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आजकल बाज़ार में लिक्विड से लेकर पेंसिल और पाउडर वाले कई तरह के सिंदूर मिल रहे हैं, मगर ये सब ऑर्गेनिक नहीं होते हैं तभी तो अक्सर महिलाओं को सिंदूर लगाने से खुजली या स्किन एलर्जी हो जाती है, क्योंकि इन सिंदूर में केमिकल मिला होता है। लेकिन क्या आपको पता है कि पूरी तरह से कुदरती सिंदूर भी मिलता है जो सिंदूर के पेड़ से बनता है। जी हां, सिंदूर के पेड़ को kumkum Tree (कुमकुम ट्री) या kamila Tree (कमीला ट्री) भी कहते हैं।
सिंदूर की खेती कहां होती है?
सिंदूर का पौधा हर जगह नहीं होता है, इसलिए सबको इसके बारे में जानकारी नहीं है। सिंदूर का पौधा साउथ अमेरिका और कुछ एशियाई देशों में उगाया जाता है, जबकि भारत में ये महाराष्ट्र और हिमाचल प्रदेश के चुनिंदा इलाकों में सिंदूर की खेती होती आई है। अब इसका विस्तार बढ़ रहा है। उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में सिंदूर की खेती किसान कर रहे हैं। सिंदूर की खेती से किसान कैसे मुनाफ़ा कमा सकते हैं इस बारे में रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के असिस्टेट प्रोफ़ेसर डॉ. अमेय शशिकांत काले से बात की किसान ऑफ इंडिया के संवाददाता सर्वेश बुंदेली से।
केमिकल और असली सिंदूर
डॉ. अमेय शशिकांत काले बताते हैं कि सिंदूर के पौधे की फली के बीच में जो बीज होता है उससे ही सिंदूर बनता है। बीज से कुदरती केसरिया रंग निकलता है इसलिए इसका नाम सिंदूरी पड़ा।
आजकल मार्केट में जो सिंदूर मिलता है वो केमिकल वाला होता है जिससे कई महिलाओं को स्किन रिएक्शन हो सकता है, मगर इस पौधे से निकलने वाले कुदरती लाल रंग से जो सिंदूर बनता है वो पूरी तरह से सुरक्षित होता है। सिंदूर के अलावा, इससे हर्बल गुलाल भी बनाया जाता है। इसलिए ये पौधा बहुत महत्वपूर्ण है। बाज़ार में मिलने वाला सिंदूर दरअसल, चूना, हल्दी और मरकरी को मिलाकर बनता है।
सिंदूर की खेती से अतिरिक्त कमाई
डॉ. काले का मानना है कि इसकी खेती किसानों के लिए फ़ायदेमंद साबित होगी। किसान चाहे तो पूरी फसल के रूप में भी सिंदूर का पौधा उगा सकते हैं या अन्य फसल की खेती के साथ ही मेड़ पर सिंदूर के पौधे लगाकर खेती से अतिरिक्त आमदनी ले सकते हैं।
उनका कहना है कि सिंदूर की फली या बीज को कच्चे रूप में बेचने की बजाय अगर किसान इसकी प्रोसेसिंग कर लें, तो इससे अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। दरअसल, कच्चे रूप में कोई चीज़ बेची जाए, तो कीमत कम मिलती है, लेकिन जब प्रोसेस के बाद कोई चीज़ बाज़ार में लाई जाती है तो मुनाफ़ा अधिक होता है।
कैसे करें सिंदूर के पौधे की खेती?
