कहते हैं कि मन में कुछ करने का जुनून हो तो कठिन से कठिन परिस्थितियों को भी इंसान की मेहनत के आगे झुकना पड़ता है। एक ऐसे ही युवा प्रगतिशील किसान भूपेंद्र पाटीदार के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने कुछ अलग करने की ठानी और उसे पूरा करने के लक्ष्य पर लग गए। आज डेयरी व्यवसाय से जुड़े किसान उनसे राय लेने आते हैं। कई संस्थानों में जाकर वो बाकायदा, लेक्चर भी देते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया से खास बातचीत में भूपेंद्र पाटीदार ने हमसे डेयरी क्षेत्र की कई बारीकियों को शेयर किया। पशुपालन करते हुए किन-किन बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है, इसके बारे में विस्तार से बताया।
AC&ABC से ली ट्रेनिंग
भूपेंद्र मध्य प्रदेश खरगोन ज़िले के नांद्रा गाँव के रहने वाले हैं। बीएससी से ऐग्रिकल्चर की पढ़ाई करने के लिए कॉलेज में दाखिला लिया, लेकिन पारिवारिक परेशानियों के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़नी पड़ी। सब छोड़कर वो वापस अपने गाँव आ गए और खेती करनी शुरू कर दी। एक दो साल बाद खेती में उन्हें थोड़ा नुकसान झेलना पड़ा। फसल बर्बाद हुई और बाज़ार में दाम कम मिले। इसके बाद अतिरिक्त आय स्रोत की तलाश में वो लग गए। दोस्तों से बातचीत की और रिसर्च शुरूकर दी। इसी दौरान उन्हें एग्री क्लिनिक और एग्री बिजनेस सेंटर (AC&ABC) द्वारा मिलने वाली ट्रेनिंग के बारे में पता चला। वो दो महीने की ट्रेनिंग के लिए भोपाल चले आए।
शुरुआत में 20 दिन में ही 50 हज़ार का नुकसान
भूपेंद्र पाटीदार कहते हैं कि दूर से इंसान को कृषि से जुड़े हर क्षेत्र में मुनाफ़ा दिखता है, लेकिन जब चुनौतियां आती हैं तो असल तस्वीर सामने आ जाती है। ट्रेनिंग से वापस लौटने के बाद उन्होंने डेयरी व्यवसाय करने का प्लान किया। इसके बारे में अपने परिवारवालों को बताया। भूपेन्द्र का परिवार खेती से पहले दूध के व्यवसाय से ही जुड़ा था, लेकिन इसमें उन्हें नुकसान झेलना पड़ा था। इस वजह से परिवारवाले उनके इस फैसले के पक्ष में नहीं थे। भूपेंद्र पाटीदार ने डेयरी व्यवसाय को लेकर और रिसर्च की। उनकी दादी ने इस फैसले में उनका साथ दिया और फिर भूपेंद्र ने पाटीदार डेयरी के नाम से डेयरी की शुरुआत कर दी। उन्होंने एक लाख 40 हज़ार में दो भैंसें खरीदीं और दूध का काम शुरू कर दिया। इनमें से एक भैंस सही नहीं निकली। भूपेंद्र ने बातचीत में किसान ऑफ़ इंडिया ( Kisan of India ) को बताया कि वो भैंस बहुत बीमार रहने लगी। 20 दिन के अंदर ही 70 हज़ार में लाई गई भैंस को 20 हज़ार में बेचना पड़ा, यानी सीधे सीधे 50 हज़ार रुपये का नुकसान।

दोस्तों के साथ मिलकर 7 हाईटेक (7 Hi-Tech) की शुरुआत की
उनकी जगह कोई और होता तो शायद पीछे हट जाता, लेकिन भूपेंद्र जी-तोड़ मेहनत से बड़े स्तर पर इस बिज़नेस को आगे बढ़ाने में लग गए। उन्होंने बैंक में लोन के लिए अप्लाई किया। AC&ABC से प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करवाई। AC&ABC ही प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करके देता है। इस रिपोर्ट को फिर आप बैंक में दिखाते हैं। प्रोजेक्ट रिपोर्ट लेकर करीबन एक साल तक भूपेंद्र ने बैंक के कई चक्कर लगाए। जब जिस समय बैंक वाले बुलाते, वो पहुंच जाते। भूपेंद्र बताते हैं कि 365 दिन में से करीब 200 दिन उनके बैंक के चक्कर ही लगते थे। उन्होंने हार नहीं मानी और बैंक जाना जारी रखा। इसके साथ ही उन्होंने अपनी डेयरी में दो भैंसें और बढ़ा लीं। इनसे निकलने वाले दूध को दूसरी डेयरी में बेच दिया करते। भूपेंद्र बताते हैं कि होता ये था कि फिर यही लोग इस दूध को ज़्यादा दामों में आगे बेच देते थे।
