“नहीं मुझे दर्द नहीं हुआ, वो इसलिए क्योंकि नए लगाने की ख़ुशी थी ना”, ये प्रतिक्रिया कश्मीर के उस 55 वर्षीय किसान गुलाम हसन ख़ान ने तब ज़ाहिर की, जब उनसे सेब के पौधे लगाने के लिए बरसों पुराने बाग़ में लगे बादाम के पेड़ काटने के बारे में पूछा गया। पढ़े-लिखे और तरक्की पसंद गुलाम हसन कश्मीर के पुलवामा ज़िले के उन किसानों में से हैं जो खेती किसानी में प्रयोग करने से नहीं चूकते। कम से कम तब तो बिल्कुल भी नहीं हिचकिचाते, जब बदलाव करने में अच्छी आमदनी दिखाई देती हो। गुलाम हसन कश्मीर के पायर गाँव के रहने वाले हैं। पायर गाँव तकरीबन 400 परिवारों का बसेरा है। गुलाम हसन कहते हैं, “आसपास के 20 किलोमीटर के दायरे में खेती करने वाले किसानों में पहला मैं ही हूं, जिसने इटेलियन किस्म के हाई डेंसिटी तकनीक एप्पल प्लांट (High Density Apple Plant) लगाए।”
बादाम के पेड़ काटकर लगाए सेब के पेड़
ये बात 2019 की है जब गुलाम हसन ख़ान ने गाँव के करेवा स्थित अपनी ज़मीन में एक साथ दो प्रयोग किए। गांव के बाहरी हिस्से वाले पहाड़ के ऊपर खेत और बागान वाले इलाके को कश्मीर में करेवा या वुडर कहा जाता है। यहां गुलाम हसन ने तकरीबन 18 कनाल ज़मीन में से 5 कनाल में लगे बादाम के पेड़ काटे ताकि उनकी जगह सेब लगाए जा सकें।
दूसरा प्रयोग उन्होंने सेब की किस्म चुनने में किया। सेब की ऐसी किस्म का चुनाव उन्होंने किया, जिसकी खेती उस वक़्त आसपास का कोई और किसान नहीं कर रहा था। इटली सेब (Italy Apple) के नाम से लोकप्रिय सेब की किस्म के पौधे उन्होंने एक प्राइवेट कम्पनी से मंगाए, जो इन पौधों का विदेश से आयात करती है।
इटली सेब की किस्म को चुना
रंग, रूप और स्वाद के मामले में परम्परागत सेब से अलग होने के साथ-साथ इस सेब का अच्छा दाम भी मिलता है, इसलिए बादाम के पुराने पेड़ों को काट इन्हें लगाने में गुलाम हसन को न तकलीफ हुई और न ही किसी तरह की हिचकिचाहट हुई। सेब के नए पौधे लगाए जाने के एक साल बाद ही उन्हें उपज प्राप्त होने लगी। बरसों के आजमाए परम्परागत कुल्लू डिलीशियस ( Kullu Delicious) किस्म की जगह सेब की नई किस्म लगाने के पीछे कई और फ़ायदे भी गुलाम हसन ने बताए।
परम्परागत खेती की तुलना में हाई डेंसिटी तकनीक में फ़ायदा
हाई डेंसिटी तकनीक यानी अत्यधिक घनत्व वाली सेब की इटली सेब (Italy Apple) किस्म का पौधा रोपित होन के अगले साल ही जहां फल देना शुरू कर देता है और वहीं तीन साल का होते होते पूरी क्षमता के साथ फल देने वाला पेड़ बना जाता है। जबकि कुल्लू डिलीशियस या अन्य परम्परागत सेब की किस्म के पौधे की फल देने की पूरी क्षमता विकसित होने में ही 10 से 12 साल लगा जाते हैं।
हाई डेंसिटी तकनीक में लगते हैं ज़्यादा पेड़
एक कनाल क्षेत्र में हाई डेंसिटी तकनीक से 170 पेड़ लगते हैं, जबकि परम्परागत सेब के तकरीबन 20 पेड़ों को इतनी जगह चाहिए होती है। यही नहीं, हाई डेंसिटी का प्रत्येक पेड़ परम्परागत पेड़ के मुकाबले फल भी कहीं ज़्यादा देता है। बाज़ार में हाई डेंसिटी तकनीक से उगाए गए सेब की कीमत भी सेब की पुरानी किस्म से ज़्यादा है। आज के दौर में जहां कुल्लू डिलीशियस मंडी में 35 से 40 रुपये किलो बिकता है, वहीं हाई डेंसिटी तकनीक से उगाए गए सेबों की तकरीबन दोगुनी कीमत मिलती है। ज्यादा फ़ैला हुआ न होने और उंचाई 9 -10 फ़ीट तक ही रहने के कारण सेब की फसल उतारने में भी आसानी रहती है। स्टूल या छोटी सी सीढ़ी पर चढ़ कर ही आसानी से पेड़ से सेब तोड़ लिए जाते हैं। ये पेड़ एक सीध में लगते हैं और पेड़ों की दो समांनातर कतारों के बीच फासला भी रहता है। इसलिए उनके बीच खाली ज़मीन पर भी काफी धुप रहती है, लिहाज़ा उस जगह पर सब्जियां आसानी से लगाईं जा सकती हैं। गुलाम हसन ने भी सब्जियां उगाई हुई हैं, जिसका इस्तेमाल वो अपने घर के लिए करते हैं।
