सेहत और स्वाद से भरपूर लहसुन के दाम दिन ब दिन बढ़ते जा रहे हैं। इसी वजह से किसानों ने भी लहसुन की खेती पर जोर दे रखा है। वे ज्यादा से ज्यादा लहसुन की खेती करके अपनी आय को बढ़ाना चाहते हैं। लहसुन में मौजूद कलियों का उपयोग खाने और औषधियों में किया जाता है।
इसमें एलसिन नामक तत्व पाया जाता है, इसलिए इसमें से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती है। एलसिन के ही कारण लहसुन स्वाद में तीखा होता है। इसी तीखेपन की वजह से इसकी कलियों का उपयोग खाने का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसके और भी कई तरह के उपयोग होते हैं, जिनकी वजह से लहसुन के दाम बढ़ते रहते हैं। इसलिए ज्यादा से ज्यादा किसान लहसुन की खेती करने में अपनी रुचि दिखा रहे हैं।
आइए जानते हैं किस तरह बेहतर लहसुन की खेती की जाए और ज्यादा से ज्यादा कमाई की जाए।
कैसे करें लहसुन की खेती (Garlic Lehsun ki Kheti Kaise Kare)
आपको बता दें कि लहसुन की खेती करने के लिए दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इस मिट्टी का पी.एच.मान 6.5 से 7.5 तक होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखें कि यदि मिट्टी में भारीपन होगा, तो लहसुन के बीज का कंद ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाएगा। जब भी आप बुवाई करना चाहते हैं उससे पहले खेत में तीन जुताइयां करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद ही लहसुन की बुवाई करें।
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बुवाई ट्रैक्टर की सहायता से करें। यदि आपके पास ट्रैक्टर की सुविधा नहीं है, तो खेत में क्यारियां बनाकर चौपाई विधि से भी लहसुन की बुवाई कर सकते हैं लेकिन इस प्रक्रिया में काफी समय और धन खर्च हो जाता है।
कैसी हो जलवायु
यदि आप लहसुन की अच्छी पैदावार चाहते हैं तो खेती के लिए कम सर्दी और कम गर्मी का मौसम ही सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि गर्मी ज्यादा होगी तो लहसुन का कंद ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाएगा। 29 डिग्री सेल्सियस का तापमान ही खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसके लिए अक्टूबर से नवंबर महीने का समय उचित होता है। वैसे सर्दी के मौसम में भी लहसुन की खेती की जा सकती है, लेकिन पैदावार ज्यादा अच्छी नहीं होती।
लहसुन की खास किस्में
यूं तो लहसुन की कई प्रकार की किस्में होती हैं, लेकिन उनमें से चार मुख्य किस्में इस प्रकार हैं-
यमुना सफेद-1 – यह किस्म बहुत ही उन्नत मानी जाती है। इसका रंग बाहर से चांदी की तरह चमकता हुआ और इसकी कली क्रीम रंग की होती है। इसका कंद ठोस होता है। इस किस्म को तैयार होने में लगभग 150 से 160 दिनों तक का समय लगता है। यदि प्रति हेक्टेयर का अनुमान लगाया जाए, तो इस किस्म की पैदावार 145 से 160 क्विन्टल तक हो जाती है।
यमुना सफेद-2 – लहसुन की इस किस्म का कंद भी ठोस होता है। यह बाहर से सफेद होता है और अंदर से इसकी कली क्रीम रंग की होती है। इस किस्म को पूरी तरह पककर तैयार होने में 165 से 170 दिनों का समय लगता है। प्रति हेक्टेयर इस किस्म की पैदावार 130 से 140 क्विंटल तक हो जाती है।
यमुना सफेद-3 – ऊपर बताई गई किस्मों में से सबसे अच्छी और उन्नत पैदावार वाली किस्म है ये। इसकी पैदावार को पककर तैयार होने में 140 से 150 दिन लग जाते हैं। इस किस्म में पैदा होने वाले लहसुन के कंद का आकार बड़ा होता है। प्रति हेक्टेयर इसकी पैदावार 175 से 200 क्विंटल तक हो जाती है। इस किस्म की मांग देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी रहती है।
यमुना सफेद-4 – अन्य किस्मों की तरह इस किस्म के कंद का रंग सफेद और कली का रंग क्रीम होता है। इसकी फसल को पककर तैयार होने में 165 से 175 दिनों का समय लगता है। इसके कंद का आकार लगभग 4.5 सेंटी मीटर होता है। प्रति हेक्टेयर इसका उत्पादन लगभग 200 से 250 क्विंटल तक होता है। इस किस्म की मांग भी विदेशों में खूब रहती है।
लहसुन की खेती में बुवाई और सिंचाई का तरीका
यहां बताई गई किस्मों की बुवाई करने के लिए कलियों का किस प्रकार बोना है, इसकी जानकारी होना आवश्यक है। प्रति हेक्टेयर में करीब 5-6 क्विंटल बीज आवश्यक हैं। कलियों को 5-7 सेंटीमीटर की गहराई तक बोएं। इतना ही नहीं कलियों की आपसी दूरी 8 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए।
बुवाई के लिए जो कतार बनाई जाती है उसमें भी 15 सेंटीमीटर की दूरी आवश्यक होती है। बुवाई के बाद सिंचाई का भी अपना तरीका होता है। एक बार सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद करें। जब पौधे बढ़ने लगे तब 8 दिनों में सिंचाई करना उचित होगा। जब फसल पककर तैयार होने लगे उस समय 10 से 15 दिनों के अंतर से सिंचाई करनी चाहिए।