हमने आपको मिलेट्स प्रॉडक्ट्स (Millets Products) बनाने वाली उत्तराखंड की कंपनी GEGGLE की कहानी बताई थी, जो मिलेट्स से केक, कुकीज़, इडली-डोसा से लेकर ब्रेड तक ढेरों उत्पाद बनाती हैं। आज हम आपके लिए लेकर आए हैं हरियाणा के एक छोटे से गांव की महिला सुनीता यादव की कहानी, जो न सिर्फ़ मिलेट्स से प्रॉडक्ट्स बना रही हैं, बल्कि ऑर्गेनिक खेती और मशरूम प्रोडक्शन जैसे काम में दर्जनों महिलाओं को शामिल करके उन्हें आत्मनिर्भर भी कर रही हैं।
कभी महज़ 10 महिलाओं का ये छोटा समूह अब FPO बन चुका है और इससे 300 महिलाएं जुड़कर सम्मान का जीवन जी रही हैं। सुनीता देवी ने मिलेट्स प्रॉडक्ट्स में मिली अपनी कामयाबी और रास्ते में आने वाली चुनौतियों के बारे में विस्तार से बात की किसान ऑफ़ इंडिया के संवाददाता अक्षय दूबे से।
मिलेट्स के उत्पाद: लड्डू से लेकर नमकीन
बवानिया गौरव स्वयं सहायता समूह (Bawaniya Gaurav Self Help Group) की मुखिया सुनीता यादव (Sunita Yadav) न सिर्फ़ खुद आत्मनिर्भर हैं, बल्कि गांव की 300 महिलाओं को उन्होंने स्वरोज़गार से जोड़कर आत्मनिर्भर बनाया है। उनका समूह मिलेट्स यानी मोटे अनाज से तरह-तरह के प्रोडक्ट्स बनाकर बाज़ार में बेच रहा है, जिससे महिलाओं को तो आमदनी हो ही रही है, लोगों को भी हेल्दी विकल्प मिल रहे हैं। रागी के लड्डू, बाजरे के लड्डू, चिप्स, नमकीन जैसे ढेरों उत्पाद ये स्वयं सहायता समूह बना रहा है, जो स्वाद और सेहत का बेजोड़ मेल है।
इसके अलावा सुनीता, आम, मिर्ची, करौंदे के साथ ही और भी कई चीज़ों का अचार बनाती हैं। उनका कहना है कि उनका समूह हर तरह के अचार बनाता है और ये पूरे साल उपलब्ध रहता है।
ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा
सुनीता न सिर्फ़ मिलेट्स प्रॉडक्ट्स बनाती हैं, बल्कि मिलेट्स की ऑर्गेनिक खेती में भी वो महिला किसानों की मदद कर रही हैं। उनका कहना है कि वो महिलाओं को ऑर्गेनिक तरीके से खेती के लिए कहती हैं, क्योंकि इस तरह से उगाए गए बाजरे की बाज़ार में बिक्री ज़्यादा होती है और कीमत भी अच्छी मिलती है। उनका कहना है कि वो यूरिया की बजाय खेत में केंचुए की खाद डालते हैं और जीवामृत स्प्रे करते हैं। उनका मानना है कि ऑर्गेनिक खेती समय की ज़रूरत है और आगे आने वाले समय में जैविक खेती ही ज़्यादा होगी, क्योंकि ये मिट्टी और लोग दोनों की सेहत के लिए अच्छा है।
महिलाओं का स्वयं सहायता समूह
सुनीता का स्वयं सहायता समहू सिर्फ़ मिलेट्स प्रॉडक्ट्स बनाने तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि इससे जुड़ी महिलाएं कई तरह के काम कर रही हैं, जैसे खुद ही केंचुआ खाद बनाते हैं, गोबर गैस प्लांट रखा है, पशु पालन कर रही हैं और जीवामृत भी खुद ही बनाकर खेतों में स्प्रे करती हैं। यानी यहां हर काम सिर्फ़ महिलाएं ही करती हैं।
सुनीता आगे कहती हैं कि कोई महिला अगर इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहती हैं, तो हम ज़रूर उनकी मदद करेंगें, ताकि जो चुनौतियां उन्होंने झेली, उनका सामना किसी और न करने पड़े और वो अपने स्तर पर ऊपर उठ सकें।
स्वयं सहायता समूह की सदस्यता लेने की प्रक्रिया
सुनीता को मिलेट्स प्रॉडक्ट्स और ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रगतिशील किसान अवॉर्ड से भी सम्मानित भी किया जा चुका है। सुनीता बताती हैं कि उनके स्वंय सहायता समूह में शुरुआत में सिर्फ़ 10 महिलाएं ही थीं, लेकिन धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और आज इससे 300 महिलाएं जुड़ चुकी हैं और अब उनका FPO (Farmers Producers Organization) बन चुका है। अगर कोई महिला इस समूह से जुड़ना चाहती है, तो 100 रुपए में रजिस्ट्रेशन करवाकर इसकी सदस्यता ले सकती हैं।
