Table of Contents
Saffron Farming Information Guide | कश्मीर अपनी बेपनाह खूबसूरती के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां पर दुनिया का सबसे कीमती और नायाब मसाला जिसे आप केसर के नाम से जानते हैं, इसकी पैदावार होती है। केसर जिसे इंग्लिश में सैफरन और उर्दू में ज़ाफ़रान कहते हैं, सोने से भी ज़्यादा महंगा होता है।
आपको बता दें कि इसका फूल जो जामुनी रंग का होता है, महज़ कुछ वक्त के लिए ही खिलता है, जिसके अंदर से केसर धागों के रूप में मिलता है। केसर बेहतरीन और लज़ीज़ खानों के साथ ही कई तरह की औषधियों में भी इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही ब्यूटी प्रॉडक्ट्स में भी केसर इस्तेमाल में लाया जाता है।
इस देश में पैदा होता है सबसे ज़्यादा केसर
गोल्ड स्पाइस कहा जाने वाला केसर इस वक्त सबसे ज़्यादा ईरान में पैदा होता है। यहां से केसर दुनियाभर में एक्सपोर्ट होता है, लेकिन कश्मीर में होने वाले केसर की बात ही निराली है। इसकी कीमत बाकी देशों में बिकने वाले ज़ाफ़रान से कई गुना ज़्यादा होती है।
भारत में कहां होती है केसर की खेती?
केसर का वैज्ञानिक नाम ब्रोकर्स सेक्टर वाइज है, जो क्रोकस सैटिवस के फूल से पाया जाता है। देश में कश्मीर के पंपोर इलाके में सबसे ज़्यादा ज़ाफ़रान की खेती की जाती है। इसके बाद बडगाम और श्रीनगर में होती है। कश्मीर के इन ख़ास इलाकों में केसर इसलिए उगाया जाता है क्योंकि केसर को पनपने के लिए लाल मिट्टी की ज़रूरत होती है।
अब केसर की खेती उत्तराखंड की हर्षिल घाटी और उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में भी हो रही है। वैज्ञानिक तरीकों का इस्तेमाल करके केसर को एक बंद कमरे में भी उगाया जा रहा है। वहीं पूर्वोत्तर राज्यों जैसे अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और सिक्किम में भी केसर की खेती के लिए उपयुक्त जगहों की पहचान की गई है। NECTAR की केसर खेती परियोजना के अंतर्गतसिक्किम, अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के कुल 64 किसान इस परियोजना का लाभ ले रहे हैं।
केसर की खेती के लिए मिट्टी
केसर की खेती के लिए मिट्टी रेतीली और दोमट उपयुक्त होती है। गीले और पानी से भरी जगहों पर केसर नहीं उग सकता, इससे केसर के क्रोम सड़ने लग जाते हैं। केसर को पनपने के लिए लाल मिट्टी की ज़रूरत होती है।
कब और कैसे होती है केसर की खेती?
केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है, जिसकी खेती की जाती है। ये क्रॉसिंग के ज़रिए बीज बनाने में असमर्थ होता है, इसलिए केसर को क्रोम के माध्यम से तैयार करते हैं। इसके अंकुरण के बाद इसमें लाल और नारंगी रंग के स्टिग्मा से बैंगनी रंग के फूल निकलते हैं। इसकी खेती के लिए केसर के पौध अगस्त महीने में लगने शुरू होते हैं। इसके बाद अक्टूबर के अंतिम हफ़्ते या फिर नवंबर महीने में फूल आने शुरू हो जाते हैं।
केसर के उटपदान में तापमान का सबसे अहम रोल होता है। ये समुद्रतल से 1500 से 2800 मीटर की ऊंचाई पर शुष्क समशीतोष्ण मौसम में ही उगता है। क्रोम के विकास के लिए 23 से 27 डिग्री सेल्सियस तापमान महत्वपूर्ण होता है, वर्ना फसल खराब हो जाती है। वहीं केसर के बैंगनी फूलों के विकास के लिए 07 डिग्री सेल्सियस का तापमान सही होता है।
केसर के पौधों को लगाने का समय
केसर के पौधों को लगाने का समय है सितंबर से अक्टूबर से बीच का। इलाके के हिसाब से समुद्र तल से ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में 1800 मीटर वहीं मध्य पर्वतीयों क्षेत्रों में 1200 से 1800 मीटर की ऊंचाई में पौध रोपण होता है। 1800 मीटर के इलाकों में इसकी बीजाई सितंबर के दूसरे हफ्ते में वहीं मध्य पर्वतीयों क्षेत्रों में इसका बीज रोपड़ अक्टूबर के पहले हफ्ते में किया जाता है।