2019 में किए गए अपने प्रयोग की सफलता को देखते हुए उत्साहित गुलाम हसन ने 2021 में 8 कनाल ज़मीन पर भी लगे बादाम के पेड़ हटाकर हाई डेंसिटी वाले सेब के पौधे लगा दिए। अन्य परम्परागत सेब की फसल जहां सितंबर से नवंबर के बीच तोड़ने लायक होती है, वहीं हाई डेंसिटी में सेब अगस्त के महीने में ही तैयार हो जाता है। सीजन में सेब की ये पहली ताज़ा फसल होती है इसलिए इसके भाव भी सही मिल जाते हैं।
गुलाम हसन से अन्य किसान भी हुए प्रेरित
गुलाम हसन की देखा-देखी उनके क्षेत्र के अन्य किसानों ने भी हाई डेंसिटी सेब की तरफ रूख किया है। पुलवामा ही नहीं, हाई डेंसिटी तकनीक से सेब का उत्पादन अब कश्मीर के किसानों का रुझान भी बन गया है।
पानी का किया प्रबंधन
सिंचाई के लिए पानी की समुचित सप्लाई का अभाव और जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम की पड़ने वाली मार सेब किसानों के लिए बड़ी चुनौती है। इन्हें बारिश और बर्फ पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि हाई डेंसिटी सेब (High Density Apple) के पौधों की ड्रिप सिंचाई होती है इसलिए पानी का अच्छा प्रबन्धन हो जाता है। पौधे सप्लाई करने वाली कम्पनी इसके लिए वॉटर टैंक और पाइप लाइन का जाल लगाती है। ये पाइप ज़मीन से डेढ़ दो फुट उंचाई पर पेड़ के तने और सपोर्ट से बाँध दिए जाते हैं, जिनसे पानी टपकता रहता है। गुलाम हसन ने इसके लिए 12 हज़ार लीटर पानी जमा रखने के लिए टंकियों का बन्दोबस्त किया है, जो एक प्रयाप्त उंचाई पर रखी गईं हैं। वो बताते हैं कि गर्मियों के दिनों में जब कश्मीर में वर्षा नहीं होती (अप्रैल से अक्टूबर तक) तब बस सुबह शाम आधा आधा घंटा सिंचाई करना काफ़ी होता है।
सेब को पक्षियों से बचाने के लिए अपनाया तरीका
गुलाम हसन ने जहां सबसे पहले हाई डेंसिटी सेब लगाए वहीं पर बेहतरीन किस्म के ‘गोल्डन’ किस्म के सेब के भी पेड़ हैं। यहां पर उन्होंने पेड़ों के ऊपर टेंट की तरह प्लास्टिक की मज़बूत जाली भी लगा दी है। इसका मकसद सेब की फसल को ओलावृष्टि से बचाना है लेकिन ये एक अन्य समस्या का भी समाधान है और वो है पक्षियों से बचाव। सेब की काफ़ी फसल को पक्षी अपनी चोंच मारकर नुकसान पहुंचाते हैं। जाल के कारण ये उनकी पहुँच से बाहर रहते हैं।
हाई डेंसिटी सेबों में जोखिम बस इतना ज़रूर है कि सेब को पेड़ से तोड़ने के बाद बिना कोल्ड स्टोरेज के ज़्यादा दिन तक रखा नहीं जा सकता। सेब के पेड़ की उम्र अन्य परम्परागत खेती के मुकाबले काफ़ी कम रहती है, लेकिन ये पेड़ चंद साल में ही इतना फल दे देते हैं, जितना सेब की अन्य किस्मों के पेड़ पूरे जीवन चक्र में नहीं दे सकते। बल्कि यूं कहें कि उन पेड़ों को जीवन चक्र दोगुना भी हो जाए तो भी इस किस्म के बराबर फसल नहीं दे सकते। खेती में प्रयोग करने के मामले में गुलाम हसन शुरू से ही आगे रहे हैं। उन्होंने करेवा (पहाड़ का मैदानी इलाका) में अपने बाग़ तक पानी पहुंचाने के लिए 600 फुट नीचे उस जगह तक पाइप लाइन बिछाई जहां से मोटर के ज़रिये पानी खींचा जा सकता है। उनके इस आइडिया को कुछ और बागवानों ने भी अपना कर अपने पेड़ों की अच्छी सिंचाई का इंतजाम किया है।

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