गाँव में पैदा किए रोज़गार के अवसर
इसके बाद भूपेंद्र ने अपने सात दोस्तों के साथ मिलकर 7 हाईटेक नाम से दूध डेयरी खोलने का फैसला किया। सबने मिलकर 15 से 20 हज़ार रुपये लगाए और लाख रुपये की लागत से गाँव में ही किराये पर जगह लेकर पूरा सेटअप चालू कर दिया। भूपेन्द्र कहते हैं कि शुरू से ही फोकस रहा कि हम कुछ ऐसा करें कि लोग शहर से गाँव में आयें। उन्हें रोज़गार की तलाश में बाहर नहीं, गाँव में ही अवसर मिले।
7 हाईटेक में अपनी भैंसों के दूध के साथ साथ-आस पास के छोटे किसानों से दूध और इसे बनने वाले प्रॉडक्ट्स जैसे छाछ, पनीर और दही खरीदने लगे। आज हज़ार से ऊपर किसान उनसे जुड़े हुए हैं। एक दिन का दूध कलेक्शन 1400 लीटर तक भी पहुंच जाता। बड़े-बड़े ऑर्डर आने लगें।

कोऑपरेटिव सोसाइटी के ज़रिए किसानों को देते हैं सस्ती दरों पर लोन
इसके बाद किसानों और युवाओं को और कैसे फ़ायदा पहुंचाया जाए, इसके लिए 7 हाईटेक ग्रुप ने 2018 में कोऑपरेटिव का गठन किया। इसके ज़रिए वो ज़रूरतमंदों लोगों को फ़ाइनेंस की सुविधा देते हैं। भूपेंद्र ने बताया कि शुरुआत में कोऑपरेटिव सोसाइटी खोलने का मुख्य उद्देश्य कम ब्याज दर में किसानों को मवेशी खरीद पर लोन का पैसा मुहैया कराना था। हर किसान 60 से 70 हज़ार का मवेशी नहीं खरीद सकता। कम ब्याज दर में ऐसे किसानों को पैसा उपलब्ध करवाते। आज इस कोऑपरेटिव सोसाइटी का टर्नओवर ही 7 से 8 करोड़ के आसपास है। आज सिर्फ़ जानवरों को ही नहीं, बल्कि दुकानदारों को भी ज़रूरत के हिसाब से लोन देते हैं।
भूपेंद्र से जानिए बैंक से लोन लेने की पूरी प्रक्रिया
भूपेंद्र ने किसान ऑफ़ इंडिया के हमारे पाठकों के साथ लोन आसानी से लेने के टिप्स भी साझा किये। वो बताते हैं कि जब उनका काम कुछ ज़ोर पकड़ने लगा तो इसी बीच बैंक से लोन का आवेदन भी मंजूर हो गया। खुद बैंक मैनेजर उनके घर आए। फिर उन्होंने पाटीदार डेयरी में भी ज़्यादा वक्त देना शुरू कर दिया। भूपेंद्र ने पुणे से जानवरों से दूध निकालने वाली मशीन खरीदी। इसके बाद मुर्रा नस्ल की 20 भैंसें खरीदीं। उनका ये पूरा प्रोजेक्ट 20 लाख का था। 20 लाख के प्रोजेक्ट में 4 लाख की वर्किंग कैपिटल बैंक को दिखानी पड़ती है और 16 लाख बैंक देता है। भूपेंद्र बताते हैं कि लोन देने की भी बैंक की अपनी प्रक्रिया होती है। मान लीजिए आपने बैंक में भैंस खरीदने के लिए एक लाख रुपये मुहैया कराने की ऐप्लिकेशन लगाई, तो लोन मंजूर कराने के लिए आपको पहले एक लाख रुपये का 20 फ़ीसदी बैंक में जमा कराना होता है। जैसे ही आप बैंक में एक लाख का 20 फ़ीसदी यानी कि 20 हज़ार रुपये डालते हो, वैसे ही भैंस बेचनेवाले के खाते में सीधा पैसा पहुंच जाता है।

डेयरी व्यवसाय में मवेशियों के रखरखाव पर कैसे दें ध्यान?
