बिहार में भागलपुर स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने दुनिया में पहली बार बेहद उन्नत किस्म के अमरूद की नस्ल को विकसित करने में सफलता पायी है। इस नस्ल में Anthocyanin (एंथोसायानिन) नामक बेहद पौष्टिक तत्व की मात्रा इतनी ज़्यादा होती है कि अमरूद और उसके गूदे का रंग काला हो जाता है। इसी तत्व की वजह से काले अमरूद में एंटीऑक्सिडेंट, मिनरल्स और विटामिन्स की मात्रा परम्परागत हरे अमरूदों के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा होती है।
विश्वविद्यालय के फल और उद्यानिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ संजय सहाय ने किसान ऑफ़ इंडिया को दिये एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में बताया कि काले अमरूद की किस्म को विकसित करने में लम्बा वक़्त लगा है। संस्थान में लगाये गये इसके पौधे अब तीन साल से ज़्यादा पुराने हो चुके हैं। इन पेड़ों पर उगे अमरूदों का आकार और सुगन्ध तक़रीबन वैसा ही है जैसा हरे अमरूदों में होता है। वैसे इसमें भी और सुधार लाये जाने की कोशिशें जारी हैं।
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काले अमरूद में है Enthocyanin की प्रचुर मात्रा
डॉ सहाय ने बताया कि काले अमरूद में Anthocyanin की प्रचुर मात्रा होने की वजह से ये न सिर्फ़ एंटीऑक्सिडेंट, मिनरल्स और विटामिन्स से भरपूर है, बल्कि अपनी एंटी-एजिंग और रोग प्रतिरोधक क्षमता की वजह से सामान्य अमरूदों के मुक़ाबले इसकी माँग बहुत अधिक होने की उम्मीद है। ज़ाहिर है, दो-तीन साल बाद जब किसानों के लिए काले अमरूदों की खेती के लिए पौधों के सुलभ करवाने का वक़्त आएगा, तब इसकी व्यावसायिक खेती करके किसानों को काफ़ी बढ़िया दाम मिलने की पूरी उम्मीद रहेगी।
बिल्कुल हरे अमरूद की तरह होगी खेती
डॉ सहाय ने बताया कि काले अमरूद की पैदावार के लिए जलवायु, मिट्टी, खाद वग़ैरह की ज़रूरतें बिल्कुल वैसी ही रहेंगी, जैसी कि हरे अमरूदों के मामले में होती है। शिमला मिर्च का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पहले शिमला मिर्च केवल हरे रंग का होता था, लेकिन कालान्तर में इसकी अन्य रंगों वाली किस्में भी विकसित हुईं और इनकी भी व्यवसायिक खेती होने लगी। इसीलिए वो दिन दूर नहीं जब हरे अमरूद की तुलना में काले अमरूदों की पैदावार करके किसानों को ज़्यादा कमाई होगी।
डॉ सहाय ने बताया कि अमरूद के पेड़ पर साल में तीन बार फूल खिलते हैं। फरवरी-मार्च, जून-जुलाई और अक्टूबर-नवम्बर। इसमें ये सबसे बढ़िया स्वाद जाड़े वाले अमरूदों का यानी अक्टूबर-नवम्बर वाले फूलों का होता है। इसके फल जनवरी से मिलने लगते हैं। गर्मियों और बरसाती अमरूद का स्वाद उम्दा नहीं होता, इसीलिए किसानों को इसकी कलियों को ही तोड़कर फेंक देने की सलाह दी जाती है, ताकि जाड़े वाले अमरूद अधिक पोषक तत्वों से भरपूर बन सकें और बाज़ार में अच्छा भाव पा सकें। हरे अमरूदों के मामलों में अपनायी जाने वाली बिल्कुल इसी प्रक्रिया को काले अमरूदों के मामलों में भी अपनाया जाता है।
हरे अमरूद की तरह ही क़लम से बनेंगे पौधे
काले अमरूदों के पौधों को तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में डॉ सहाय बताते हैं कि इन्हें भी नर्सरी में क़लम लगाकर विकसित किया जाता है। किसानों को सलाह दी जाती है कि वो कम से कम तीन साल तक उम्र वाले पौधों से उपज नहीं लें। इतना वक़्त पौधों को परिपक्व होने के लिए ज़रूर दें। परिपक्व पेड़ पर उगने वाले काले अमरूद में प्रति सौ ग्राम पर करीब 250 मिलीग्राम विटामिन-सी, विटामिन-ए और बी, कैल्शियम और आयरन के अलावा प्रोटीन और अन्य मल्टीविटामिन और मिनरल्स मिलने लगते हैं। इन तत्वों का सामूहिक प्रभाव ‘एंटीएजिंग’ का काम करता है।
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डॉ सहाय ने बताया कि वैसे तो काले अमरूद की नयी किस्म को विकसित कर लिया गया है। फिर भी इसे और उन्नत बनाने और तरह-तरह का अध्ययन करने की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है। इसके पूरा होने के बाद ही किसानों के लिए पौधे तैयार किये जाएँगे और उन्हें 40-50 रुपये प्रति पौधे के बेहद किफ़ायती दाम पर बेचा जाएगा। उम्मीद है कि अगले दो-चार वर्षों में बाज़ारों में काले अमरूद आकर्षण का केन्द्र बनकर नज़र आएँगे।