देशभर में प्राकृतिक और जैविक खेती को बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद राष्ट्रीय मंच से ‘बैक टू बेसिक’ मंत्र अपनाने की अपील कर चुके हैं। दिसंबर 2021 में पीएम मोदी (PM Narendra Modi) ने ज़ोर देते हुए कहा था कि खेती को कैमिस्ट्री की लैब से निकालकर प्रकृति की प्रयोगशाला से जोड़ने की ज़रूरत है। हाल ही में, मैं उत्तराखंड के रानीखेत पहुंची। यहां मेरी मुलाकात चिलियानौला गाँव के रहने वाले प्रगतिशील किसान मनोज भट्ट से हुई। उनसे मिलने के लिए मैंने पहले से ही समय लिया हुआ था। उन्होंने जैविक खेती का एक ऐसा बिज़नेस मॉडल तैयार किया हुआ है, जो वाकई काबिलेतारीफ़ है। अपने क्षेत्र में वो बड़े स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा दे रहे हैं। साथ ही महिला सशक्तिकरण की मिसाल भी पेश कर रहे हैं।
जैविक खेती से खुद को बनाया आत्मनिर्भर
मनोज भट्ट ने अपने खेती के सफर की शुरुआत 2009 से की। उन्होंने मजखाली स्थित राज्य जैविक कृषि प्रशिक्षण केंद्र से जैविक खेती की बारीकियां सीखीं। मनोज भट्ट ने बताया कि एक वक़्त ऐसा था कि बुनियादी ज़रूरतें भी पूरा करने के लिए पैसे नहीं हुआ करते थे। आज वो 10 नाली ज़मीन ( 1 नाली = 2190 स्क्वायर फीट) में कई फसलों की खेती कर रहे हैं। साथ ही एक सफल उद्यमी भी हैं। फसलों में मंडुआ, झिंगोरा, कौंणी, धान और दालों में गहत, भट्ट, मुनस्यारी राजमा, स्वर्ण हल्दी, पीली मिर्च, धनिया और अजवाइन की खेती करते हैं।
कृषि विज्ञान केंद्र सहित कृषि विभाग का मिला पूरा सहयोग
मनोज भट्ट ने बताया कि उन्हें उत्तराखंड कृषि विभाग और ज़िले के कृषि विज्ञान केंद्र का पूरा सहयोग मिला। वक़्त-वक़्त पर ज़िले का कृषि विज्ञान केंद्र तकनीकी जानकारी साझा करता रहता है, जो किसानों के लिए फ़ायदेमंद होती है। मनोज भट्ट कहते हैं कि कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने कतार में फसलों की खेती करने के बारे में जागरूक किया। इससे बीज की बचत हुई और उत्पादन भी बढ़ा।
पीजीएस प्रमाणित किसानों से खरीदते हैं उपज
मनोज ‘आरोग्य उत्तराखंड फ़ूड संस्थान’ के नाम से फ़र्म चलाते हैं। संस्थान ने अपने साथ आसपास के 22 गाँवों की करीब 550 से भी ज़्यादा महिला किसानों को जोड़ा है। इन महिला किसानों से उपज खरीद, उन्हें प्रोसेस कर ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स तैयार किये जाते हैं। ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स तैयार करने का काम उन्होंने अक्टूबर 2020 से शुरू किया। ये ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स ‘आरोग्य’ ब्रांड के तहत बिकते हैं। ये सारी उपज उत्तराखंड के पीजीएस प्रमाणित किसानों से खरीदी जाती है।
क्या है पीजीएस?
