हिमाचल प्रदेश के चंबा ज़िले की एक खूबसूरत जगह है पांगी घाटी। ये एक जनजातीय क्षेत्र है। यहां के किसानों को अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता था। मजबूरन कम दाम में उन्हें अपनी उपज बिचौलियों को बेचनी पड़ती थी। चंबा ज़िले के ही रहने वाले डॉ. हरेश शर्मा अपने क्षेत्र के किसानों की इस समस्या से वाकिफ़ थे। सोशल वर्क में पीएचडी डिग्री होल्डर डॉ. हरेश शर्मा ने पांगी के जनजातीय समुदाय और छोटे किसानों के विकास के लिए ‘सेवा’ (CEVA-Collective Efforts for Voluntary Action) संस्था की शुरुआत की। इस संस्था ने किसानों के उत्पादों को प्लेटफॉर्म देने के मकसद से 2017 में ‘पांगी हिल्स’ ब्रांड की नींव रखी। डॉ. हरेश शर्मा पांगी हिल्स रूरल मार्ट के माध्यम से चंबा के जैविक उत्पादों को पहचान दिलाने का काम कर रहे हैं। कैसे काम करता है पांगी हिल्स? कैसे CEVA ट्राइबल समुदाय के लिए कर रहा है काम? इस पर किसान ऑफ़ इंडिया ने डॉ. हरेश शर्मा से ख़ास बातचीत की।
करीबन 5 हज़ार किसान जुड़े
ये एक ऐसा स्टार्टअप वेंचर है, जहां जैविक उत्पादों की ग्रेडिंग, पैकेजिंग, प्रोडक्शन से लेकर बिक्री तक का सारा काम पांगी घाटी की महिलाएं संभालती हैं। पांगी हिल्स के साथ करीबन 5 हज़ार से भी ज़्यादा किसान जुड़े हुए हैं। चंबा ज़िले के 75 महिला स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups, SHGs) और करीबन 9 किसान उत्पादक संघों (Farmer Producer Organizations, FPOs) को पांगी हिल्स ने अपने साथ जोड़ा हुआ है।
सीखा रहे पैकेजिंग और ग्रेडिंग के गुर
डॉ. हिरेश शर्मा कहते हैं कि किसानों को मार्केटिंग, पैकेजिंग, ग्रेडिंग से जुड़ी जानकारी का अभाव रहता है। ऐसे कई जैविक उत्पाद हैं, जिनमें वैल्यू एडिशन करके किसान ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। CEVA संस्था नाबार्ड के तहत किसानों और महिलाओं को इससे जुड़ी ट्रेनिंग भी मुहैया कराती है। साथ ही घाटी के उत्पादकों को बैंक और बाज़ार से जोड़ने का काम भी करती है। संस्था से जुड़े लोग खुद ही अपने उपज की ब्रांडिंग और लेबलिंग का काम करते हैं।
60 से ऊपर प्रॉडक्ट्स करते हैं तैयार
पांगी हिल्स पर किसानों के करीबन 60 जैविक उत्पाद (Organic Products) लिस्टिड हैं। पांगी हिल्स ब्रांड के तहत शहद, हेजलनट, अखरोट, राजमा, उड़द की दाल, ऑर्गेनिक केसर, हर्बल चाय, रतनजोत तेल, खुबानी का तेल, प्राकृतिक खुबानी मॉइस्चराइजर, हवन सामग्री, चंबा चप्पल, चंबा रुमाल और हाथ से बने शॉल व टोपी सहित कई प्रॉडक्ट्स की बिक्री होती है। पांगी हिल्स, उत्पादों की बिक्री ऑनलाइन के साथ-साथ चंबा स्थित अपने स्टोर से भी करता है।
किसानों को मंडियों और बाज़ार से जोड़ने का कर रहे काम
पांगी हिल्स ने TRIFED (Tribal Co-operative Marketing Federation of India) समेत कई मंडियों से टाई-अप भी किया हुआ है। ट्राइफेड (TRIFED) का मूल उद्देश्य आदिवासी लोगों द्वारा जंगल से एकत्र किये गए या बनाये गए जैविक उत्पादों को बाज़ार में सही दामों पर बिकवाने की व्यवस्था करना है। पांगी हिल्स देश की विभिन्न मंडियों से भी संपर्क में है। ज़िले के किसी किसान की उपज नहीं बिक पाती तो संस्था उस किसान की उपज को सीधा मंडियों तक पहुंचाने का भी काम करती है।
राष्ट्रीय ग्रीन एंबेसडर पुरस्कार से सम्मानित
वित्तीय वर्ष 2020-21 में पांगी हिल्स ब्रांड का टर्नओवर करीबन 80 लाख रुपये रहा। डॉ. हरेश शर्मा के प्रयासों को सराहते हुए उन्हें 2019 में दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय संस्था सीएमएस द्वारा राष्ट्रीय ग्रीन एंबेसडर पुरस्कार से भी नवाज़ा गया।
किसानों को कैसे मिलता है लाभ?
डॉ. हरेश शर्मा बताते हैं कि उन्होंने बिचौलियों की भूमिका को पूरी तरह से खत्म कर दिया है। उन्होंने वैल्यू एडीशन पर जोर दिया है। जो भी प्रॉडक्टस तैयार किये जाते हैं वो पूरी तरह से ऑर्गेनिक होते हैं। उदाहरण के तौर पर वैल्यू एडिशन की ट्रेनिंग के बाद 700 ग्राम शहद की कीमत 700 रुपये, 200 ग्राम हेजलनट का दाम 599 रुपये, 100 मिलीलीटर खुबानी का तेल 299 रुपये में बिकता है।
क्या है आगे का लक्ष्य?
डॉ. हरेश शर्मा ने बताया कि अभी उनका आउट्लेट चंबा में ही है। इसके विस्तार करने पर वो काम कर रहे हैं। उनका लक्ष्य दिल्ली, पंजाब, हरियाणा जैसे महानगरीय शहरों में आउटलेट्स खोलने का है, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा ग्राहकों तक किसानों के ये उत्पाद पहुंच सकें। साथ ही चंबा किसानों के हुनर को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंच पर पहचान मिल सके।
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