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प्रोटीन से भरपूर मशरूम की मांग धीरे-धीरे बढ़ रही है, लेकिन पहाड़ी क्षेत्रों में आज भी कई किसानों को इसके उत्पादन की जानकारी नहीं है, जिससे वो इसके मुनाफ़े से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में मशरूम की खेती को बढ़ावा देने की ज़िम्मेदारी उत्तराखंड के उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग ने उठाई है।
उत्तराखंड के ज्योलीकोट में इंडो डच मशरूम परियोजना के ज़रिए किसानों को लाभ पहुंचाने का काम किया जा रहा है। इसके मुख्य विकास अधिकारी जगदीश भट्ट ने सरकार की ओर से मशरूम उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए चलाई जा रही अलग-अलग योजनाओं और उत्पादन में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में विस्तार से चर्चा की किसान ऑफ़ इंडिया की संवाददाता दीपिका जोशी से।
मशरूम की खेती पर किसानों को प्रशिक्षण
जगदीश भट्ट कहते हैं कि आज भी पहाड़ में बहुत से लोग मशरूम नहीं खाते हैं, क्योंकि उन्हें इसकी पौष्टिकता के बारे में पता ही नहीं है। ऐसे में हम लोग उन्हें जागरूक करने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही किसानों को मशरूम उत्पादन के लिए 3 दिन और 7 दिन की ट्रेनिंग देने के साथसाथ तकनीकी जानकारी भी दे रहे हैं। जगदीश भट्ट बताते हैं कि किसान तीन तरह के मशरूम को आसानी से घर पर उगा सकते हैं। बटन मशरूम, ओएस्टर मशरूम और मिल्की मशरूम। किसान तापमान का ध्यान रखकर पूरे साल मशरूम की खेती करके अच्छी कमाई कर सकते हैं।
बटन मशरूम के लिए कम्पोस्ट
जगदीश भट्ट का कहना है कि मशरूम उत्पादन में सबसे ज़्यादा समस्या आती है बटन मशरूम के लिए कम्पोस्ट बनाने में। इंडो डच मशरूम परियोजना के बारे में जानकारी देते हुए वो बताते हैं कि ये प्रोजेक्ट नीदरलैंड बेस्ड है। वहां कम्पोस्ट तैयार करते हैं। साथ ही स्पॉन भी उपलब्ध कराते हैं। जो लोग ओएस्टर और मिल्की मशरूम का उत्पादन करना चाहते हैं, उन्हें 50 फ़ीसदी राशि पर स्पॉन उपलब्ध कराए जाते हैं।
आगे वो बताते हैं कि बटन मशरूम इस इलाके में काफ़ी लोकप्रिय है। इसके लिए कम्पोस्ट बनाने में मुख्य रूप से गेहूं के भूसे का इस्तेमाल होता है। गेहूं के भूसे में मुर्गी की खाद डाली जाती है। इसे फिर एक प्लेटफॉर्म पर भिगाया जाता है। जिसके बाद इसकी ढेरी तैयार की जाती है। फिर इसमें गेहूं का चोकर, यूरिया और जिप्सम मिलाया जाता है। इस प्रक्रिया में 20-25 दिन का समय लगता है। जगदीश बताते हैं कि उनके पास विदेशी तकनीक की मशीने हैं जैसे टर्निंग और मिक्सिंग मशीन, जिनकी मदद से ढेरी बनाई जाती है। इसके बाद ढेरियों को पाइश्चराइज़ेशन टनल में डाला जाता है। उसमें 50-60 डिग्री तापमान पर इसे 8 घंटे के लिए रखा जाता है। फिर इसे किसानों को सप्लाई किया जाता है।
कम्पोस्ट के साथ किसानों को स्पॉन भी देते हैं। वो कहते हैं कि एक टन कम्पोस्ट में 6 किलो स्पॉन डाला जाता है। 10-15 दिनों में इसका माइसीलियम फैलता है। ये 22-25 डिग्री तापमान पर फैलता है। ये पूरी प्रक्रिया इंडोर है। फिर कोकोपीट के ऊपर बनी केसिंग सॉइल की सवा से दो इंच मोटी परत कम्पोस्ट पर बिछाई जाती है। इसके बैग बनाए जाते हैं जिसमें मशरूम का उत्पादन होता है। मशरूम उत्पादन के लिए 16-18 डिग्री तापमान होना चाहिए। इस तरह 2 महीने में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
किस महीने में कौन सा मशरूम उगाए?
