जिस तरह से बड़े शहरों में हवा, पानी और खाना दूषित हो रहा है, ऐसे में एग्रो टूरिज़्म का कॉन्सेप्ट काफ़ी चलन में है। एग्रो टूरिज्म यानी कृषि पर्यटन। एग्रो टूरिज़्म (Agro-Tourism) के तहत खेती-किसानी से जुड़ी गतिविधियों और कृषि की प्राचीन विरासत से पर्यटकों को रूबरू कराया जाता है। एग्रो टूरिज़्म, इंसान और प्रकृति के बीच सामंजस्य का काम करता है। इसके तहत, पर्यटकों को प्राकृतिक माहौल में फसलों और उनके उत्पादों को देखने और इस्तेमाल करने का मौका मिलता है। भारत की गिनती होती ही कृषि प्रधान देश में है। बड़ी संख्या में देश का एक वर्ग कृषि गतिविधियों से जुड़ा हुआ है। जनगणना 2011 के मुताबिक़, हमारी कुल कामकाज़ी आबादी में से 54.6 फ़ीसदी लोगों की आजीविका खेती-बाड़ी या कृषि आधारित रोज़गार पर ही निर्भर है। ऐसे में देश में एग्रो टूरिज्म को विकसित करने की व्यापक संभावनाएं मौजूद हैं। देश के कई लोग अपने क्षेत्र में एग्रो टूरिज़्म को बढ़ावा भी दे रहे हैं। एक ऐसे ही शख्स हैं महाराष्ट्र के रत्नागिरी के सचिन कमलाकर कारेकर।
सचिन पिछले 11 साल से एग्रो एग्रो टूरिज़्म से जुड़े हुए हैं। इस मॉडल के ज़रिए वो अपने ग्राहकों के लिए फ़ार्म विजिट, फ़ार्म एक्टिविटी, और फ़ार्म स्टे जैसी कई सुविधाएं देते हैं। वो अपने परिवार के साथ मिलकर गारवा एग्रो टूरिज़्म (Garva Agro Tourism) का संचालन कर रहे हैं। उनका ये फ़ार्म दो एकड़ के क्षेत्र में बना हुआ है। सचिन कमलाकर ने Kisan of India से खास बातचीत में एग्रो टूरिज़्म व्यवसाय और इसके भविष्य के बारे में विस्तार से बात की।
कैसे हुई एग्रो टूरिज़्म की शुरुआत?
सचिन ने 2010 में एग्रो टूरिज़्म व्यवसाय में कदम रखा। सचिन बताते हैं कि कोरोना काल में ज़रूर उनके व्यवसाय पर असर पड़ा, लेकिन सालभर में 300 से 350 परिवार उनके फ़ार्म में आते हैं। बीएससी हॉर्टिकल्चर में डिग्री होल्डर सचिन शुरू से ही कुछ अपना करना चाहते थे। उनके पास अच्छी नौकरी के विकल्प भी थे, लेकिन कुछ अपना करने की ललक ने उन्हें खेती-किसानी से जोड़ा। उन्होंने मुर्गीपालन से शुरुआत की, लेकिन 2008-09 में बर्ड फ्लू की वजह से उन्हें यूनिट बंद करनी पड़ी। एक दौर में बकरी पालन और वर्मी कंपोस्ट की यूनिट भी लगवाई, लेकिन इसमें लाभ नहीं हुआ।
इसके अलावा, खेती-बाड़ी में जंगली जानवरों से अक्सर फसलों को नुकसान पहुंचने से घाटा भी हुआ। इस बीच उनके एक दोस्त ने उन्हें एग्रो टूरिज़्म में उतरने की सलाह दी। सचिन के दोस्त खुद इस व्यवसाय से जुड़े थे। सचिन बताते हैं कि शुरू के एक दो साल तक उतना बिज़नेस नहीं हुआ, लेकिन वो पीछे नहीं हटे। उन्होंने फ़ार्म में पर्यटकों के लिए कई रोचक गतिविधियां शुरू कीं। सचिन कहते हैं कि एग्रो टूरिज़्म का कॉन्सेप्ट ही अतिथि देवो भव: पर आधारित है। अगर आप पर्यटकों का ख्याल रखोगे, उन्हें वो वातावरण दोगे, जिसकी तलाश में वो शहरों से कई किलोमीटर दूर आपके फ़ार्म में आए हैं, तो यकीनन आपके एग्रो टूरिज़्म के व्यवसाय को फ़ायदा होगा। सचिन का पूरा परिवार इस व्यवसाय में उनके साथ है। सचिन ने बताया कि ‘घर का खाना’ उनके फ़ार्म में बनाया जाता है। उनकी पत्नी खुद पारंपरिक व्यंजनों जैसे मोदक, चावल की रोटी, आम रस पर्यटकों के लिए तैयार करती हैं।
एग्रो टूरिज़्म फ़ार्म तैयार करने में कितनी पड़ी लागत?
