Gende ki Kheti – गेंदा सजावटी फूलों में शामिल होता है और यह बहुत ही उपयोगी एवं आसानी से उगाया जा सकने वाला फूल है। व्यावसायिक दृष्टि से इसकी खेती अधिक की जाती है। गेंदे की विभिन्न ऊंचाई एवं रंगों की छाया के कारण सुन्दरता बढ़ाने में इसका महत्व होता है। शादी-विवाह की सजावट में भी इसका उपयोग किया जाता है। गेंदे की खेती साल भर की जा सकती है। भारत में अफ्रीकन गेंदा और फे्रंच गेंदा अधिक मात्रा में उगाया जाता है। वास्तव में गेंदा एक फूल न होकर फूलों का गुच्छा कहा जा सकता है। इसका वैज्ञानिक नाम टैजेटस स्पीसीज है। गेंदा मैक्सिको और दक्षिण अमेरिका मूल का फूल है। भौगोलिक जलवायु के सुगमता के कारण भारत में इसको आसानी से उगाया जा सकता है।
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बड़े क्षेत्रफल में गेंदे की तीन फसलें उगायी जा सकती हैं, जिससे लगभग पूरे वर्ष फूल उपलब्ध होते रहते हैं। उत्तर भारत में स्थित हिमाचल प्रदेश में इसकी खेती अधिक की जाती है। पूरे भारत में लगभग 1,10,000 हैक्टेयर क्षेत्रफल में इसकी खेती की जाती है। मुख्य रूप से कर्नाटक, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में गेंदा बहुतायत में उगाया जाता है।
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वितरण
गेदों को कई प्रकार की मिट्टियों में आसानी से उगाया जा सकता है। मुख्य रूप से इसकी खेती बड़े शहरों जैसे मुम्बई, पुणे, बैंगलोर, मैसूर, चेन्नई, कलकत्ता और दिल्ली के आसपास अधिक की जाती है। वैसे उचित जल निकास वाली बलूवार दोमट भूमि इसकी खेती के लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। जिस भूमि का पी.एच. मान 7 से 7.5 हो वह भूमि गेंदे की खेती के लिए उत्तम है। क्षारीय व अम्लीय मृदाओं में इसकी खेती नहीं करनी चाहिए।
फायदे
गेंदे की पत्तियों का पेस्ट बनाकर फोड़े के उपचार में इसका उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों के सत्व का प्रयोग रक्त साफ करने, बवासीर के उपचार, अल्सर और नेत्र संबंधी रोगों के उपचार हेतु किया जाता है। टैजेटस की कई प्रजातियों का उपयोग तेल, इत्र आदि बनाने में किया जाता है। जलन होने पर भी गेंदे का प्रयोग किया जाता है। साथ ही टॉनिक के रूप में भी इसका इस्तेमाल होता है। दर्द युक्त मासिक स्राव, एक्जिमा, त्वचा के रोग, गठिया, मुंहासे, कमजोर त्वचा और टूटी हुई कोशिकाओं में भी इससे लाभ मिलता है।
बीज की मात्रा
संकर किस्मों में 700-800 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर तथा अन्य किस्मों में 1.25 किग्रा. बीज प्रति हेक्टेयर उपयोग करने चाहिए। बीज रोपाई का उत्तम समय मार्च से जून, अगस्त-सित बर होता है।
मिट्टी की गुणवत्ता
गेंदे की खेती कई प्रकार की मृदाओं में की जा सकती है। गहरी मृदा उर्वरायुक्त मुलायम जिसकी नमी ग्रहण क्षमता उच्च हो व जल निकास अच्छा हो इसके लिए सर्वोत्तम मानी जाती है। विशेष रूप से बलुई-दोमट मृदा जिसका पी.एच. मान 7.0 से 7.5 हो सही रहती है।