मवेशियों के रखरखाव के लिए भूपेंद्र ने फ़ार्म में पानी के ऑटोमेटेड सिस्टम से लेकर फ़ॉगर तक लगाए। पानी के ऑटोमेटेड सिस्टम के ज़रिए जानवर जब उन्हें पानी की प्यास लगे तब पानी पी सकते हैं। भूपेंद्र बताते हैं कि इसमें हर दो भैंसों के बीच एक टबनुमा चैम्बर लगा होता है। इसमें एक लेवल तक पानी भरा होता है। मान लीजिए जानवर ने उसमें से पाँच लीटर पानी पी लिया, तो वो एक मिनट के अंदर-अंदर अपने आप फिर से भर जाएगा।
भूपेंद्र बताते हैं कि गर्मियों में उनके क्षेत्र का तापमान 45 डिग्री तक भी पहुंच जाता है। इन दिनों दूध का उत्पादन 100 से 60 प्रतिशत पर आ जाता है। 10 लीटर से सीधे 6 लीटर पर उत्पादन पहुंच जाता है। इसके लिए भूपेंद्र ने तापमान को कैसे कंट्रोल किया जाए, उसकी रिसर्च की। 45 से सीधा 35 डिग्री पर डेयरी फ़ार्म का तापमान लाने के लिए उन्होंने जानवरों के ऊपर लगे शेड पर फ़ॉगर सिस्टम लगवाए। फ़ॉगर में टाइमर सिस्टम लगा होता है। इससे शेड पर पानी की बौछार की जाती है, जिससे शेड के अंदर के तापमान को कंट्रोल करने में मदद मिलती है। कंक्रीट का पक्का शेड बनाया। भूपेंद्र बताते हैं कि इन सब में ज़्यादा लागत ज़रूर आती है, लेकिन मवेशियों का रखरखाव होगा तभी वो अच्छा उत्पादन देंगे ।
मुर्रा नस्ल को ही क्यों चुना?
भूपेंद्र बताते हैं कि जब उनका परिवार डेयरी क्षेत्र में था, तब मुर्रा नस्ल ही उनके पास थी। उनके पिताजी और अन्य सदस्यों का मानना था कि मुर्रा नस्ल ही बेहतर है। वो उनके क्षेत्र के मौसम के हिसाब से ढल सकती है। शुरुआत में जहां उनके परिवार वाले डेयरी बिज़नेस के पक्ष में नहीं थे, बाद में उन्हें अपने परिवार का भी सहयोग मिला। लाखों का टर्नओवर और अच्छा मुनाफ़ा होने लगा। डेयरी उत्पादन से होने वाले मुनाफ़े को लेकर भूपेंद्र कहते हैं कि अगर कोई 20 मुर्रा नस्ल का पालन करता है, तो वो महीने का 30 से 40 हज़ार का मुनाफ़ा कमा सकता है। अगर प्रोसेसिंग से जुड़ते हैं तो ये मुनाफ़ा 60 से 70 हज़ार तक भी पहुंच सकता है।

किसानों की उपज को बाज़ार तक पहुंचाने का किया काम
ये सब करने के बीच ही पुणे की जिस फ़ार्मर किंग कंपनी से भूपेंद्र ने दूध निकालने वाली मशीन खरीदी थी, वहां से जॉब का ऑफ़र आया। अपने गाँव में रहते हुए कंपनी के प्रॉडक्ट्स को स्थानीय बाज़ार उपलब्ध कराना उनकी ज़िम्मेदारी थी। उन्होंने क्षेत्र के तीन युवाओं को भी अपने साथ जोड़ लिया। इन युवाओं का काम खरगोन जिले के रोज़ के 20 किसानों से मिलने का था। ये किसानों की समस्याओं को जान कर उनका समाधान करते। इस तरह क्षेत्र के तीन लड़कों को रोज़गार मिला। अभी भी इस कंपनी से भूपेंद्र जुड़े हुए हैं।
इसके अलावा अपने एक दोस्त और पार्टनर, जिनका नाम भी भूपेन्द्र है, उनके साथ मिलकर महिष्मति ब्रांड की शुरुआत की। इसका मकसद मसाले की खेती कर रहे किसानों को बाज़ार मुहैया कराना है। इसके ज़रिए वो किसानों से मिर्च, धनिया, हल्दी वगैरह खरीदते हैं और फिर उसे प्रोसेस और पैकेजिंग कर महिष्मति ब्रांड के नाम से बाज़ार में बेचते हैं।
राज्य सरकार से मिला पुरस्कार, लोगों को देते हैं सलाह