सचिन कमलाकर अपने इस बिज़नेस को खड़ा करने का श्रेय अपनी माँ और पत्नी को देते हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो एग्रो टूरिज़्म व्यवसाय पर लाखों लगा सकें। उनकी माँ और पत्नी ने हर कदम पर उनका साथ दिया। अपने कंगन बेचकर पैसों का बंदोबस्त किया। फिर सचिन ने कुछ लेबर के साथ मिलकर दो से ढाई लाख में चार रूम का अपना कॉटेज तैयार किया। कम लागत में एग्रो टूरिज़्म कॉन्सेप्ट को प्रोत्साहन देने के लिए सचिन कमालकर को 2012 में विशेष पुरस्कार से सम्मानित भी किया जा चुका है। ग्लोबल कोकण फेस्टिवल कार्यक्रम (Global Kokan Festival) में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय नितिन गडकरी ( Nitin Gadkari ) द्वारा उन्हें ये सम्मान दिया गया।
कॉटेज का नाम रखने के पीछे की कहानी
सचिन ने अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर हर तरह से काम किया। अपने कॉटेज का नाम गारवा एग्रो टूरिज़्म भी सोच समझकर रखा। सचिन ने कहा कि गारवा एग्रो टूरिज़्म फ़ार्म को ऐसे बनाया गया है जिसमें प्रकृति को संजोने, संवारने और संरक्षण को लेखर खास ध्यान दिया गया है। सचिन ने बताया कि गारवा एक मराठी शब्द है, जिसका मतलब ठंडे वातावरण से है। इसके अलावा, गारवा के तीन अक्षरों का भी अपना अलग मतलब है। गा से गावातील (गाँव), र से रम्य (सुंदर) और वा से वातावरण।
सचिन बताते हैं कि उन्होंने अपने कॉटेज को इन तीन बातों को ध्यान में रखकर ही तैयार किया है। चारों तरफ से नारियल और सुपारी के पेड़ों से घिरे इस फ़ार्म में नेट ट्रैकिंग, बर्ड वॉचिंग, जंगल सफ़ारी जैसी कई गतिविधियां होती हैं।
गाँव के किसान बेचते हैं अपनी उपज
सचिन ने अपने इस एग्रो टूरिज़्म बिज़नेस से अपने गाँव के लोगों को भी जोड़ा है। इस फ़ार्म के ज़रिए गाँव के किसानों को बाज़ार भी उपलब्ध करवाया है। गाँव के किसानों द्वारा बनाए गए अचार, मसाले, आम और भी कई तरह के जैविक उत्पाद वो सीधा किसानों से खरीदकर पर्यटकों को देते हैं। इस तरह से बाज़ार पर किसानों की निर्भरता कम हो जाती है। ये उन्हें एक अतिरिक्त आमदनी का ज़रिया देता है।
कैसा रहता है एग्रो टूरिज़्म का बिज़नेस?
सचिन ने बताया कि उनके क्षेत्र में एग्रो टूरिज़्म का बिज़नेस औसतन 50 दिनों के आसपास का रहता है, लेकिन उनका व्यवसाय 80 दिन तक रहता है। उनके फ़ार्म में बारिश के दिनों में बर्ड वॉचिंग और बर्ड फोटोग्राफी के लिए देशभर से लोग आते हैं। वहीं दिवाली के बाद सर्दियों और गर्मियों में बिजनेस अच्छा रहता है। इस व्यवसाय में मुनाफे को लेकर सचिन बताते हैं कि लागत हटाकर प्रति महीने 25 फ़ीसदी तक का सीधा मुनाफ़ा हो जाता है।
एग्रो टूरिज़्म करना चाहते हैं शुरू, जानिए सचिन की सलाह
सचिन कहते हैं कि जो लोग इस व्यवसाय में उतरना चाहते हैं वो पूरी तरह से इसपर निर्भर न रहें। इसे आप साइड बिज़नेस की तरह शुरू कर सकते हैं। शुरुआत में इसे एक वैकल्पिक व्यवसाय के रूप में चुने। जैसे-जैसे आप इसकी बारीकियों को समझने लग जाएं, आपका व्यवसाय स्थिर होने लगे तो आप इसमें लॉन्ग टर्म के लिए जा सकते हैं।
सचिन एग्रो टूरिज़्म के अलावा, खेती से भी जुड़े हैं। उन्होंने सिलेक्शन विधि के ज़रिए हल्दी की किस्म SK4 विकसित की है। किसान ऑफ़ इंडिया को सचिन ने बताया कि इस किस्म की खेती महाराष्ट्र के कोस्टल डिवीजन कोंकण के लिए उपयुक्त पाई गई है। डॉ. बालासाहेब सावंत कोंकण कृषि विद्यापीठ में इस किस्म पर पिछले दो साल से रिसर्च भी चल रही है। सचिन ने बताया कि उनके क्षेत्र में करीबन 350 किसानों ने इस किस्म को लगाया है और उन्हें अच्छी उपज भी मिल रही है।
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