बदलते वक़्त के साथ खेती-किसानी का तौर-तरीका भी आधुनिक हो रहा है। आमदानी बढ़ाने के लिए पारम्परिक खेती के हटकर किसान अब नयी तकनीक के प्रति भी ख़ूब रुझान दिखा रहे हैं। ऐसी ही एक तकनीक है ‘इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग’, जो किसानों के लिए मुनाफ़े की तरक़ीब बनकर उभर रही है।
कृषि जनगणना 2015-16 के मुताबिक, भारत में लघु और सीमान्त किसानों की संख्या क़रीब 12.563 करोड़ है। इनके पास औसतन 1.1 हेक्टेयर से कम की खेती है। इन किसानों को अपने कृषि उत्पादों को लेकर अनेक ऐसी चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं, जिससे उबरने में एकीकृत खेती प्रणाली बेजोड़ साबित होती है।
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इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग का लाभ
इंटिग्रेटेड फ़ार्मिंग का सबसे बड़ा लाभ है कि ये पूरे साल किसानों को रोज़गार में बनाये रखता है। इसकी बदौलत किसान के पास आमदनी के कई स्रोत या विकल्प होते हैं। इसे अपनाकर सीमान्त और लघु किसान अधिक पैदावार वाली फसलों के अलावा फल, सब्ज़ी, डेयरी उत्पाद, शहद आदि से कमाई कर लेते हैं। इस तरह, एक ओर किसानों की उत्पादकता बढ़ती है तो दूसरी ओर अपने संसाधनों के सही उपयोग से खेती से जुड़े कामकाज़ की लागत में कमी आती है।
क्या है एकीकृत कृषि प्रणाली (Integrated Farming System)?
एकीकृत कृषि प्रणाली में खेती के अलावा पशुपालन, मधुमक्खी पालन, मछली पालन, बाग़वानी और खेती से जुड़ी अनेक गतिविधियाँ एक साथ की जाती हैं। इसका मुख्य उद्देश्य किसान की ज़मीन और अन्य संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल करना है, ताकि मुनाफ़ा भी अधिकतम हो सके। एकीकृत कृषि प्रणाली को अपनाने वाले कर्नाटक के एक किसान का कहना है कि एकीकृत खेती से वो सालाना 12 से 13 लाख रुपये कमा लेते हैं। इसकी वजह से पशुओं के लिए चारे की कमी नहीं होती। उनके गोबर से जो खाद तैयार होती है उससे खेती की लागत कम हो जाती है।
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इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग के लिए वन्दना सम्मानित
एकीकृत खेती को प्रोत्साहित करने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से छोटे किसानों को दीनदयाल उपाध्याय अन्त्योदय कृषि पुरस्कार से सम्मानित भी किया जाता है। भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के 93वें स्थापना दिवस पर ये राष्ट्रीय पुरस्कार इस साल बिहार के मेढा गाँव की महिला किसान वन्दना कुमारी को मिला। एक ऑनलाइन समारोह में केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने वन्दना कुमारी को एक लाख रुपये का चेक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया।
वन्दना का इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग का मॉडल पूरे देश में प्रथम चुना गया। उन्होंने छत के पानी को इकट्ठा करके पशुपालन में इसका इस्तेमाल किया और इसी पानी से गायों के लिए हरा चारा भी उगाया। इस पानी का उपयोग किचन गार्डेन में करके उन्होंने फल-सब्ज़ियाँ भी उगाईं। ये उत्पाद जैविक खेती पर आधारित थे। सबसे ज़्यादा सराहनीय तो ये है कि वन्दना ने इंटीग्रेटेड फ़ार्मिंग की तकनीक से गाँव की कई महिलाओं को भी जोड़ा और दो दर्ज़न से ज़्यादा महिलाओं के लिए रोज़गार का अवसर विकसित किया।