केसर के बीज
केसर की खेती के लिए प्रति हेक्टेयर पौध रोपण के लिए लगभग 40 से 50 क्विंटल केसर के क्रोम जिसका वज़न औसत रूप से 10 ग्राम हो, की जरूरत पड़ती है। केसर की खेती का एक फायदा है कि इसके बीज बार-बार नहीं रोपने पड़ते हैं। जब एक बार बीज रोप दिया जाता है तो अगले 15 सालों तक इसमें फूल आते रहते हैं। जब इन बीजों को निकाला जाता है तब ये बिल्कुल लहसुन की तरह नज़र आते हैं। इसमें भी लहसुन की तरह कलियां होती हैं।
केसर की खेती के लिए सिंचाई
केसर को उगाने के लिए बहुत ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती है। सितंबर से अक्टूबर के आखिरी 15 दिनों में केसर के पौधों को सिंचाई की ज़रूरत होती है। फूलों को तेज़ी से खिलने के लिए पानी की ज़रूरत होती है। केसर को बहुत ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती है। कुल मिलाकर ये ख्याल रखें कि सर्दियों में केसर के पौधों को सूखने न दें।
केसर के लिए खरपतवार प्रबंधन
केसर की फसल को तैयार होने में काफी वक्त लगता है, इसलिए इसमें खरपतवारों के गंभीर रोगों और संक्रमण का भी खतरा होता है। इसके लिए केसर के खेत में अक्टूबर के पहले महीने में गुढ़ाई करनी चाहिए। खरपतवारों को हाथों से तीन से चार बार ज़रूर निकालना चाहिए, जिससे इनको कंट्रोल किया जा सके।
फूलों से कैसे तैयार होता है केसर?
केसर के पौधों में फूल आने के बाद उनको बहुत ही सावधानी के साथ हाथों के जरिये एक-एक करके चुना जाता है। इसके बाद फूलों के अंदर धागों की तरह नज़र आने वाले पुंकेसर को फूलों से निकाला जाता है और निकालने के बाद उनको सुखाया जाता है। ये पुंकेसर ही केसर में बदलते हैं जिनका रंग लाल या फिर केसरी होता है। धागों को हाथ से चुनने के बाद उन्हें करीब हफ्ते तक धूप में सुखाने के लिए रखा जाता है। इसके बाद कम से कम 30 दिनों तक इसको स्टोर के लिए एयरटाइट कंटेनर में रखते हैं। इस प्रोसेस के बाद ही इस्तेमाल के लिए निकाला जाता है।
केसर की उन्नत किस्में
अभी पूरे विश्व में केसर की तीन किस्में हैं। इन किस्मों में कश्मीरी केसर,अमेरिकन केसर और ईरानी केसर के नामों से पहचाना जाता है।
कश्मीरी मोंगरा केसर
कश्मीरी मोंगरा सबसे महंगी केसर की किस्म है, इसकी कीमत करीब 3 लाख रुपये प्रति किलो से भी अधिक होती है। कश्मीरी मोंगरा भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य के किश्तवाड़ और पंपोर इलाके में ही पाई जाती है। इस किस्म के पौधे 20 से 25 सेंटीमीटर ऊंचाई वाले होते हैं। केसर के पौधों पर बैंगनी, नीले और सफेद रंग के फूल उगते हैं। बता दें कि करीब 75 हजार फूलों से महज़ 450 ग्राम केसर निकल पाता है।
अमेरिकन किस्म का केसर
अमेरिकन किस्म का केसर जम्मू-कश्मीर के साथ ही दूसरे क्षेत्रों में भी उगाया जाता है। इसको किसी खास जलवायु की ज़रूरत नहीं होती है। इस किस्म का केसर राजस्थान में भी उगाया जाता है। इसके फूल पीले होते हैं।
एक्विला केसर
एक्विला केसर की किस्म को ईरानी केसर के रूप में जाना जाता है। पूरे विश्व में ईरान का केसर 90 फीसदी की मांग पूरी करता है, ये केसर का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। वहीं इटली में भी केसर की एक्विला किस्म पैदा होती है।इस किस्म में केसर का रंग हल्का होता है लेकिन गुणवत्ता काफी अच्छी होती है।
केसर की गुणवत्ता की पहचान
केसर की गुणवत्ता इसके रंग (क्रोसिन) और स्वाद (पिक्रोक्रोसिन) के साथ उसकी खुशबू (सेफ्रेनल) पर निर्भर करती है। खुशबू जितनी अच्छी होगी टेस्ट उतना ही कड़वा होगा।
कौन कर सकता है केसर की खेती?
