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देश के कई हिस्सों में रबी सीज़न की फसल की कटाई शुरू हो चुकी है। जायद की फसल में सब्जियों के उत्पादन के लिए किसानों को लोम मिट्टी (दोमट मिट्टी) का इस्तेमाल करना चाहिए। जायद की फसल को करीब 6 से 7 घंटे सूरज की रोशनी चाहिए होती है। मार्च के महीने से जायद की फसलों की बुवाई शुरू हो गई है।
अब यहां पर एक अहम बात आती है कि किसान जायद की फसल में कौन सी उपज का चयन करें और जायद फसल की देखरेख कैसे की जाए? साथ ही फसल की बुवाई के वक्त किन बातों पर खास देना चाहिए? तो इसके लिए किसान ऑफ़ इंडिया के शो कृषि टॉक में सभी सवालों के जवाब आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर (एग्रोनॉमी) पद पर कार्यरत कृषि विशेषज्ञ डॉ. विशुद्धानंद ने दिये हैं। आइए जानते हैं जायद की फ़सल को लेकर हुई चर्चा के प्रमुख बिंदु।
जायद सीज़न में कौन-कौन सी फसलें आती हैं?
आपको बता दें कि जायद की फसल में कई तरह के फल और सब्जियां आती हैं। उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो तोरई, बैंगन, करेला, खरबूजा, तरबूज़, परवल, भिंडी, खीरा, ककड़ी, मिर्च, टमाटर वगैरहा फसलों को किसान अपने खेत में उगाने के लिए लगा सकते हैं।
जायद फसलों की बुवाई से पहले मृदा कैसे तैयार करें?
जायद की फसलों की बुवाई मार्च से मई महीने तक होती है। फरवरी का महीना मिट्टी की तैयारी के लिए है। रबी की सीजन में लगने वाली फसलों की कटाई कुछ हिस्सों में चालू हो गई है। कई जगहों पर किसानों ने आलू को हार्वेस्ट कर लिया है। खेत तैयार करने के लिए सबसे पहले गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद खेत को खुला छोड़ देना चाहिए। इससे खेत को सूरज की रोशनी मिलेगी। जिससे फसलों को नुकसान करने वाले कीट मर जाते हैं। जैसे दीमक, थ्रिप्स व अन्य कीट नष्ट हो जाते हैं।
गहरी जुताई के बाद खेत में 20 से 25 टन गोबर की खाद डाल दें, इसके बाद खेत की अच्छे तरीके से जुताई करें। इससे खाद मिक्स हो जाएगी। मिक्स करने के बाद खेत में पानी भर दें। ऐसा करने से खाद खेत की मिट्टी में अच्छे से मिक्स हो जाती है।
जायद फसलों की कब और कैसे बुवाई करें?
किसान खेत तैयार करने के साथ-साथ ये तय कर लें कि वो कौन सी फसल का उत्पादन करना चाहते हैं। जैसे कि आप लौकी, कद्दू लगा रहे हैं तो जुताई करने के बाद थाला विधि से सिंचाई करने की व्यवस्था करें। इसके बाद वैज्ञानिक पद्धति से बीज की बुवाई करें। अगर किसान भिंडी की फसल ले रहे हैं तो है तो उसे खेत की मेढ़ पर लगाना चाहिए। साथ ही उचित दूरी का ध्यान रखना चाहिए।
मार्केट कैसे सेट करें?
अगर मुनाफ़े की बात की जाए तो इलाके का बहुत असर पड़ता है। पहले किसान को अपने क्षेत्र की मांग को समझना चाहिए। उस क्षेत्र में किस फसल की मांग हैं, उसे चिन्हित करके फसल की बुवाई की जा सकती है। अगर किसान ने फसल की जल्दी बुवाई कर दी है तो उत्पादन बाज़ार में जल्दी आ जाता है। इससे किसानों को मुनाफ़ा होने के चांस बढ़ जाते हैं। अगर किसान देरी से फसल को बोता है तो किसान को मुनाफ़ा होने की संभावना कम हो जाती है।
बेल वाली फसलों में किन बातों का ध्यान रखें?