केंद्र सरकार जैविक खेती और रासायनिक खाद के कम प्रयोग को प्रोत्साहित कर रही है। इसी के तहत जैविक क्षेत्रों को प्रमाणित किया जा रहा है। इसका मकसद जैविक खेती करने वाले किसानों के उत्पाद को बाज़ार उपलब्ध कराना है। जिन गाँवों से मनोज भट्ट उपज खरीदते हैं, उन्हें पीजीएस-इंडिया सर्टिफिकेट स्कीम के तहत जैविक प्रमाण मिला हुआ है। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग (Department of Agriculture, Cooperation and Farmers Welfare) राज्यों के साथ मिलकर रासायनिक मुक्त क्षेत्रों की पहचान कर, उन्हें जैविक खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र के रूप में प्रमाणित करने का काम कर रहा है।
मनोज भट्ट की फ़र्म, सीज़न के हिसाब से महिला किसानों से उपज खरीदती है। मनोज भट्ट ने बताया कि खरीफ़ सीज़न में मडुआ, झिंगोरा, कई तरह की दालें और मसाले खरीदते हैं। इसके अलावा, तुलसी, रोजमेरी, ओर्गेनो जैसी कई औषधीय फसलें भी खरीदते हैं। रबी सीज़न में सरसों, धनिया, हल्दी और कैमोमाइल फूल और बुरांश के फूल की खरीद करते हैं। मनोज भट्ट ने बताया कि बाज़ार की मांग के मुताबिक भी वो किसानों से खेती करवाते हैं।
देश के कई बड़े शहरों में प्रॉडक्ट्स की मांग
‘आरोग्य’ ब्रांड के तहत जो प्रॉडक्ट्स तैयार किये जाते हैं, उनकी डिमांड देश के कई बड़े शहरों में है। अब तक दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम, चेन्नई, महाराष्ट्र, गोवा, गुजरात समेत कई राज्यों में वो प्रॉडक्ट्स भेज चुके हैं। बिच्छू घास की चाय पत्ती, बुरांश की चाय और जूस, घराट यानी पनचक्की में पीसा हुआ मंडुए का आटा, मुनस्यारी की राजमा, लाल चावल, कोल्ड प्रेस तेल, काले तिल का तेल, स्वर्ण हल्दी पाउडर, बद्री गाय का घी जैसे कई उत्पाद तैयार किये जाते हैं। ऑर्गेनिक प्रॉडक्ट्स के कस्टमाइज्ड गिफ़्टिंग बॉक्स भी तैयार करते हैं।
माउथ-टू-माउथ किया प्रचार, सोशल मीडिया का किया इस्तेमाल
मनोज भट्ट खुद प्रॉडक्टस की पैकेजिंग से लेकर मार्केटिंग का कार्यभार देखते हैं। शुरुआत में माउथ-टू-माउथ यानी कि एक शख्स से दूसरे शख्स तक प्रॉडक्टस के बारे में जानकारी पहुंची। ऐसे ये सिलसिला बढ़ता गया। फिर उन्होंने सोशल मीडिया जैसे कि व्हाट्सऐप ग्रुप्स और इंस्टाग्राम से ग्राहकों को जोड़कर अपने प्रॉडक्टस की पहुंच को बढ़ाया। इसके अलावा, इंडियमार्ट जैसे कई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए बिक्री भी कर रहे हैं।
मुनाफ़े का 20 फ़ीसदी महिला किसानों में बांटा जाता
कोरोना काल में जहां कई व्यवसायों को ताला लग गया, उस दौरान उनका सालाना टर्नओवर करीबन 12 लाख रुपये के आसपास रहा। मनोज भट्ट ने बताया कि हर साल उनकी फ़र्म को जो मुनाफ़ा होता है, उसका 20 फ़ीसदी महिला किसानों में भी बांटा जाता है। इससे महिलाओं को प्रोत्साहन मिलता है और उनका मनोबल बढ़ता है।
उन्होंने हमें अपना एक-एक प्रॉडक्ट दिखाया। इसके बाद हमने उनके खेतों का रुख किया। उन्होंने हमें अपनी मूली, सरसों, धनिया और लहसुन समेत कई फसलें दिखाईं। साथ ही, हमने उनके द्वारा तैयार की जाने वाली बुरांश की चाय का भी स्वाद चखा। आपको बता दूं कि बुरांश उत्तराखंड का राजकीय वृक्ष है। वहां के कई किसान इसकी खेती करते हैं।
बुरांश की चाय की ख़ासियत
मनोज भट्ट बताते हैं कि बुरांश के फूलों को इकट्ठा कर उन्हें सोलर ड्रायर में सुखाया जाता है। फिर इसमें तुलसी सहित कई जड़ी-बूटियां मिलाकर चाय तैयार की जाती है। इसके अलावा, बुरांश से शुगर फ़्री जूस भी तैयार कर रहे हैं। बुरांश स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। इसमें एंटी माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखने में मदद करते हैं। इसमें आयरन, कैल्शियम, जिंक, कॉपर आदि जैसे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