केसर की खेती भारत का हर नागरिक कर सकता है, उसे कानूनी रूप से पूरा हक मिला हुआ है, लेकिन, सामान्य रूप से देखते हैं तो इसकी खेती सभी किसान नहीं कर पाते हैं, क्योंकि केसर देश के महज कुछ ही स्थानों पर ही लगाया जा सकता है।इसकी खेती के लिए जो वातावरण और मिट्टी की जरूरत होती है वो जम्मू-कश्मीर के कुछ ही क्षेत्रों में पाई जाती है। भारत के दूसरे राज्यों या इलाकों के किसान चाहते हुए भी इसकी खेती अपने खेत में नहीं कर सकते हैं। पैदावार कम होने की वजह से ही केसर की कीमत हीरे और सोने से भी ज्यादा होती है।
कश्मीरी केसर को मिल चुका है जीआई टैग
कश्मीर के केसर को जियोग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) मिल चुका है। सबसे महंगा मसाला होने की वजह से केसर को ‘लाल सोना’ भी कहते हैं।
केसर के अलग-अलग नाम
भारत के राज्य जम्मू और कश्मीर में सबसे ज्यादा केसर पैदा होता है। केसर को अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है। हिंदी में सैफ्रॉन को केसर कहते हैं तो वहीं उर्दू में ज़ाफ़रान कहा जाता है। कश्मीरी भाषा में इसको कोंग कहा जाता है। संस्कृत में कुंकुमा और गुजरात में इसे केशर के नाम से जानते हैं।
अनंतनाग ज़िले का सैफरॉन पार्क
दुनिया के सबसे महंगा मसाला यानि कि कश्मीरी केसर की पैदावार करने वाले किसानों के लिए सैफरॉन पार्क तैयार किया गया है। ये केसर पार्क जो ऑर्गेनिक केसर का हब है, जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले के पम्पोर इलाके में है। इस केसर पार्क का मुख्य उद्देश्य असली केसर की उत्पादकता को बढ़ाना है और उसकी क्वालिटी को बेहतरीन करना है। यहां पर केसर के फील्ड दूर-दूर तक फैली नजर आती हैं, उसकी खूबसूरती दिल को अपनी ओर खींचती है। यहां केसर की प्रोसेसिंग से रिलेटेड सभी तरह की हाइटेक मशीनरी भी मौजूद है, जो पैकिंग और मार्केटिंग का भी काम करती है।
कश्मीरी केसर और ईरानी केसर की पहचान कैसे करें?