सिंदूर का पौधा क्योंकि सब जगह नहीं होता है इसलिए सिंदूर की खेती के बारे में सबको जानकारी नहीं है। इसकी खेती कैसे की जा सकती है और इसकी पौध कैसे तैयार की जाती है, इस बारे में डॉ. काले बताते हैं कि मार्च के महीने तक इसके बीज पेड़ों पर तैयार हो जाते हैं। फिर सूखे हुए बीजों को इकट्ठा करके इसे एक रात पानी में भिगोकर रखा जाता है। फिर अगले दिन उसे नर्सरी में उठे हुए मेड़ों पर लगाया जाता है।
लगाने के 15 दिन के बाद बीज अंकुरित हो जाते हैं। नर्सरी में पॉली बैग में पौधा तैयार किया जाता है, जो 3-4 महीने के बाद खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाता है। तैयार पौध की खेत में रोपाई से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार कर लेना चाहिए। अगर किसान पूरे तरीके से सिंदूर की खेती कर रहे हैं तो पौधे से पौधे की दूरी 3 मीटर और पंक्ति से पंक्ति के बीच 4 मीटर की दूरी होनी चाहिए।
अगर किसान सिंदूर के पौधों को मेड़ पर लगाना चाहते हैं, तो पौधों को 3-3 मीटर की दूरी पर लगा सकते हैं। पौधे लगाने के 1 या दो साल बाद इसमें फूल आने लगते हैं और उसके बाद ही फली में बीज तैयार होने लगते हैं।
सिंदूर की खेती की ट्रेनिंग
डॉ. काले बताते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय का फॉरेस्ट प्रोडक्ट एंड यूटिलाइजेशन डिपार्टमेंट किसानों को वनोपज यानि जंगल के उत्पादों की कटाई से लेकर प्रोसेसिंग तक की तकनीक बताते हैं। इसके लिए उन्हें 1-2 दिन का प्रशिक्षण दिया जाता है।
जो किसान ज़्यादा जानकारी चाहते हैं, तो उनके हिसाब से उन्हें एक हफ़्ते तक की भी ट्रेनिंग दी जाती है। इस ट्रेनिंग के तहत उन्हें खेत कैसे तैयार करना है, गड्ढे कैसे बनाने हैं, इसमें मिट्टी और खाद कितना मिलाना है, नर्सरी स्टेज में पौधा कैसे तैयार करना चाहिए जैसी कई अहम जानकारियों के बारे में बताया जाता है। इसके साथ ही, फसल की प्रोसेसिंग के बारे में भी बताया जाता है ताकि किसान अधिक मुनाफ़ा कमा सकें।
सिंदूर के पौधे से क्या-क्या बनता है?
सिंदूर के पेड़ के फल से जो बीज निकलते हैं उसे पीसकर ऑर्गेनिक सिंदूर बनाया जाता है, क्योंकि इसका रंग कुदरती केसरिया (जो लाल से मिलता-जुलता है) होता है। इसलिए इसमें किसी और चीज़ की मिलावट नहीं की जाती है। आपको बता दें कि सिंदूर यानि कमीला के पेड़ पर फल गुच्छों में लगते हैं, जिनका रंग शुरू में हरा होता है, लेकिन बाद में ये फल लाल रंग के हो जाते हैं।
इस फल के बीज से न सिर्फ़ सिंदूर बनाया जाता है, बल्कि होली के लिए गुलाल भी तैयार किया जाता है। इसके अलावा, फ़ूड कलर के रूप में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि ये शुद्ध होता है और इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता। इसके अलावा, इसका इस्तेमाल हाई क्वालिटी की लिपस्टिक बनाने, हेयर डाई, नेल पॉलिश बनाने में भी किया जाता है।
व्यवसायिक तौर पर भी इसका इस्तेमाल किया जाता है जैसे लाल रंग की इंक बनाने में, पेंट और साबुन बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है। सिंदूर के पौधे से बना सिंदूर महिलाओं के लिए बहुत उपयोगी है, क्योंकि इससे उन्हें किसी तरह का केमिकल रिएक्शन या स्किन एलर्जी नहीं होगी, जबकि बाज़ार में बिकने वाले सिंदूर में मरकरी और सल्फेट होता है जो त्वचा और बाल दोनों के लिए नुकसानदायक है।
कैसे बनता है ऑर्गेनिक सिंदूर?
सिंदूर के पौधे के फूल के अंदर जो बीज होता है, उससे ही सिंदूर बनाया जाता है। बीज को पीसकर लिक्विड सिंदूर बनाया जाता है और इसी बीज को जब सूखा दिया जाता है तो उसका पाउडर बनाकर सिंदूर तैयार कर लिया जाता है।
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