देश में 17.5 लाख किसानों के पास डीज़ल से चलने वाले पम्पिंग सेट्स हैं, तो करीब 10 लाख पम्पिंग सेट बिजली से चलते हैं। इनका खर्च किसानों के लिए खेती की लागत को बहुत बढ़ा देता है। इसीलिए सरकार ने किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए डीज़ल और बिजली के मौजूदा पम्पिंग सेट को सोलर पम्पिंग सेट में बदलने की शानदार योजना बनायी है – प्रधानमंत्री कुसुम।
किसानों के लिए सोलर पम्पिंग सेट का सीधा सा मतलब है – ‘आम के आम, गुठलियों के दाम’। यानी, एक ओर ये किसानों की सिंचाई और खेती की लागत को लगभग ख़त्म कर देता है तो दूसरी ओर उनको अतिरिक्त आमदनी देने वाला एक कमाऊ पूत बनकर खड़ा हो जाता है।
इसकी वजह ये है कि आमतौर पर डीज़ल पम्पिंग सेट को किसान साल में करीब 150 दिन चलाते हैं। सोलर पम्प के इस्तेमाल से डीज़ल का खर्च ख़त्म हो जाता है। इतना ही जब किसान अपने सोलर पम्पिंग सेट को नहीं चलाएँगे, तब वो इससे पैदा होने वाली बिजली को बेचकर कमाई कर सकेंगे।
इसीलिए किसानों को चाहिए कि वो सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ प्रधानमंत्री कुसुम योजना का लाभ उठाने के लिए आगे आएँ और यथाशीघ्र अपने डीज़ल वाले पम्प की विदाई करके ही चैन लें।
क्या प्रधानमंत्री कुसुम (PM-KUSUM) योजना?
केन्द्र सरकार के गैरपरम्परागत और नवीकृत ऊर्जा मंत्रालय यानी Ministry of New and Renewable Energy (MNRI) का लोकप्रिय नाम कुसुम योजना है। इसका मुख्य उद्देश्य सौर ऊर्जा को खेती-किसानी के क्षेत्र में प्रोत्साहित करके किसानों की कमाई बढ़ाने में मदद करना है।
PM-KUSUM का पूरा नाम Pradhan Mantri Kisan Urja Suraksha evem Utthan Mahabhiyan या ‘प्रधान मंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान’ है। इसकी घोषणा मार्च 2019 में हुई, लेकिन इसकी रूप-रेखा जुलाई 2019 में जारी हुई।
कुसुम योजना के ज़रिये डीज़ल पम्पिंग सेट का इस्तेमाल कर रहे किसानों को सोलर पम्प लगाने के लिए 60 फ़ीसदी अनुदान या आर्थिक मदद देकर प्रोत्साहित किया जाता है। इससे भी बड़ी बात ये है कि इस योजना का लाभ उठाने के लिए किसानों को कुल लागत की सिर्फ़ 10 फ़ीसदी का इन्तज़ाम अपने बूते करना होता है और बाक़ी रकम उन्हें बैंक से कर्ज़ के रूप में मुहैया करवायी जाती है।
यदि किसान के पास इस 10 फ़ीसदी अंशदान का भी इन्तज़ाम नहीं हो तो उसे इसके लिए बैंक से कर्ज़ मिल सकता है। हालाँकि, इसके लिए उसे अपनी समतुल्य सम्पत्ति को गारंटी के रूप में गिरवी रखना पड़ता है।
कुसुम योजना के तीन अंग
कुसुम योजना के तीन अंग हैं। पहला, ऐसे सोलर प्लांट की स्थापना से जुड़ा है जो 500 किलोवॉट से लेकर 2 मेगावॉट तक की क्षमता के होंगे। दूसरा, उन छोटे और सीमान्त किसानों से जुड़ा है जिनके पास 7.5 हॉर्स पॉवर तक का डीज़ल पम्पिंग सेंट है। छोटे और सीमान्त किसान वो हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ से कम की जोत है। सरकार का अनुमान है कि देश में इस श्रेणी के किसानों की संख्या करीब 17.5 लाख है।
और तीसरा, ऐसे पम्पिंग सेट जो ग्रिड से मिलने वाली बिजली से चलते हैं। सरकार का मानना है कि इस श्रेणी के करीब 10 लाख पम्पिंग सेट देश भर में काम कर रहे हैं और यदि इन्हें भी सौर ऊर्जा से चलाने की व्यवस्था बन जाए तो किसानों और राज्य सरकारों दोनों के लिए ‘सोने पे सुहागा’ वाली स्थिति पैदा हो जाएगी, क्योंकि इससे किसानों को जहाँ नियमित आमदनी का ज़रिया मिल जाएगा, वही किसानों को सस्ती बिजली देने के लिए जो सब्सिडी यानी रियायत राज्य सरकारों को देने पड़ती है, उसकी भी बचत हो जाएगी।