बिच्छू चाय की ख़ासियत
बिच्छू घास की पत्तियों को तोड़कर सबसे पहले सोलर ड्रायर में सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इसमें लेमन ग्रास सहित अन्य जड़ी-बूटियां डाली जाती हैं। मनोज ने बताया कि बिच्छू घास की चाय भी सेहत के लिए फ़ायदेमंद है। ये चाय जोड़ों के दर्द और किडनी से जुड़ी समस्याओं से बचाव करती है।
FSSAI से प्रमाणित हैं उत्पाद
उन्हें FSSAI का लाइसेन्स मिला हुआ है। FSSAI लाइसेंस को ‘फूड लाइसेंस’ के नाम से भी जाना जाता है। ये लाइसेंस किसी भी फ़ूड से संबंधित बिज़नेस को भारत में चलाने के लिए जरूरी है, क्योंकि ये लाइसेंस प्रमाणित करता है कि आप जो फ़ूड प्रॉडक्ट बनाते या बेचते हैं वो उन फ़ूड स्टैंडर्ड्स को सैटिसफाई करता है, जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित किये गए है।
खादी ग्रामोद्योग आयोग द्वारा भी प्रमाण पत्र जारी किया गया है। आरोग्य उत्तराखंड फ़ूड संस्थान, उत्तराखंड सरकार के रूरल बिज़नेस इनक्यूबेटर सेंटर हवालबाग अल्मोड़ा में भी पंजीकृत है।
महिला किसानों को अपने साथ जोड़ा
मनोज कहते हैं कि उनके इस कार्य से क्षेत्र की कई महिलाओं को रोज़गार मिला है। आज वो किसी पर निर्भर नहीं है। वो अपने पैरों पर खड़ी हैं। उन्हें उनकी उपज का सही दाम दिया जाता है। उन्हें अपनी उपज बेचने के लिए बाहर बाज़ार या मंडी के चक्कर नहीं लगाने पड़ते।
ये सभी महिलायें उत्तराखंड कृषि उत्पादन एवं विपणन सहकारिता FPO के साथ जुड़ी हैं। इस FPO का कार्यभार मनोज भट्ट की पत्नी नेहा भट्ट संभालती हैं। नेहा भट्ट ने किसान ऑफ़ इंडिया से बातचीत में बताया कि सबसे पहले उन्होंने 22 गाँवों की महिलाओं के छोटे-छोटे ग्रुप बनाए। इन महिलाओं से अपील की, कि अगर वो छोटे स्तर से ही सही अपने खेतों में फसलें उगायेंगी तो वो उनसे उपज खरीदेंगे। इससे वो आत्मनिर्भर बनेंगी और रोज़गार के अवसर पैदा होंगे।
पॉलीहाउस तकनीक से भी उगाते हैं सब्जियां
मनोज भट्ट बताते हैं कि पॉलीहाउस तकनीक का इस्तेमाल वो इसलिए करते हैं क्योंकि उनके क्षेत्र में बर्फ़ ज़्यादा पड़ती है। इस वजह से सर्दियों में फसलें नहीं हो पातीं या पाला लगने की वजह से नुकसान भी झेलना पड़ता है। पॉलीहाउस में विषम जलवायु में भी खेती संभव है। कृषि विभाग की एक योजना के तहत उन्होंने अपने वहां पॉलीहाउस लगवाए।
क्या है आगे का लक्ष्य?
मनोज भट्ट ने बताया कि वो अपने कार्य को बड़े स्तर पर ले जाने के लिए ग्रोथ सेंटर बनाने की संभावनाओं की तलाश कर रहे हैं। विकास खंड के स्तर पर एक ग्रोथ सेंटर बनाए जाने को लेकर ज़िला प्रशासन से बातचीत जारी है। इससे क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों में बढ़ोतरी होगी। एक जिला एक उत्पाद योजना (One District One Product, ODOP) के अन्तर्गत खुमानी की प्रोसेसिंग यूनिट लगाने से लेकर मिलेट के बिस्कुट, फ्लैक्स, लडडू, नमकीन बनाने की भी योजना है।
मनोज भट्ट को जनवरी 2021 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा ग्रामीण स्वरोजगार फ़ूड प्रोसेसिंग के कार्यों के लिए सम्मानित किया गया।
सम्पर्क सूत्र: किसान साथी यदि खेती-किसानी से जुड़ी जानकारी या अनुभव हमारे साथ साझा करना चाहें तो हमें फ़ोन नम्बर 9599273766 पर कॉल करके या [email protected] पर ईमेल लिखकर या फिर अपनी बात को रिकॉर्ड करके हमें भेज सकते हैं। किसान ऑफ़ इंडिया के ज़रिये हम आपकी बात लोगों तक पहुँचाएँगे, क्योंकि हम मानते हैं कि किसान उन्नत तो देश ख़ुशहाल।