FPO (Farmer’s Producer Organization) आधारित एक्सटेंशन डिलीवरी मॉडल महिला किसानों की आमदनी बढ़ाने में सहयोग दे रहा है। इसकी क्षमताओं का भरपूर फायदा लेने के लिए ICAR-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी ने मशरूम उत्पादन में ‘ट्रेनिंग टू मार्केटिंग मॉडल’ की अवधारणा के तहत एक पहल की। इसके ज़रिए प्रशिक्षण देने के बाद FPO से जुड़ी मशरूम उत्पादक महिलाओं को अपने उत्पाद की बिक्री के लिए ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी। उनका ऑयस्टर मशरूम ICAR-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के ज़रिए अच्छी कीमत में बिक गया।
क्या है FPO?
FPO (Farmer’s Producer Organization) यानि किसान उत्पादक संगठन किसानों का एक ग्रुप है जो कंपनी एक्ट, 2013 के तहत खुद को रजिस्टर कराते हैं। FPO आमतौर पर छोटे व सीमांत किसानों का एक समूह है, इससे जुड़ने पर किसानों को न सिर्फ अपनी फसल के लिए अच्छा बाजार मिलता है, बल्कि उन्हें खाद, बीज, दवाइयां और कृषि यंत्र आदि भी कम कीमत पर मिलते हैं। FPO किसानों के लिए फायदेमंद है इसलिए सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है। इसके ज़रिए किसानों को बिचौलियों से आज़ादी मिलती है। साथ ही उन्हें सरकार की तरफ से जारी परियोजनाओं का लाभ भी मिलता है। सरकार की ओर से 2023-24 तक 10,000 एफपीओ बनाने का लक्ष्य रखा गया है। खास बात ये है कि FPO का रजिस्ट्रेशन कंपनी एक्ट के तहत होगा, इसलिए उन्हें वो सारे लाभ मिलेंगे जो एक कंपनी को मिलते हैं। समूह में काम करने से किसानों को अपने उत्पाद की मार्केटिंग करने में आसानी होगी।

मशरूम उत्पादन के ज़रिए महिला सशक्तिकरण
ICAR-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की ओर से अगस्त 2021 में मशरूम उत्पादन द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा और महिला सशक्तिकरण पर तीन दिन के आवासीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें 20 महिला किसानों ने हिस्सा लिया। इनमें से 10 FPO की सदस्य थीं और बाकी की 10 महिलाएं FPO से नहीं जुड़ी हुई थीं। इन महिलाओं को व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को अपने घर पर ही मशरूम बैग तैयार करके इसका उत्पादन करने के लिए कहा। लेकिन 1 महीने बाद जब वैज्ञानिकों की एक टीम ने मशरूम उत्पादन की प्रगति का मुआयना किया तो देखा कि मशरूम बैग बहुत खराब स्थिति में थे।
FPO से जुड़ी महिलाओं ने मांगी मदद
सही तरीके से मशरूम उत्पादन न कर पाने पर FPO से जुड़ी 10 महिला सदस्य भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों के पास आई और उन्हें बताया कि प्रशिक्षण के बाद वो बहुत सी बातें भूल गईं। इससे मशरूम का प्रबंधन सही तरीके से नहीं हो पाया। उन्होंने दोबारा एक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की गुजारिश की। इस मामले में गौर करने वाली बात ये है कि मशरूम का उत्पादन तो सभी 20 महिलाएं नहीं कर पाईं, लेकिन भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के वैज्ञानिकों के पास FPO से जुड़ी 10 महिलाएं ही आईं। वैज्ञानिकों ने चुनी हुई 10 महिलाओं के लिए एक दिन के वर्कशॉप का आयोजन किया और उन्हें सारी ज़रूरी जानकारियां दीं। इसके बाद महिलाओं ने दोबारा मशरूम उत्पादन शुरू किया और इस बार बंपर उत्पादन हुआ।

ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन
वाराणसी के FPO से जुड़ी इन महिलाओं ने ऑयस्टर मशरूम का उत्पादन किया। इनकी बंपर पैदावर देखकर वैज्ञानिक भी खुश हो गए। हालांकि ऑयस्टर मशरूम अन्य मशरूम की तुलना में कम लोकप्रिय है बाज़ार में इसकी मांग भी कम है। ऐसे में बंपर मशरूम उत्पादन से खुश होने की बजाय महिलाएं इसकी मार्कटिंग को लेकर परेशान थीं। ये एक चुनौतीपूर्ण काम था। फिर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी के जरिए मार्केटिंग का विचार आया।
महिलाएं मशरूम लेकर भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी आईं। यहां सारा मशरुम 100 रुपए प्रति किलो की दर से बिक गया। इसके अलावा उन्होंने मशरूम की मार्केटिंग बैंक, पोस्ट ऑफिस, स्कूल और कॉलेज के आसपास की। इसके बाद ऑयस्टर मशरूम के लिए ‘इंस्टीट्यूशनल मार्केटिंग मॉडल’ बनाया गया। इसके साथ ही ऐसे उद्यमी जिन्होंने मशरूम से मूल्य संवर्धन उत्पाद बनाने का व्यवसाय शुरू किया है, उनसे संपर्क करके एक लिंक बनाया गया। ये उद्यमी मशरूम से अचार, चटनी, मशरूम पाउडर आदि का उत्पादन करते हैं और ये महिला समूह से कच्चे मशरूम खरीदते हैं। 16 महिलाओं के समूह ने अक्टूबर 2021 से फरवरी 2022 के बीज घरेलू इस्तेमाल के बाद मशरूम उत्पादन से 25,300 रुपए की आमदनी की।

FPO से जुड़कर मिली प्रेरणा
FPO से जुड़ी महिलाएं जब समूह में मिलकर काम करती हैं, तो वो आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होती हैं। और जब साथ मिलकर काम करती हैं, तो उत्पाद की मार्केटिंग के लिए अलग-अलग तरीके ढूंढ़ लेती हैं।
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