डेयरी के क्षेत्र में उनके योगदान को लेकर भूपेंद्र को राज्य सरकार की ओर से सफल उद्यमी के पुरस्कार से भी नवाज़ा गया है। पूरे भारत से इस अवॉर्ड के लिए 50 लोगों को चुना गया था। मध्य प्रदेश से दो लोग थे, जिनमें डेयरी क्षेत्र में क्रांति लाने के लिए उन्हें ये सम्मान मिला। आज भूपेन्द्र डेयरी क्षेत्र में रुचि रखने वाले युवाओं को ट्रेनिंग भी देते हैं। उन्हें डेयरी व्यवसाय के गुर सिखाते हैं। साथ ही नाबार्ड द्वारा आयोजित मीटिंग में भी जाते हैं।

अपने क्षेत्र में डेयरी क्षेत्र में किया सराहनीय काम
किसानों को सलाह देते हुए भूपेन्द्र कहते हैं कि क्वालिटी दोगे तो मांग अपने आप बढ़ेगी। किस्मत के भरोसे बैठकर कुछ नहीं होगा। परिस्थितियों से लड़कर मेहनत करनी होगी, भागदौड़ करनी होगी। भूपेन्द्र ने बताया कि जब उन्होंने डेयरी व्यवसाय की शुरुआत की थी तो उनके क्षेत्र में डेयरी कम थीं और अब एक ही गाँव में चार-चार डेयरी हैं। उन्होंने कई को डेयरी यूनिट खुलवाने में मदद की और आज भी करते हैं।
सब सही चल ही रहा था कि 2019 में अचानक भूपेंद्र ने अपने पिता को खो दिया। पिता की आकस्मिक मौत से उन्हें धक्का लगा। उन्होंने अपना लोन क्लियर कराया और मवेशियों को बेच दिया। आज वो अपनी डेयरी के लिए हज़ारों छोटे किसानों से दूध और इसके बाई-प्रॉडक्ट्स खरीदते हैं। भूपेंद्र बताते हैं कि आज भी कोई ज़रूरतमंद उनसे डेयरी क्षेत्र से जुड़ी राय लेने आता है, तो वो सब काम छोड़कर उनसे बात करते हैं। भूपेंद्र कहते हैं कि उनकी एक राय से अगर किसी के घर पैसे आएं, उसकी ज़िंदगी में अच्छा बदलाव आए, यही उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है।

सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।

ये भी पढ़ें:
- बागवानी से किसानों को मिला नया रास्ता, अमरूद की खेती बनी तरक्क़ी की मिसालअमरूद की खेती से किसानों की आय में बढ़ोतरी हो रही है। अमरूद की पिंक ताइवान क़िस्म बाज़ार में लोकप्रिय होकर किसानों के लिए वरदान बनी।
- प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और दलहन आत्मनिर्भरता मिशन क्या है? ₹42 हज़ार करोड़ रुपये का निवेशप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष कृषि कार्यक्रम में 42 हजार करोड़ रुपये से अधिक की कई परियोजनाओं का शुभारंभ, लोकार्पण और शिलान्यास किया। ये कार्यक्रम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) में आयोजित हुआ, जिसमें दो बड़ी योजनाओं- पीएम धन धान्य कृषि योजना और दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन की शुरुआत की गई।… Read more: प्रधानमंत्री धन-धान्य कृषि योजना और दलहन आत्मनिर्भरता मिशन क्या है? ₹42 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश
- सिमरता देवी की मेहनत ने बदली खेती की परंपरा प्राकृतिक खेती से मिली नई राहसिमरता देवी ने प्राकृतिक खेती अपनाकर ख़र्च घटाया, आमदनी बढ़ाई और गांव की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की राह दिखाई।
- योगी सरकार की सख्ती : उत्तर प्रदेश में अब सैटेलाइट से ट्रैक होगी पराली, Digital Crop Survey में लापरवाही बर्दाश्त नहीं !योगी सरकार ने पराली जलाने की समस्या (Problem of stubble burning) से निपटने के लिए इस बार ‘Zero tolerance’ का रुख अपनाया है।पराली प्रबंधन (stubble management) के साथ-साथ योगी सरकार डिजिटल क्रॉप सर्वे अभियान को लेकर भी पूरी तरह सक्रिय है। इस अभियान का उद्देश्य खेत स्तर तक वास्तविक फसल की जानकारी जुटाना है
