Bathua Farming: हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती से लेकर उन्नत किस्म की जानकारी

ठंड के मौसम में बाज़ार में कई तरह की हरी सब्ज़ियां व साग मिलने लगते हैं। पालक, मेथी, मूली के अलावा जो एक और साग बिकता है, वह है बथुआ। यह पौष्टिकता से भरपूर होने के साथ ही कई तरह की बीमारियों से भी बचाता है। बथुआ की खेती से जुड़ी अहम जानकारियां हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं।

बथुआ की खेती

बथुआ की खेती | सेहत के लिए हरी सब्ज़ियां, ख़ासतौर पर हरी पत्तेदार सब्ज़ियां बहुत फ़ायदेमंद होती है। सर्दियों का मौसम आते ही बाज़ार में हरी सब्ज़ियों की बहार आ जाती है- पालक, मेथी, मूली, सरसों के अलावा बथुआ का साग भी खूब बिकता है। कुछ लोग बथुआ को दाल में डालकर खाते हैं, तो कुछ इसका साग बनाकर खाते हैं। रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के साथ ही यह कब्ज व गैस की समस्या से राहत दिलाने में मददगार माना जाता है। इसके औषधीय गुणों को देखते हुए ही बाज़ार में सर्दियों में इसकी मांग बढ़ जाती है। बथुआ की खेती से सीज़न में किसान 35-40 हज़ार रुपये का मुनाफ़ा कमा सकते हैं।

बथुआ की खेती के लिए मिट्टी और जलवायु

बथुआ का वानस्पतिक नाम ‘चिनोपोडियम एलबम’ है और इसकी करीब 250 प्रजातियां होती हैं। भारत में भी बथुआ की करीब 8 किस्में पाई जाती हैं। यह शाकीय पौधा है जिसमें किसी तरह की महक नहीं होती। इसकी ख़ासियत यह है कि कई बार यह खेतों में खरपतवार के रूप में भी उग जाता है और बकायदा इसकी खेती भी की जाती है। बथुआ की खेती ठंडी के मौसम में ही की जाती है। इसलिए अक्टूबर में बुवाई करना उपयुक्त होता है। वैसे तो बथुआ किसी भी प्रकार की मिट्टी में उग जाता है, लेकिन बलुई दोमट और दोमट मट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। बथुआ के पौधों के बड़ा होने पर उन्हें सहारा देने की ज़रूरत पड़ती है, वरना फूल और बीज के भार से पौधे गिरने लगते हैं। इसके पौधों की लंबाई 30-80 सेंटीमीटर तक होती है।

हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती bathua ki kheti
तस्वीर साभार- realbharat

Bathua Farming: हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती से लेकर उन्नत किस्म की जानकारी

ICAR ने विकसित की बथुआ की नयी किस्म

बथुआ का पौधा ठंडे इलाकों में आसानी से उग जाता है, इसलिए पश्चिमी हिमालय क्षेत्र के लोग अपने घर के आसपास और खेतों में भी इसे उगाते हैं। यहां बथुआ की तीन किस्में पाई जाती हैं- चेनोपोडियम एलबम, विरिडी व चेनोपोडियम गिगेंटम परप्यूरियम। इसके अलावा, ICAR, नई दिल्ली ने बथुआ की उन्नत किस्म पूसा बथुआ नं.1 विकसित की है। इसके पौधों की लंबाई 2.25 मीटर तक होती है। इसकी पत्तियों का रंग हरा व बैंगनी होता है। बुवाई के 40-45 दिनों बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है और करीब 150 दिनों तक इससे फसल प्राप्त होती रहती है।

कैसे करें बुवाई

बुवाई से पहले खेत में 2-3 बार जुताई करें और आखिरी जुताई से पहले प्रति हेक्टेयर 5-6 टन गोबर की खाद मिलाएं। बथुआ के बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें आप गोबर की खाद में मिलाकर 5-10 मिलीमीटर गहराई में बो सकते हैं। बथुआ की बुवाई सितंबर के अंतिम सप्ताह से लेकर मार्च के पहले सप्ताह तक की जा सकती है। एक हेक्टेयर खेत के लिए एक से डेढ़ किलो बीज की ज़रूरत होती है। बथुआ की नर्सरी भी तैयार की जा सकती है और फिर पौधों के 7-8 सेंटीमीटर लंबा होने पर उन्हें खेत में लगाया जा सकता है।

हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती bathua ki kheti
तस्वीर साभार- amazon

बथुआ की खेती में कैसे करें सिंचाई और कटाई?

बीज की बुवाई या नर्सरी के पौधों को लगाने के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें। बथुआ को बहुत कम पानी की ज़रूरत होती है। बुवाई से लेकर फसल काटने तक की अवधी के दौरान सिर्फ़ 3-4 बार सिंचाई की ज़रूरत होती है। बीज लगाने के 40-45 दिनों बाद बथुआ की फसल पहली कटाई के लिए तैयार हो जाती है। फिर हर 12 से 15 दिन के बाद आप इसके पत्तों को काट सकते हैं, लेकिन जब इसमें फूल आने लगे तो कटाई न करें, क्योंकि तब इसमें बीज बनने लगते हैं।

हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती bathua ki kheti
तस्वीर साभार: ICAR

Bathua Farming: हरी पत्तेदार सब्जी बथुआ की खेती से लेकर उन्नत किस्म की जानकारी

पत्तों के साथ बीज भी है फ़ायदेमंद

बथुआ के पत्तों की सब्ज़ी, साग, दाल, रायता, परांठा आदि तो बनाया ही जाता है, साथ ही इसके बीज का सेवन भी बहुत फ़ायदेमंद होता है। इसके बीज को चावल की तरह उबालकर खाया जाता है और इसमें विटामिन ए, प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पैटैशियम आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है।

देश के साथ ही विदेशी बाज़ार में भी बथुआ की बहुत मांग है, ऐसे में इसकी वैज्ञानिक खेती से किसानों के लिए अच्छी आमदनी का ज़रिया बन सकती है।

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सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

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