इस तरह कुसुम योजना से देश की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता और सकल बिजली उत्पादन क्षमता में भी भारी इज़ाफ़ा हो सकेगा। लेकिन दुर्भाग्यवश चार-छह राज्यों को छोड़कर कुसुम योजना के प्रति किसानों की ओर से वैसा उत्साह नहीं दिखाया जा रहा है, जितनी गुणकारी और लाभ की ये योजना है। सच कहें तो इस योजना की खूबियाँ ऐसी हैं कि इसका लाभ लेने के लिए किसानों में होड़ लग जानी चाहिए। ऐसा लगना चाहिए कि उनकी कोई लाटरी निकल गयी हो या फिर किसी चीज़ की लूट मची हो।
डीज़ल पम्प हटाने के लिए 19,036 करोड़ रुपये
कुसुम पूरी तरह से केन्द्र सरकार की योजना है। इसके तहत साल 2022 तक जिन 17.5 लाख डीज़ल पम्पिंग सेट को सोलर पम्प में बदलने का लक्ष्य रखा गया था, उसके लिए 19,036 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया। इतना ही नहीं, पिछले साल जून में कोरोना पैकेज़ की घोषणा के तहत जब सरकार ने 1 लाख करोड़ रुपये का एग्रीकल्चर इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (AIF) बनाया तो इससे कुसुम योजना को भी जोड़ दिया।
इसका मतलब ये है कि यदि राज्य सरकारें और किसान कुसुम योजना का लाभ उठाने के लिए तेज़ी से आगे आने लगें तो खेती-किसानी और सिंचाई के मामले में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाया जा सकता है।
कुसुम के आकर्षक पहलू
- कुसुम के ज़रिये किसान अपनी ज़मीन पर सौर ऊर्जा प्लांट भी लगा सकते हैं
- सोलर प्लांट की बिजली को आसपास के किसानों या सीधे बिजली वितरण कम्पनियों को भी बेच सकते हैं
- बिजली बेचकर साधारण किसानों या भूमि मालिक को 60 हज़ार रुपये से लेकर 1 लाख रुपये सालाना तक की आमदनी हो सकती है
- बिजली बेचने से बैंक का कर्ज़ भी आसानी से उतारने में मदद मिलती है
- सोलर पम्प लगाने वाली कम्पनियाँ के लिए ये अनिवार्य है कि वो 5 साल तक अपने उपकरणों और उसकी देखरेख की पूरी और मुफ़्त गारंटी दें तथा इस दौरान किसान को समुचित ट्रेनिंग भी दें
सोलर पम्प के लिए लागत और सब्सिडी
सोलर पम्प लगाने के किसान को शुरुआती तौर पर औसतन 6 से 7 हज़ार रुपये प्रति हॉर्स पॉवर की पूँजी लगानी पड़ती है। इसका मतलब ये हुआ कि 5 हॉर्स पावर का डीज़ल पम्प लगाने की कुल लागत यदि 3 लाख रुपये है तो किसान को 30 हज़ार रुपये भरने पड़ेंगे। बाक़ी 2 लाख 70 हज़ार रुपये में से 90 हज़ार रुपये की सब्सिडी केन्द्र सरकार और इतनी ही रकम राज्य सरकार देगी। वैसे राज्य सरकार चाहे तो अपनी सब्सिडी को और बढ़ा भी सकती है।
बाक़ी बची रकम यानी 90 हज़ार रुपये किसान को बैंक से कर्ज़ मिल जाएगा और उसे सिर्फ़ इसी 90 हज़ार रुपये पर लागू ब्याज़ की किस्तें चुकानी होंगी। किस्तें चुकाने के लिए किसानों को 10 साल तक का वक़्त मिलेगा।
जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, अंडमान-निकोबार और लक्षद्वीप के अलावा उत्तर पूर्व के आठ राज्यों – सिक्किम, असम, अरूणाचल, मिज़ोरम, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मणिपुर के लिए केन्द्र सरकार की ओर से 30 फ़ीसदी की जगह 50 फ़ीसदी सब्सिडी दी जाएगी। वहाँ भी राज्य सरकारें चाहें तो अपने 30 फ़ीसदी वाले हिस्से को और बढ़ा सकती हैं।
राज्य सरकार को भी राहत
कुसुम योजना के लिए जो रकम राज्यों की ओर से दी जाएगी, उसे भी वो नाबार्ड से कर्ज़ लेकर हासिल कर सकते हैं। नाबार्ड से लिये गये कर्ज़ के ब्याज़ का भुगतान राज्य सरकारें उस बजट से कर सकती हैं जो उन्हें केन्द्र सरकार की ओर से खेती-किसानी के लिए रियायती बिजली उपलब्ध करवाने के लिए दी जाती है।
कैसे उठाएँ कुसुम योजना का फ़ायदा?