फलों की बागवानी में केला रचा-बसा है, ऐसे में केले की बागवानी में आधुनिक तकनीकी जानकारी बेहद ज़रूरी है। केले की बागवानी अगर टिश्यू कल्चर से तैयार केले के पौधों से की जाए तो किसानों को भरपूर उपज तो मिलेगी ही, साथ ही अच्छे फल मिलने से उनकी आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। देश के अधिकतर हिस्सों में व्यावसायिक दृष्टिकोण से केले की जी-9 किस्म सबसे मशहूर है। किसान ऑफ़ इंडिया ने बांदा कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ हॉर्टिकल्चर के प्रोफेसर डॉ. अजीत सिंह से विस्तार से जानकारी ली।
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. अजीत सिंह ने केले के टिश्यू कल्चर पौध के बारे जानकारी देते हुए बताया कि आजकल केले की ‘जी-9’ किस्म किसानों के बीच ख़ासी लोकप्रिय हो रही है। दरअसल, केले की पौध को टिश्यू कल्चर से तैयार किया गया है। केले की टिश्यू कल्चर तकनीक में विशेषता है कि एक पौधे के टिश्यू को बायो लैब में मल्टीप्लाई करके एक बार में कम समय में पाँच सौ से हज़ार पौधे तैयार किए जाते हैं। इसे करने के लिए कई तरह की तकनीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद 2-2 इंच के पौधे तैयार होने के बाद पौधों को पॉलीथीन में रखकर नर्सरी में बढ़ाया जाता है। उसके बाद इसे किसानों को दिया जाता है।
टिश्यू कल्चर केले पौध के फ़ायदे
डॉ. अजीत सिंह ने केले के टिश्यू कल्चर पौधों की ख़ासियत बताते हुए कहा कि इसके टिश्यू कल्चर केले जी-9 के पौध खेतों में रोपाई के महज 9 से 10 महीने के बाद ही फल देने लगते हैं। जबकि दूसरे पौध 12 से 14 महीने तक का समय ले लेते हैं। इतना ही नहीं, इन केलों के फल बीज रहित, आकार में बड़े और काफ़ी मीठे होते हैं। साथ ही पकने के बाद सामान्य तापक्रम पर 12 से 15 दिन तक और उपचार के बाद एक महीने तक इनके फलों को संरक्षित रखा जा सकता है। साथ ही टिश्यू कल्चर से तैयार पौधों का उत्पादन भी अन्य किस्मों की तुलना में अधिक होता है।
उन्होंन आगे कहा कि आज टिश्यू कल्चर से केले की पौध तैयार करने की तकनीक कई लोगों के लिए रोज़गार का हिस्सा बन चुकी है। यही वजह है कि यूनिवर्सिटी से डिग्री लेने के बाद भी बहुत से लोग अब खेती को नई तकनीकों के साथ अपनाने की चाहत रख रहे हैं।
टिश्यू कल्चर- केले की खेती की उन्नत तकनीक
बागवानी विशेषज्ञ डॉ. अजीत सिंह बताते हैं कि समान्य केले की खेती की तरह टिश्यू कल्चर जी-9 के पौधे की खेती की जाती है। अच्छी बारिश वाले इलाकों में केले की खेती सफल रहती है। खेत की उपजाऊ ताकत यानी उस खेत में जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा होनी चाहिए। खेत की पानी को सोखने की क्षमता भी ज़्यादा होनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी ज़्यादा समय तक खेत में जमा न रह सके। अगर हम पीएच की बात करें तो 6-7 पीएच मान वाली मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे बेहतर होती है, लेकिन 5.5-8 पीएच मान वाली मिट्टी में भी इसकी खेती की जा सकती है।
डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि खेत की तैयारी के समय 50 सेंटीमीटर गहरा, 50 सेंटीमीटर लंबा और 50 सेंटीमीटर चौड़ा गड्ढा खोदा जाता है। खोदे गए गड्ढों में 8 किलो कंपोस्ट खाद, 150-200 ग्राम नीम की खली, 250-300 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट वगैरह डाल कर मिट्टी भरी जाती है। अगस्त के महीने में इन गड्ढों में केले के पौधों को लगाया जाता है। उन्होंने बताया कि आजकल एक नई टेक्नोलॉजी आई है। पहले हम गड्ढों में इसके पौधे लगाते हैं, लेकिन अब बेड के ऊपर केले के पौधे लगाते हैं, जिसका परिणाम बेहतर हैं।
केले के पौध कैसे लगाएं, क्या और कब दें उर्वरक?
हार्टिकल्चर के प्रोफेसर डॉ. अजीत सिंह ने बताया कि आमतौर पर जी-9 किस्म की रोपाई 1.6 बाई 1.6 मीटर की दूरी पर की जाती है। यानी लाइन से लाइन के बीच की दूरी 1.6 मीटर और 1.6 मीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते हैं। इस तरह लगभग 1500 पौधे एक एकड़ में लगते हैं। अगर हाई डेंसिटी तकनीक यानी संघन रोपाई में 1.2 बाय 1.2 बाय 2 मीटर की दूरी पर पौधों को लगाया जाता है, तो 2000 पौधे एक एकड़ में लगते हैं।
केले की खेती में भूमि की ऊर्वरता के अनुसार प्रति पौधा 300 ग्राम नाइट्रोजन, 100 ग्राम फॉस्फोरस तथा 300 ग्राम पोटाश की आवश्यकता पड़ती है। फॉस्फोरस की आधी मात्रा पौधरोपण के समय और बाकी आधी मात्रा रोपाई के बाद देनी चाहिए। नाइट्रोजन की पूरी मात्रा पांच भागों में बांटकर अगस्त, सितम्बर, अक्टूबर और फरवरी-अप्रैल में देनी चाहिए।
केले की जी-9 किस्म की खेती से लाखों की कमाई
महाराष्ट्र के जलगांव ज़िले के गांव अटोला के रहने वाले नितिन अग्रवाल 20 एकड़ में केले की जी-9 किस्म की खेती कर रहे हैं। एक एकड़ में करीब 1350 पौधे लगते हैं। एक पौधे से औसतन 30 से 35 किलो फल मिलते हैं। इस तरह उनको केले की एक एकड़ की फसल से 350 -400 क्विंटल तक उपज मिल जाती है। नितिन बताते हैं कि एक एकड़ क्षेत्र में केले की खेती में सवा लाख का खर्चा आता है। इससे कुल आमदनी में से अगर घटा दिया जाए तो उन्हें डेढ़ से दो लाख का शुद्ध मुनाफ़ा हो जाता है।
नितिन का कहना है कि ऑटो ड्रिप, फर्टिगेशन और मल्चिंग जैसी सही तकनीकों का इस्तेमाल, उनकी अच्छी उपज का कारण है। इसी तरह केले की खेती में टिश्यू कल्चर तकनीक सहित कुछ आधुनिक तकनीकों का अपनाकर किसान कम लागत में अधिक उत्पादन करके अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं।
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