मिलेट्स का बाज़ार: चुनौतियां और हल
सुनीता बताती हैं कि उनकी कामयाबी की राह आसान नहीं थी। शुरुआत में उत्पाद बनाने शुरू किये तो बिक्री ख़ास नहीं थी। मार्केट नहीं था। मार्केटिंग से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मगर बाद में उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र से मार्केटिंग की ट्रेनिंग ली। साथ ही कृषि विभाग और नाबार्ड से भी उन्हें मदद मिली। कृषि विज्ञान केंद्र ने एक प्रोजेक्ट के तहत उनके समूह को सामान उपलब्ध करवाया और ट्रेनिंग भी दिलाई। यही नहीं, हर स्कीम का फ़ायदा दिलवाने में मदद की।
शुरुआत के दो साल मुश्किल भरे थे, लेकिन अब मार्केटिंग की कोई समस्या नहीं रह गई है। अब उनके उत्पाद ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं। ऑनलाइन से लेकर FSSAI रजिस्ट्रेशन भी उन्होंने करवा लिया है और GST नंबर भी लिया हुआ है।
मिलेट्स के उत्पादों में मुनाफ़े का प्रतिशत
लागत और मुनाफ़े के बारे में सुनीता यादव का कहना है कि शुरुआत में कोई भी काम जब आप नए सिरे से करते हैं तो लागत ज़्यादा आती है, लेकिन ये धीरे-धीरे कवर हो जाता है। उन्होंने शुरुआत में इस बिज़नेस में एक लाख रुपए लगाए थे, मगर धीरे-धीरे उन्हें एक के पांच लाख मिल गए। उनकी बातों से साफ़ है कि शुरुआत में अगर आपको तुरंत मुनाफ़ा नहीं मिलता तो घबराइए मत कुछ समय बाद ज़रूर मिलेगा।
मिलेट्स के फ़ायदे (Benefits of Millets)
सुनीता मिलेट्स के सेहत से जुड़े फ़ायदों का भी ज़िक्र करती हैं। वो कहती हैं कि गेहूं से कई लोगों को एलर्जी होती है, ऐसे लोग बाजरा, रागी जैसे अनाज आराम से खा सकते हैं। साथ ही ये वज़न कम करने में भी मदद करता है। सुनीता जैसी महिलाएं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस मिशन को आगे बढ़ाने में मदद कर रही हैं जिसमें उन्होंने मिलेट्स को बढ़ावा देने की बात कही है।
2023 इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स (2023 International Year of Millets)
मिलेट्स जिसे मोटा अनाज भी कहते हैं, इसमें बाजरा, ज्वार, रागी, कंगनी, कोदो, कुटकी आदि शामिल है। पिछले कुछ दशकों में गेहूं-चावल की बढ़ती मांग के बीच ये हेल्दी अनाज कहीं खो सा गया था, लेकिन पिछले साल यानि 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स (2023 International Year of Millets) घोषित करने के बाद लोगों के बीच मिलेट्स काफ़ी लोकप्रिय हो रहा है।
केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से भी कई जागरुकता अभियान चलाए गए। मिलेट्स प्रॉडक्ट्स को बढ़ावा देने के लिए जीएसटी में भी कटौती की गई। इस पर 18 फ़ीसदी की जगह 5 फ़ीसदी ही जीएसटी लगता है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कई मंचों पर मिलेट्स के फ़ायदे गिना चुके हैं। 2023 में हुए जी-20 सम्मेलन में विदेशी मेहमानों को भी मिलेट्स के कई व्यंजन परोसे गए थे। यही नहीं कई राज्यों में मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने उन्हें मुफ़्त में बीज भी दिए।
सेहत का खज़ाना है मिलेट्स
आप सोच रहे होंगे कि आखिर मिलेट्स को इतना बढ़ावा क्यों दिया जा रहा है, तो जान लीजिए कि ये गेहूं-चावल से कहीं ज़्यादा पौष्टिक है और ये भारत के पारंपरिक अनाज है। मिलेट्स में ढेर सारे पौष्टिक तत्व होते हैं जैसे कैल्शियम, आयरन, जिंक, फास्फोरस, मैग्नीशियम, पोटैशियम, फाइबर, विटामिन-बी-6 आदि। साथ ही सुपरफ़ूड का दर्जा हासिल इन मिलेट्स को खराब कृषि जलवायु क्षेत्रों में भी उगाया जा सकता है। इन्हें खाद, पानी और कीटनाशकों की भी कम ज़रूरत होती है। इसके अलावा, कार्बन फुटप्रिंट को कम करने में भी मोटे अनाज की खेती मदद करती है।
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