनाश, TDK- 11, CCS-1, सुवासिनी, अविनाश, विजेता – 1, अप्पांगला 2, नजल्लानी (हरा सोना), ICRI-8, मैसूर-ICRI 2, वज़ुक्का- MCC-12, MCC-16 , MCC-40 , PV2, PV5.
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