- खाद्य सुरक्षा से आत्मनिर्भरता तक: 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री मोदी लॉन्च करेंगे कृषि क्रांति के दो महाअस्त्रप्रधानमंत्री मोदी किसानों की ख़ुशहाली और देश की खाद्य सुरक्षा (Food Security) को नई दिशा देने वाली दो बड़ी स्कीम- ‘पीएम धन-धान्य कृषि योजना’ और ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (PM Dhan-Dhaanya Yojana and Self-Reliance in Pulses Mission) की शुरुआत करेंगे।
- Bhavantar Yojana: भावांतर योजना में सोयाबीन रजिस्ट्रेशन शुरू, 5328 रुपये MSP का वादा, बागवानी किसानों को भी फ़ायदामध्य प्रदेश के सोयाबीन उत्पादक किसानों (soybean producing farmers) के लिए भावांतर योजना (Bhavantar Yojana) के तहत MSP पर फसल बिक्री के रजिस्ट्रेशन प्रोसेस शुरू हो चुका है।
- Chatbot In Punjabi Language: धुंए में घिरे पंजाब में पराली प्रबंधन की चुनौती और नई उम्मीद बना पंजाबी भाषा का Chatbot‘सांझ पंजाब’ (‘Sanjh Punjab’) नामक एक गठबंधन ने एक ऐसी रिपोर्ट और टेक्नोलॉजी पेश (stubble management) की है, जो इस समस्या के समाधान (Chatbot in Punjabi Language) की दिशा में एक मजबूत कदम साबित हो सकती है।
- Stubble Management: केंद्र और राज्यों ने कसी कमर, अब पराली प्रबंधन पर जोर, लिया जाएगा सख़्त एक्शनधान की कटाई के बाद खेतों में बचे अवशेष (stubble management) को जलाने के पीछे किसानों की मजबूरी है। अगली फसल (गेहूं) की बुवाई के लिए समय बहुत कम होता है और पराली हटाने की पारंपरिक विधियां महंगी और वक्त लेने वाली हैं। इससे निपटने के लिए अब सरकार ने जो रणनीति बनाई है
- Shepherd Community: भारत की अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक ताने-बाने में ग्रामीण जीवन की धड़कन है चरवाहा समुदायचरवाहा समुदाय (shepherd community) की भूमिका सिर्फ पशुपालन (animal husbandry) तक सीमित नहीं है। वे एक पुल की तरह काम करते हैं। जो हमारी परंपरा को आज के वक्त के साथ जोड़ते हैं, प्रकृति के साथ coexistence बढ़ाते हैं। देश की खाद्य सुरक्षा की नींव मजबूत करते हैं।
- खेत से बाज़ार तक बस एक क्लिक! Kapas Kisan App लाया क्रांति, लंबी कतारों और भ्रष्टाचार से मुक्तिकेंद्रीय वस्त्र मंत्री गिरिराज सिंह ने ‘कपास किसान’ (Kapas Kisan App) मोबाइल ऐप लॉन्च करके देश की कपास खरीद प्रोसेस में एक डिजिटल क्रांति (digital revolution )की शुरूआत की
- प्राकृतिक खेती और सेब की बागवानी से शिमला के किसान सूरत राम को मिली नई पहचानप्राकृतिक खेती से शिमला के किसान सूरत राम ने सेब की खेती में कम लागत और अधिक मुनाफे के साथ अपनी पहचान बनाई है।
- 1962 Mobile App: पशुपालकों का स्मार्ट साथी,Animal Husbandry Revolution का डिजिटल सूत्रधार!Digital India के इस युग में, पशुपालन (animal husbandry) के क्षेत्र में एक ऐसी स्मार्ट क्रांति की शुरुआत हुई है, जो किसानों और पशुपालकों की हर समस्या का समाधान उनकी उंगलियों के इशारे पर ला देना चाहती है। इस क्रांति का नाम है-1962 Mobile App- पशुपालन का स्मार्ट साथी।
