अनार मुख्य नकदी फसलों में से एक है और भारत में 1.25 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है। इससे 60.64 लाख टन अनार की फसल प्राप्त होती है। साथ ही अनार की खेती का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है। भारत के फल निर्यात बाज़ार में अनार का छठा स्थान है। विश्व के अनार उत्पादन का 50 फ़ीसदी उत्पादन भारत में ही होता है, जिससे भारत को 270 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। कर्नाटक में 14,000 हेक्टेयर में अनार की खेती की जाती है, जिससे 1.5 लाख टन उत्पादन प्राप्त होती है। मगर पिछले कुछ साल से कर्नाटक के अनार उत्पादक अनार में लगने वाले बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से परेशान थे। इस रोग की वजह से फसल की बहुत हानि होती है। कृषि विज्ञान केन्द्र ने इसका हल किसानों को बताया, जिससे उनकी उत्पादन लागत कम होकर मुनाफ़ा बढ़ गया।
रोग से परेशान अनार के किसान
कर्नाटक में अनार की अच्छी खेती होती है। अनार की कुछ लोकप्रिय किस्मों में शामिल हैं- गणेश, मृदुला, अरक्त, भगवा, केसर, जी-137 और खंडार। यहां अनार की सफल खेती की जाती रही है। मगर पिछले कुछ साल से किसान अनार की फसल में लगने वाले कीट व रोगों से परेशान हैं। ख़ासतौर पर बैक्टीरियल ब्लाइट रोग से, जो फसल को बहुत क्षति पहुंचाता है। यह रोग ज़ैंथोमोनस एक्सोनोपोडिस पी.वी. (Xanthomonas axonopodis pv) के कारण होता है।
अनार पर राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र (NRCP) द्वारा 2005 से 2009 तक किए गए सर्वेक्षण से पता चला कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के सभी अनार उगाने वाले क्षेत्रों में इस रोग का हल्का या गंभीर प्रकोप था। कर्नाटक में बैक्टीरियल ब्लाइट की व्यापकता 58.33 थी, जिसमें 27.77% अनार के बागों पर मध्यम और 33.05% बागों में हल्का संक्रमण था। इसके कारण 4 साल में ही फसल का उत्पादन काफ़ी कम हो गया। 2003-2004 में यह 1.18 मिलियन टन था, जो साल 2007-08 में बैक्टीरियल ब्लाइट के कारण घटकर 10,000 टन हो गया।
बढ़ी लगात
कीट व बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए किसान कीटनाशक व उर्वरकों का अधिक इस्तेमाल करने लगें, जिससे उनकी खेती की लागत बढ़ गई। पानी में घुलनशील खाद का अधिक इस्तेमाल करने से भी लागत बढ़ गई। एक आंकड़े की मुताबिक, खेती की वास्तविक लागत 1.25-1.38 लाख रुपये होनी चाहिए, जबकि कीटनाशकों आदि के कारण लागत बढ़कर 2.75 से 3.10 लाख रुपये हो जाती है।
रोग से बचाव की तकनीक
अनार के बैक्टीरियल ब्लाइट की समस्या से निपटने के लिए NRCP, सोलापुर और ICAR-IIHR, बेंगलुरु द्वारा एक तकनीक विकसित की गई। ये तकनीक है एकीकृत रोग प्रबंधन। इसमें बाग की सफाई, हस्ता बहार फसल को विनियमित करने, स्ट्रेप्टोसाइक्लिन (500 पीपीएम) जैसी एंटीबायोटिक दवाओं को कार्बेन्डाजिम (0.15%) या मैनकोज़ेब (0.2%) या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (0.3%) या बोर्डो मिश्रण (0.1%) जैसे फंगीसाइड के साथ उचित मात्रा में इस्तेमाल करने जैसी पद्धतियाँ शामिल है। इसका इस्तेमाल स्थानीय मौसम की स्थिति के आधार पर 15 दिनों के अंतराल पर करना है।
एकीकृत फसल प्रबंधन की ये तकनीक रबी सीज़न के दौरान तुमकुरु ज़िले के सिरा और पावागड़ा तालुक के पांच किसानों के खेतों में लगातार तीन साल (2014-17) के लिए अपनाई गई। क्लस्टर गाँव के प्रत्येक किसान के लिए व्यापक जागरूकता अभियान चलाकर और क्षेत्र का दौरा करके उन्हें कीटनाशकों के सही इस्तेमाल की जानकारी दी गई, जिससे खेती की लागत कम हुई।
अधिक उपज
एकीकृत रोग प्रबंधन के तरीकों को अपनाने वाले डेमो खेत में प्रति हेक्टेयर 8.92 टन की फसल प्राप्त हुई, जबकि अन्य में सिर्फ़ 6.88 प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त हुई। इस तरह से उपज में 29.65 फ़ीसदी की वृद्धि हुई। ऐसा मुमकिन हुआ स्प्रे की मात्रा और अनचाहे केमिकल का उपयोग कम करने से। इसके अलावा, कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा विकसित जैव कीटनाशक और जैव खाद का इस्तेमाल करने से भी किसानों की खेती की लागत काफ़ी कम हो गई।
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अनार उत्पादकों के पास अपनी आय दोगुनी करने की संभावना काफी ज़्यादा है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इसकी अच्छी कीमत मिलती है। जो अनार स्थानीय बाज़र में 75 रुपये प्रति किलो बिकता है, अंतरराष्ट्रीय बाज़र में वह 130 रुपये प्रति किलो तक बिक सकता है। इसके अलावा, अनार के मूल्य संवर्धन उत्पादों से भी किसान अतिरिक्त कमाई कर सकते हैं।
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