बैंगनी रंग के फूल से सिर्फ तीन थ्रेड्स निकलते हैं जो केसर होता है। इसके साथ ही इसी फूल में तीन पीले रंग के धागे होते हैं, जो सैफरन नहीं होते हैं इनको पट्टी बोला जाता है। ये पीले धागे दूसरे कामों में इस्तेमाल किये जाते हैं। कश्मीरी केसर की सबसे बड़ी पहचान ये होती है कि इसके पीछे का हिस्सा चौड़ा होता है, वहीं ईरान का केसर है जो ऊपर से लेकर नीचे तक पतला होता है। कश्मीर के पंपोर में उगने वाला केसर पूरी तरह से ऑर्गेनिक होता है, लेकिन ईरान के केसर में खाद्य डाल कर पैदा किया जाता है,इसलिए वो केमिकलयुक्त होता है।
अब घर के एक कमरे में भी केसर की खेती
वैसे तो कश्मीर का केसर जो सबसे अच्छी क्वालिटी का होता है वो कुछ ही इलाकों में उगाया जा सकता है,लेकिन वैज्ञानिक एयरोपॉनिक्स तकनीक के जरिये केसर को आप अपने घर के एक कमरे में भी उगा सकते हैं। इसके लिए कमरे का तापमान कंट्रोल किया जाता है। आज के वक्त में कई सारे स्मार्ट किसान कमरे में केसर की खेती कर रहे हैं। एक कमरे में केसर की खेती करने के लिए रेतीली, चिकनी या दोमट मिट्टी की जरूरत होती है। इसके लिए टेंप्रेचर को कंट्रोल किया जाता है और आद्रता को केसर की खेती के अनुरूप किया जाता है। एयरोपॉनिक्स तकनीक ईरान में काफी फेमस है, जो अब धीरे धीरे भारत में भी चलन में आ रही है।
केसर का इतिहास
ऐतिहासिक दस्तावेजों को समेटे हुए ‘हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस’, ‘थैरेपी विद केसर एंड द गॉडेस एट थेरा बुक’ में बताया गया है कि केसर को सबसे पहले यूनानियों ने उगाना शुरू किया था, इसके बाद से कई देशों में केसर की खेती व्यावसायिक तौर पर दुनियाभर होनी शुरू हुई। इनमें भारत, ईरान, इटली, फ्रांस, ग्रीस जर्मनी समेत चीन, पाकिस्तान व स्विट्जरलैंड जैसे देश शामिल हैं। इन देशों में आज के वक्त में सबसे ज़्यादा केसर पैदा किया जाता है, लेकिन भारत में पैदा होने वाले केसर की क्वालिटी सबसे अच्छी होती है।
केसर का उत्पादन करने वाले देश
बता दें कि केसर का वैश्विक उत्पादन लगभग 300 टन प्रति वर्ष है। इसमें ईरान, भारत, स्पेन और ग्रीस सबसे अहम केसर उत्पादक देश हैं। वहीं ईरान में पूरी दुनिया के केसर उत्पादन का लगभग 90 फ़ीसदी होता है। इसके बाद भारत दूसरे नंबर पर आता है, लेकिन भारत में विश्व के कुल उत्पादन की महज़ 7 फीसदी ही पैदावार होती है। अपने देश में सिर्फ़ जम्मू और कश्मीर ही एक ऐसा राज्य है जहां पर बेस्ट क्वालिटी का केसर पैदा होता है। बता दें कि कश्मीर के कुछ स्थानों पर ही केसर की खेती होती है। इनमें से एक हैं पंपोर।
भारत में कश्मीर के उत्पादन को लेकर बता दें कि केसर की खेती का कुल क्षेत्रफल 3715 हेक्टेयर है, जिसमें 3 से 4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। यहां पर केसर [पंपोर, पुलवामा, बडगाम, श्रीनगर, किश्तवाड़ में पैदा होता है, जिसमें से 86 प्रतिशत केसर की खेती अकेले पंपोर में 3200 हेक्टेयर में होती है। भले ही स्पेन, ईरान समेत कुछ देशों में कुल उत्पादन का करीब 300 टन हर साल केसर पैदा किया जाता है लेकिन भारत का केसर सबसे ज़्यादा फ़ायदेमंद और महंगा होता है।
केसर का बाज़ार
आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा के अनुसार, ये दिमाग को ठंडा रखता है, साथ ही शारीरिक कमजोरी को भी खत्म करता है। अगर आप रोज़ केसर का सेवन किसी न किसी रूप में करते हैं तो इससे बहुत सारी बीमारियों से दूर रहेंगे। केसर के इस्तेमाल से आंखों की रोशनी बढ़ती है, साथ ही पेट से संबंधित कई परेशानियां भी दूर होती हैं। वहीं डिप्रेशन के मरीजों के लिए भी केसर काफी कारगर साबित होता है। अर्थराइटिस के मरीजों के लिए इलाज में भी केसर मुफीद है।
विश्व के कई टॉप क्लोदिंग फ़ैशन ब्रांड केसर का इस्तेमाल कपड़ों को डाई करने में भी करते हैं क्योंकि केसर बहुत रंग छोड़ता है। आप इसे इस बात से समझ सकते हैं कि एक ग्राम केसर से करीब 100 लीटर पानी या फिर दूध के रंग को केसरिया कर सकते हैं। सैफरन का इस्तेमाल कई सारी कॉस्मेटिक कंपनी भी स्किन टोन और चेहरे की चमक को बढ़ाने वाली क्रीम में इस्तेमाल करती हैं।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।