करेला स्वाद में भले ही कड़वा हो, लेकिन इसकी खेती उन किसानों के लिए बड़ी मददगार है जिन्हें जानवरों या आवारा पशुओं या मवेशियों के फसल को खा जाने का ख़तरा सताता रहता है। क्योंकि अपने कड़वेपन की वजह से करेला इन्हें पसन्द नहीं आता। करेले की खेती की एक और ख़ूबी ये है कि इसकी लागत ज़्यादा नहीं होती, जबकि पैदावार से कमाई अच्छी होती है।
करेले की खेती उन किसानों के लिए भी शानदार विकल्प है जिनकी जोत कम है, क्योंकि करेला का पौधा बेल की तरह बढ़ता है और इसकी बेल को मचान पर फैलाकर कम जगह में और कम समय में भी अच्छा मुनाफ़ा कमाया जा सकता है। मचान बनाकर करेले की खेती करने का एक और फ़ायदा ये है कि इससे करेले के पौधों के गलन का ख़तरा ख़त्म हो जाती है और बेलें यदि ऊँचाई पर हों तो जानवरों की पहुँच से दूर हो जाता है।
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मचान विधि से करेले की खेती
करेले की खेती के लिए बनाये जाने वाले मचान बनाने के लिए तार और लकड़ी या बाँस का उपयोग किया जाता है। करेले की बेल को इसी मचान पर चढ़ाते हैं, जहाँ लगातार फैलते हुए बेल मचान पर फैल जाती है। मचान ऊँचा हो तो करेले की तुड़ाई के दौरान उसके नीचे से आसानी से आना-जाना हो सकता है।
दो-ढाई महीने बाद कमाई शुरू
करेले के बीज की रोपाई जनवरी से मार्च और फिर बरसात से पहले जून में की जाती है। इसकी फसल दो से ढाई महीने में मिलने लगती है। एक फसल के दौरान करेले की तोड़ाई चार-पाँच की जाती है। एक एकड़ में करेले की खेती के लिए मचान बनाने और बीज, खाद और सिंचाई वग़ैरह का खर्च 40-45 हज़ार रुपये बैठता है। इसकी उपज का बाज़ार में दाम करीब डेढ़ लाख रुपये तक मिल जाता है। इस तरह करेले की खेती से प्रति एकड़ प्रति फसल करीब एक लाख रुपये की कमाई हो जाती है।
करेले की प्रमुख किस्में
- पूसा विशेष, पूसा मौसमी, अर्का हरित, पीजे 14 और प्रीति।
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