बेल वाली फसलों में कद्दू, तोरई, लौकी, करेला और परवल आते हैं, इसलिए इन फसलों के लिए किसान साथियों को एक संरचना बना लेनी चाहिए। इससे बेल का फैलाव ज़्यादा से ज़्यादा हो जाता है। लौकी के एक पौधे से दूसरे पौधे के बीच की दूरी पांच मीटर रखनी चाहिए। इसके अलावा उसकी प्रजाति पर भी निर्भर करता है। अगर आप बेलदार सब्जी की खेती खेत में करते हैं तो सबसे पहले बालू और गोबर की खाद का इस्तेमाल करें। इन दोनों को बराबर मात्रा में मिलाना चाहिए। इसको थैला विधि से तैयार करना होता है। इसके बाद एक निश्चित दूरी पर बीज को डालना चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद उस थैला को खेत में गड्ढा करके डाल देना चाहिए। इसके बाद बीज की बुवाई कर देनी चाहिए। इससे किसान की जुताई का खर्चा बच जाता है।
किसान बेल फैलाने के लिए लकड़ी, लोहे की रॉड और पिलर से स्ट्रक्चर बना देते हैं। अगर परवल की बात की जाए तो उसके लिए लोहे के एंगल से तार को लपेटकर स्ट्रक्चर बनाना चाहिए। इस तरह संरचना बनाने से फ्लोवरिंग और फ्रूटिंग के चांस बढ़ जाते हैं। इससे फसल को बीमारियों से बचाया जा सकता हैं। इस तरह संरचना बनाने पर पौधे को सूर्य का प्रकाश मिल जाता है और पौधों में लगने वाले कीट और रोग लग नहीं पाते।
जायद की फसल में लगने वाले रोग और उसके उपाय
लीफ कर्ल रोग- जायद की फसल में लीफ कर्ल रोग वायरस की वजह से होता है। लीफ कर्ल रोग बेल वाली फसल जैसे कद्दू और लौकी में सबसे ज्यादा होता है। इस बीमारी में पत्तियों के नीचे की सतह पर भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। पत्तों के किनारे झुलस जाते हैं। पौधे की ग्रोथ कम होती है और उत्पादन में भी कमी आती है। अगर पौधों में ये लक्षण दिखाई दे तो पौधे को उखाड़ के खेत में गाड़ देना चाहिए। किसान को फसल चक्र का भी ध्यान रखना चाहिए। रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले उन्नत किस्मों का इस्तेमाल करना चाहिए।
डंपिंग ऑफ रोग- डंपिंग ऑफ बीमारी में सीडलिंग स्टेज में पौधे का तना पूरी तरह से गल जाता है। ये अधिकतर बीमारी प्याज और लहसुन के पौधों में देखी जाती है। इस बीमारी से बचने के लिए बीज का पहले से ही ट्रीटमेंट कर लेना चाहिए। कैप्टान की मात्रा 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के साथ में ट्रीटमेंट करते हैं। ऐसा करने से इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है।
पाउडरी मिल्ड्यू रोग- पाउडरी मिल्ड्यू बीमारी अधिकतर लौकी,तोरई, परवल, भिंडी जैसी फसलों में होता है। इस बीमारी का लक्षण निचली पत्तियों पर सफेद और ग्रे रंग का चूर्ण दिखाई देने लगता है। इसके साथ ही पौधे की ग्रोथ भी रुक जाती है। पाउडरी मिल़्ड्यू रोग के रोकथाम के लिए घुलनशील सल्फर 0.2 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर पहला छिड़काव तब करना चाहिए जब फूलों का गुच्छा 8 से 10 से.मी. आकार का हो जाना चाहिए। इसके बाद दूसरा छिड़काव डिनोकैप का पहले छिड़काव के 10 से 15 दिनों के बाद करना चाहिए। तीसरा छिड़काव ट्राईडीमार्फ का दूसरे छिड़काव के 10 से 16 दिनों के बाद करना चाहिए। यदि इस बीमारी का असर कम हो तो तीनों छिड़काव में घुलनशील सल्फर का इस्तेमाल करना चाहिए।
डाउनी मिल्ड्यू रोग- डाउनी मिल्ड्यू के लक्षण अधिकतर लौकी, तोरई वगैरह पौधों के पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले रंग के पैच आने लगते हैं। पत्तियों के नीचे की तरफ ब्राउन कलर दिखाई देता है। इससे पत्तों की ग्रोथ नहीं हो पाती। इस बीमारी के कारण प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया नहीं हो पाती है। इससे किसानों को उत्पादन कम मिलता है।
मिट्टी का पीएच मान कितना होना चाहिए ?
जायद की फसल में सब्जियों के उत्पादन के लिए किसानों को लोम मिट्टी (दोमट मिट्टी) में खेती करना चाहिए। सब्जियों में बीमारी से बचने के लिए जिस ज़मीन पर किसान फसल लगाने वाला है वहां की मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच में होना चाहिए।