- Pulses Atmanirbharta Mission: 11,440 करोड़ रुपये का दलहन आत्मनिर्भरता मिशन, भारत की आत्मनिर्भरता की ओर ऐतिहासिक छलांगकेंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक ऐतिहासिक फैसला लेते हुए ‘दलहन आत्मनिर्भरता मिशन’ (Pulses Atmanirbharta Mission) को मंजूरी दे दी है। ये मिशन, जो 2025-26 से 2030-31 तक चलेगा, देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सशक्त कदम है।
- Makhana Revolution In Bihar: बिहार में शुरू हुई मखाना क्रांति, गरीब का ‘Superfood’ बन रहा है वैश्विक धरोहरमखाना महोत्सव 2025 (Makhana Festival 2025) का मंच सिर्फ एक उत्सव का प्लेटफॉर्म नहीं, बल्कि बिहार की अर्थव्यवस्था (Economy of Bihar) के एक नए युग का सूत्रपात (Makhana Revolution In Bihar) बन गया।
- Natural Farming: बीर सिंह ने प्राकृतिक खेती से घटाया ख़र्च और बढ़ाई अपनी आमदनी, जानिए उनकी कहानीविदेश से लौटकर बीर सिंह ने संतरे की खेती में नुक़सान के बाद प्राकृतिक खेती शुरू की और अब कमा रहे हैं बढ़िया मुनाफ़ा।
- हरियाणा के रोहतक में खुला साबर डेयरी प्लांट पशुपालकों की आय और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलेगी मज़बूतीरोहतक में शुरू हुआ साबर डेयरी प्लांट जो देश का सबसे बड़ा डेयरी प्लांट है किसानों की आय और दिल्ली एनसीआर की जरूरतों को पूरा करेगा।
- Cluster Development Programme: भारत का क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम है किसानों की आमदनी बढ़ाने की एक क्रांतिकारी रणनीतिकृषि क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए भारत सरकार ने क्लस्टर डेवलपमेंट प्रोग्राम (Cluster Development Programme – CDP) की शुरुआत की है। ये केवल एक योजना नहीं, बल्कि कृषि व्यवस्था में एक अहम परिवर्तन लाने का एक सशक्त मॉडल है।
- Mushroom Farming In Bihar: बिहार में महिला किसानों के लिए ‘सोना’ उगाने का मौका! मशरूम योजना से महिलाएं बन रहीं आत्मनिर्भरबिहार जैसे घनी आबादी वाले राज्य में जहां जोत छोटी है और संसाधन सीमित, मशरूम की खेती एक वरदान साबित हो सकती है। ये एक ऐसी कृषि तकनीक है जिसे छोटे से घर के आंगन या खेत के एक कोने में भी शुरू किया जा सकता है। सबसे बड़ा फायदा ये है कि मशरूम की फसल बेहद कम समय में तैयार हो जाती है।
- कौशल विकास और प्रशिक्षण से किसान हो रहे सशक्त, बढ़ रही है क्षमता और हो रहा है विकासकिसानों को कौशल विकास और प्रशिक्षण के माध्यम से नई तकनीक, आधुनिक खेती और आय बढ़ाने के साधन उपलब्ध कराकर उन्हें सशक्त और आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है।
- राजस्थान के SKN कृषि विश्वविद्यालय का अनोखा रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम एक तालाब में जमा होता है 11 करोड़ लीटर पानीराजस्थान के श्री कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय जोबनेर में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग से जल संरक्षण और खेती के भविष्य को मिल रहा है नया रास्ता।