विकास अधिकारी जगदीश भट्ट बताते हैं कि किसान अपने इलाके में तापमान का ध्यान रखकर पूरे साल मशरूम की खेती कर सकते हैं। पहाड़ी इलाकों में सितंबर का मौसम बटन मशरूम के उत्पादन के लिए अच्छा होता है। इस समय बाहर का तापमान 28 तक होता है यानी इंडोर तपामान 22-25 तक मिल जाता है।
इस समय बैग तैयार कर लेने चाहिए फिर उत्पादन के लिे 16-18 डिग्री का तापमान चाहिए जो अक्टूबर से लेकर जनवरी-फरवरी तक मिल जाता है। ऐसे में इसे फरवरी तक उगाया जा सकता है। मार्च अप्रैल में ओएस्टर मशरूम उगा सकते हैं। इस समय तापमान 30 डिग्री तक जाता है। जब तापमान इससे ऊपर यानी 28 से 38 डिग्री तक जाए तो उस समय मिल्की मशरूम का उत्पादन किया जा सकता है।
मशरूम उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकारी योजनाएं
जगदीश भट्ट कहते हैं कि मशरूम को बढ़ावा देने के लिए इंडो डच मशरूम परियोजना, ज्योलीकोट के तहत हम ‘नो लॉस नो प्रॉफिट’ के तहत प्रॉडक्ट तैयार करके किसानों को 50 फ़ीसदी सब्सिडी पर देते हैं। इसके अलावा, विभाग की ओर से कई जनपदों में 80 फ़ीसदी तक सब्सिडी दी जा रही है। व्यावसायिक तौर पर जो लोग मशरूम उत्पादन करना चाहते हैं उनके लिए हमारी मशरूम की तीन यूनिट है।
उत्पादन ईकाई- उत्पादन इकाई की स्थापना के लिए बैंक से मिलने वाले लोन पर 40 प्रतिशत तक सब्सिडी दी जाती है। मगर ये राशि 8 लाख से अधिक नहीं हो सकती।
कम्पोस्ट उत्पादन इकाई- इसमें भी बैंक लोन पर 40 फीसदी तक सब्सिडी दी जाती है।
स्पॉन बनाने की इकाई- इसमें भी सब्सिडी दी जाती है लेकिन इसमें 15 लाख की लीमिट है। खर्च ज़्यादा होता है, तो किसान को ही इसे उठाना होगा।
योजना का लाभ उठाने की प्रक्रिया
जो लोग सरकारी योजनाओं और सब्सिडी का लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें इसकी प्रक्रिया समझाते हुए जगदीश बताते हैं-
ये प्रक्रिया सोलन से शुरू होती है। हिमाचल प्रदेश के सोलन में सरकार का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है, वहां के अधिकारी एक प्रोजेक्ट तैयार करके किसान को देते हैं, जिसे लेकर किसान बैंक जाता है और बैंक जब सहमति पत्र देता है कि हम आपके प्रोजेक्ट के लिए लोन देने को तैयार हैं। उसके बाद सारी फॉर्मैलिटी पूरी करने के बाद किसान हमारे पास आते हैं। फिर हम लोग साइट विज़िट करते हैं और देखते हैं कि उनके नाम पर ज़मीन है या नहीं। सब देखने के बाद इसे आगे देहरादून भेज दिया जाता है। जहां बैठक में केंद्र सरकार की तरफ़ से लोग आते हैं, जो किसानों का चुनाव करते हैं और फिर सब्सिडी पास की जाती है।
छोटे स्तर पर मशरूम यूनिट शुरू करते समय ध्यान रखने वाली बातें
जो लोग छोटे स्तर पर मशरूम की खेती करना चाहते हैं, उन्हें नुकसान से बचने के लिए जगदीश भट्ट सलाह देते हैं कि किसानों को तापमान का आइडिया होना ज़रूरी है, नेचुरल टेम्प्रेचर के हिसाब से ही मशरूम उगाना चाहिए। कम्पोस्ट की पहचान करना भी ज़रूरी है, उसकी क्वालिटी कैसी होनी चाहिए, कौन सा स्पॉन लेना चाहिए, इस बारे में भी पता होना चाहिए। ये सारी चीज़ें ट्रेनिंग में उन्हें बताई जाती हैं। आगे वो बताते हैं कि मशरूम में नियमित रूप से स्प्रे करना होता है। अगर किसी कारण से 2 दिन स्प्रे न किया जाए या आसपास मुर्गियों का बाड़ा है तो नुकसान होने की संभावना रहती है।
कैसे करें मशरूम की खेती की ट्रेनिंग के लिए अप्लाई?
अगर कोई ट्रेनिंग लेना चाहता है, तो किसी भी उद्यान सेंटर में अपना फोन नंबर, एड्रेस दे सकता है। उद्यान विभाग के सेंटर हर जगह हैं। सेंटर में जमा एप्लीकेशन के हिसाब से लोगों का ग्रुप बनाया जाता है और फिर उन्हें फोन करके ट्रेनिंग के लिए बुलाया जाता है। महीने में 2 से 3 ट्रेनिंग होती है।
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