जलवायु
गेंदे की खेती सभी प्रकार की जलवायु में की जा सकती है। यही कारण है कि पूरे भारत में इसकी खेती होती है। विशेष तौर पर शीतोष्ण और सम-शीतोष्ण जलवायु इसके लिए उपयुक्त है। जलवायु में नमी इसकी वृद्धि में सहायक होती है। लेकिन पाला इसके लिए नुकसानदायक है।
इसकी खेती तीनों मौसम यथा सर्दी, गर्मी एवं बरसात में की जाती है। तापमान की दृष्टि से 14.5 से 28.6 डिग्री सै. तापमान उपयुक्त माना जाता है। जबकि उच्च तापमान से इसके पुष्प उत्पादन पर विपरीत प्रभाव होता है।
गेंदे की किस्में
गेंदें में अफ्रीकन व फ्रेन्च किस्में पाई जाती हैं। अफ्रीकन किस्मों में पूसा नारंगी, अलास्का, कूपिड, फायर ग्लो, गोल्डन जुबली,, हवाई, सोबेरेन, सुपर चीफ, टक्सास, जियान्ट डबल अफ्रीकन ऑरेन्ज, जियान्ट डबल अफ्रीकन येलो, फस्र्ट लेडी, ग्रे लेडी, शोबोट, टोरियडोर, इन्का गोल्ड, इन्का ऑरेन्ज आदि खास हैं। वहीं फ्रेंच किस्मों में नॉटी मेरियटा, रफल्ड रेड, बोलेरा, बरसीप गोल्ड नगेट, बरसीप रेड एंड गोल्ड, कूपिड येलो, गोल्डी, जिप्सी डवार्फ, प्रिमरोज क्लाइमेक्स, रस्टी रेड, स्पनगोल्ड, टेन्जेरीन, स्प्री, येलो पिग्मी आदि शामिल हैं।
कितना लें खाद व उर्वरक
गेंदें की खेती करने के लिए उपयोग में ली जाने वाली खाद व उर्वरक की मात्रा का सही अनुपात में होना आवश्यक है। इसके लिए प्रति हैक्टेयर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर खाद 15 से 20 टन, यूरिया 600 किलोग्राम, सिंगल सुपर फॉस्फेट 1000 किलोग्राम, यूरेट ऑफ पोटाश 200 किलोग्राम के अनुपात में लें। फिर इन्हें अच्छी तरह मिला लें। इसमें यूरिया का एक तिहाई हिस्सा ही मिलाएं। बचा हुआ हिस्सा पौधे लगने के 30 दिन बाद व बचा हुआ बाकि हिस्सा उसके भी 15 दिन बाद छिडक़ाव करके काम में लिया जाएगा।
गेंदें की नर्सरी तैयार कैसे करें
इसकी नर्सरी तैयार करने के लिए इसके बीजों की शैया तैयार करना आवश्यक है। इस शैया की ऊंचाई भूमि से 15 से.मी. ऊंची व इसकी चौड़ाई 1 मीटर तथा लंबाई आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिए। ताकि पानी का निकास सही तरीके से किया जा सके। बीज शैया के लिए अच्छी किस्मों के बीजों का ही चयन करें। शैया पर सावधानीपूर्वक बुवाई करने के बाद उस पर उर्वर मृदा की हल्की की परत डालकर धीरे-धीरे पानी का छिडक़ाव करें। बीज बोने से पहले बीज शैया का 0.2 प्रतिशत बाविस्टीन या कैप्टान से उपचारित जरूर करें ताकि पौधा स्वस्थ रह सके।
पौधा रोपण व सिंचाई कैसे करें
पौधे की रोपाई शाम के समय करना ही सही रहता है। रोपाई के बाद चारों तरफ से मिट्टी को अच्छी तरह दबा दें ताकि जड़ो में हवा न रह जाए सामान्य रूप से इन पौधों को तैयार होने में 55 से 60 दिन का समय लगता है। सर्दियों में 10 से 15 दिनों के अंतराल में तथा गर्मियों में 5-7 दिनों के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए।