सब्जियों की खेती | रांची के मुरुम गाँव के रहने वाले मंगल उरांव छोटे किसान हैं, जो पहले अपनी डेढ़ एकड़ ज़मीन पर पारंपरिक तरीके से खेती करते थे। वह सिर्फ़ बरसात के मौसम में धान उगाते थें और बाकी समय पास के शहर में मज़दूरी करके अपने गुज़ारा करते थे। मगर इससे कमाई इतनी कम थी कि परिवार का खर्च चलाना भी मुश्किल था। मंगल उरांव को खेती की उन्नत तकनीक, अधिक उपज वाले बीज आदि की कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए फसल और सब्ज़ियों की खेती से उनकी कोई खास आमदनी नहीं होती थी। मगर वैज्ञानिक तकनीक ने उनकी ज़िंदगी बदल दी।
ATMA के संपर्क में आने से हुआ बदलाव
साल 2012-13 के दौरान ATMA, रांची की मदद से उन्होंने भूमि के छोटे से हिस्से पर खेती शुरू की। इसके बाद कृषि में उनकी दिलचस्पी बढ़ने लगी और वह लगातार Block technology manager (BTM) से सलाह लेने लगें। सब्जियों की खेती के बारे में जानकारी जुटाई। कुछ दिनों बाद उन्हें महसूस हुआ कि मज़दूरी करने की तुलना में खेती ज़्यादा लाभदायक है। फिर वह पूरी तरह से खेती करने लगें और धीरे-धीरे उनका मुनाफ़ा भी बढ़ा। अपने कौशल और ज्ञान को बढ़ाने के लिए उन्होंने BAU, कांके, रांची, HARP, प्लांडु, रांची व कुछ प्रगतिशील किसानों के खेतों का दौरा किया। उन्हें खेती के बारे में विविध जानकारी और तकनीक के बारे में बता चला और खेती में उनकी रुची बढ़ने लगी। अब उन्हें फसलों की नई हाइब्रीड किस्म और विभिन्न सब्ज़ियों के बारे में पता है। उन्होंने सभी नई तकनीक और जानकारी का इस्तेमाल अपनी खेती में किया और उनका मुनाफ़ा बढ़ने लगा। भले ही उनके पास कम भूमि है, मगर उनके उत्पाद झारखंड, बंगाल आदि में बेचे जाते हैं। यहां तक कि रिलांयस इंडस्ट्री ने भी उनके उत्पाद खरीदें हैं।
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सब्जियों की खेती में ड्रिप सिंचाई तकनीक रही कारगर
2018-19 में उनकी मुलाकात CFA ट्रेनी (सब्ज़ी) प्रदीप कुमार से हुई। उन्होंने मंगल उरांव को सब्ज़ियों की खेती के बारे में अधिक जानकारी दी और बताया कि कैसे वह ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। उन्होंने ड्रिप सिंचाई और मल्चिंग तकनीक को अपनाया। ड्रिप सिंचाई तकनीक मंगल उरांव के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी, क्योंकि उनके पास पानी की कमी थी। ऐसे में ड्रिप सिंचाई की बदौलत अब वह पूरे साल सब्ज़ियां उगाते हैं। वह उच्च गुणवत्ता वाले टमाटर, बैगन, मिर्च, फूलगोभी, गोभी, बीन्स आदि का उत्पादन करते हैं।
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सब्जियों की खेती में मल्चिंग का इस्तेमाल
मंगल उरांव बीन्स की फसल के साथ-साथ तरबूज, टमाटर आदि में मल्चिंग के लिए भी प्लास्टिक का इस्तेमाल कर रहे हैं। वह लौकी, कद्दू और करेले जैसी सब्ज़ियां भी उगा रहे हैं। मंगल उरांव की उपलब्धि काबिलेतारिफ़ है, क्योंकि उन्होंने बहुत जल्दी वैज्ञानीक तकनीक और नवाचारों को अपनाकर खेती में सफलता पाई है।
अब अपनी डेढ़ एकड़ भूमि के अलावा, वह 2 एकड़ भूमि लीज़ पर लेकर खेती कर रहे हैं। आधुनिक तकनीक अपनाने से उनकी पानी, खाद और श्रम की बचत हुई, जिससे खेती की लागत कम हुई। उनके पास दोवर्मी कंपोस्ट यूनिट्स भी हैं। वह अपने खेत में डोलोमाइट का इस्तेमाल करते हैं, क्योंकि मिट्टी अम्लीय है।
खरीददार खुद आते हैं
मंगल उरांव जब छोटे पैमाने पर खेती करते थें, तो सब्ज़ियों को स्थानीय बाज़ार में बेचने जाते थे, लेकिन अब जब वह दूसरे किसानों के साथ बड़े पैमाने पर सब्ज़ियां उगाने लगे हैं तो सब्ज़ी व्यापारी खुद उनके पास खरीददारी के लिए आते हैं। उनकी सब्ज़ियां उच्चा गुणवत्ता वाली होती हैं। वैज्ञानिक तकनीक से की गई सब्जियों की खेती ने उनकी तकदीर बदल दी।
मंगल उरांव की सफलता से इलाके के अन्य किसान भी प्रेरित हुए है। मंगल उरांव ने साबित कर दिया कि बहु फसल और वैज्ञानिक तकनीक अपनाकर खेती से बढ़िया कमाई की जा सकती है।
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