वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस (vermicompost business) पर खास सीरीज़ का पार्ट 1 देखने के लिए इस पर क्लिक करें –
किसान ऑफ इंडिया की टीम पूरे देश में घूम कर ऐसे किसानों से मुलाक़ात करती है जो कुछ नया, कुछ अलग कर रहे हैं। किसानों यानी आपके लिए खेती से जुड़ी काम की जानकारी तलाशने मैं भी उत्तर प्रदेश के मेरठ गया था। वहीं मेरी अमित त्यागी से मुलाकात हुई जो वर्मीकम्पोस्टिंग के गुरु माने जाते हैं। पहले पार्ट में हमने उनसे कई अहम सवाल पूछे जो आप ऊपर दिए गए लिंक पर जाकर पढ़ सकते हैं। इस पार्ट में हम वर्मी बेड बनाने का तरीका सीखेंगे और साथ ही केंचुए की प्रजातियों के बारे में जानेंगे।
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वर्मीकम्पोस्ट बेड बनाने का कौन सा तरीका सबसे बेहतर?
अमित त्यागी ने बताया कि HDPE वर्मी बेड और विंडरोव तरीके से बेड बनाना फ़ायदेमंद है। कम जगह और पहाड़ी इलाकों में HDPE वर्मी बेड का इस्तेमाल होता है, लेकिन इस बेड को बनाने में लागत ज़्यादा आती है।
आमतौर पर HDPE वर्मी बेड 12x4x2 फ़ीट का होता है, लेकिन गोबर उतना ही आता है जितना विंडरोव बेड बनाने में लगता है। इसमें खाद बनने में भी ज़्यादा समय लगता है । तीन से चार महीने इसमें लग जाते हैं। उन्होंने बताया कि लेबर की लागत भी ज़्यादा आती है।
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विंडरोव तरीके से बेड कैसे बनायें?
उन्होंने बताया कि इसे बनाना आसान है , और जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि इसमें हवा क्रॉस-वेंटिलेशन में चलनी चाहिए। इसको बनाने के लिए सबसे ज़रूरी है, ज़मीन का चुनाव। साथ ही ये भी देखना जरूरी है कि पानी और बिजली का साधन सही है कि नहीं।
इसमें इतनी जगह भी बीच में देनी चाहिए जिसमें गोबर लाने के लिए ट्रैक्टर निकल सके। साथ ही इस बात का भी ख़्याल रखना होगा कि कोई जंगली जानवर तो आस-पास नहीं आते। इस तरीके में बेड की दिशा उत्तर-दक्षिण की तरफ होनी चाहिए। इन सभी बेडों पर धान की पराली डाली जाती है। इससे सूरज की किरणें सीधे नहीं पड़ती हैं। बेड पर अगर ज़्यादा गर्मी बढ़ेगी तो केंचुए मर जाते हैं। बेड की लेवेलिंग भी ठीक होनी चाहिए वरना बारिश में अमोनिया लेवल बढ़ जाता है।
वर्मीकम्पोस्ट बिज़नेस में आइसेनिया फेटिडा (eisenia fetida) का चुनाव करना क्यों है जरूरी?
अमित त्यागी ने बताया कि केंचुए की लगभग 4500 प्रजातियां होती हैं। ये तीन वर्गों में विभाजित हैं। सबसे पहली है एनेसिक (Anecic)। ये वो केंचुआ है जो बारिश के समय बाहर निकल आता है। इसकी लंबाई 6 इंच से लेकर 2.5 मीटर तक होती है। ये मिट्टी ही खाते हैं और उसी को वापिस निकालते हैं।
एनेसिक केंचुए का इस्तेमाल खेत की जुताई करने के लिए भी किया जाता है। दूसरी प्रजाति है एण्डोजैइक (endogeic)। ये वो केंचुआ है जो नदी-नालों के आसपास और गोबर के ढेर के पास निकलता है। ये ऊपरी सतह पर रहता है तो ज़्यादा गर्मी या ज़्यादा ठंड में मर जाता है। तीसरी है एपीजैइक (epigeic) । ये ऊपरी सतह पर रहता है और गोबर खाने में सक्षम है । इसलिए वर्मीकम्पोस्ट बनाने में इनकी प्रजातियों का इस्तेमाल होता है। वर्मीकम्पोस्ट में 16 तत्व मौजूद हैं।
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